Hindi Writing Blog: दिसंबर 2020

सोमवार, 14 दिसंबर 2020

तमन्ना चाँद पर घर बसाने की, पर अधूरी ख्वाहिशें धरती की

 

COVID-19 Vaccine

वर्ष 2020 की उपलब्धियों का अगर मूल्यांकन करें तो जाते हुए इस साल ने पूरी दुनिया को कुछ ऐसे अधूरे जख्मों के सहारे रख छोड़ा है जिसे भरने के लिए आने वाले कई वर्षों को इसकी भरपाई करनी पड़ेगी। लेकिन क्या आपने ये गौर किया है कि वैश्विक आपदा के इस दौर में दुनिया ने चंद्रमा और मंगल पर घर बसाने की (colonizing) एक ऐसी होड़ देखी है जो भले ही वर्तमान मानव प्रजाति के संभावित भविष्य में विकास का नया अध्याय जोड़ने में कामयाब हो जाए परंतु क्या इससे इस मानव प्रजाति का वो आज सुधार पाएगा जिसमें वो जी रही है?

दोस्तों, जैसा की हम सब जानते हैं कि COVID-19 की इस Pandemic ने न केवल लोगों को बीमार बनाया, उनके जीवन छीने बल्कि आगे का जीवन जीने का सहारा, उनका व्यापार और रोजगार भी छीन लिया, बावजूद इसके दुनिया भर के वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई और Pfizer, Moderna, AstraZeneca जैसी कंपनियों की Vaccine ने दुनिया के जल्द ही सामान्य होने की उम्मीद भी बंधाई। ये तो दुनिया का वो चेहरा है जिसे हम सभी संपन्नता और समृद्धि के चश्में से देख पा रहे हैं, लेकिन इन सब के पीछे कुछ ऐसी प्रबल समस्याएँ भी मेरे मतानुसार काफी अहम हैं जिनका हल चाँद पर घर बसाने के पहले ही निकाल लिया जाना चाहिए और वो है दुनिया की एक बड़ी आबादी का “भूखा रहना” जिसे स्वयं विश्व के सबसे बड़े स्वास्थ्य संगठन डबल्यूएचओ (WHO) ने न केवल स्वीकारा है बल्कि ये भी बताया की लगभग 8 billion आबादी वाले इस विश्व की 1 billion आबादी भयंकर भुखमरी की चपेट में है यानि 6 में से 1 व्यक्ति भुखमरी से प्रभावित है। डबल्यूएचओ के इन आंकड़ों से कुछ आगे बढ़ें तो Global Hunger Index, 2020 भी भुखमरी की इस समस्या को अपने तरीके से बताते हुए भारत (लगभग 22 करोड़ 46 लाख लोग कुपोषण का शिकार हैं) सहित दक्षिण एशियाई देशों के हालात को alarming point पर खड़ा होने का संकेत देती है। मेरे कहने का तात्पर्य बस इतना है कि हमारी तमन्ना चाँद पर घर बसाने की है लेकिन क्या हम पूरी तरह अपने धरती को संवार पाए? जहाँ दुनिया का एक हिस्सा अमीरी के पालने में झूल रहा है तो दूसरा हिस्सा सोमालिया, मेडागास्कर, उत्तर कोरिया, बरुंदी, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, जैसे कई और देशों का जो अभी भी गरीबी के दलदल में फंसे हैं और वहाँ के लोग जीवन को जीने की ही जंग लड़ रहे हैं। आखिर जरूरत किस बात की है, जब मलावी जैसे देशों की स्थिति मुफ्त बीज और अनुदानिक खाद्य की बदौलत सुधारी जा सकती है तो अन्य देशों की क्यों नहीं? जहाँ खाद्यान उत्पादन की कोई कमी नहीं है बस अनिवार्यता है उनकी लोगों तक पहुँच की, जिसे supply chain की खामियाँ और बेवजह अन्न बर्बादी जरूरत मंदों तक पहुँचने से रोक रही है।

Hunger


सरकार और सामाजिक संगठन इस प्रयास में तो पहले ही लगे हैं जरूरत है हम सब को आगे आने की क्योंकि भुखमरी से जूझते जीवन में रोशनी की एक किरण लाने का दायित्व हम सभी के छोटे-छोटे प्रयासों में समाहित होता है, जिसका प्रशंसनीय उदाहरण है चेन्नई में स्थापित Community Fridge का, जरूरत है उनकी इस पहल को पूरे देश द्वारा अपनाए जाने की जिससे अन्न की बर्बादी से होने वाली भुखमरी को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सके और रही बात हमारे व्यक्तिगत समर्थन की तो स्वयं की थाली से एक अन्न बेकार न जाने का संकल्प भी बहुत कुछ बदल सकता है क्योंकि समय की मांग इस धरती को ही स्वर्ग बनाने की है न कि उसकी तलाश में धरती से दूर जाकर स्वर्ग खोजने की।

आज के लिए बस इतना ही, अगले अंक में फिर मिलेंगे तब तक के लिए ....जय हिन्द...जय भारत....