Hindi Writing Blog: सरहदों की विध्वंसात्मक पटकथा (Borders Disruptive Story)

शनिवार, 9 मार्च 2019

सरहदों की विध्वंसात्मक पटकथा (Borders Disruptive Story)

सरहदों की विध्वंसात्मक पटकथा (Borders Disruptive Story)
























ये तेरा है… ये मेरा है, बस इसी मानवीय सोच के कारवां का एक मूर्त रूप है सरहद जिसके मायाजाल ने आज सम्पूर्ण विश्व को उलझाकर रख दिया है| आज से लगभग 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व जब हमारी पृथ्वी का निर्माण हुआ तब विधाता ने इस  धरा को सरहदों से मुक्त बनाया था परन्तु धीरे-धीरे मानवीय सभ्यता के विकास ने सरहदों अर्थात सीमाओं का निर्माण प्रारम्भ किया, जिनमें से कुछ अगर प्रकृति प्रदत्त रहीं तो कुछ को मनुष्य ने जन्मा और इसी सृजन के साथ शुरू हुआ सरहदों की विध्वंसात्मक पटकथा का सिलसिला जो आज तक जारी है| वैसे तो हमारा विश्व अतीत से आधुनिक तक एक लम्बा सफर तय कर चुका है और विश्व के इस सफर के साक्षी बने हैं दुनिया के मानचित्र पर अंकित 193 देश जिनका वर्गीकरण ही सरहदों के बंटवारे पर आधारित है|

आज पूरी दुनिया में भारत-पाकिस्तान (India-Pakistan) की सरहदों का मुद्दा मानव निर्मित इस समाज को नयी दिशा में सोचने के लिए प्रेरित कर रहा है क्योंकि जिन सरहदों को इंसान ने विकास की पटकथा लिखने के लिए निर्मित किया था वही सरहदें आज विध्वंस का कारण बन चुकी हैं, फिर वो चाहे अमेरिका और मेक्सिको (America and Mexico) हो या फिर उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया (North Korea and South Korea) या फिर इजराइल और फिलिस्तीन (Israel and Palestine) की सीमाएं, या भारत और चीन (India and China) की सीमाएं सभी के इतिहास का अगर हम अवलोकन करें तो हमारे सामने जो तथ्य निकलकर सामने आ रहे हैं वो ये हैं कि इन सरहदों अर्थात सीमाओं के चक्कर में उलझकर इंसान ने पूरे विश्व को हिंसा के ऐसे चक्रव्यूह में फंसा दिया जहाँ से शान्ति का मार्ग निकल पाना एक असंभव लक्ष्य बन चुका है|


अतीत से निकलकर आयीं गाथाएं सरहदों के  माध्यम से  बनने वाले दुनिया के विनाशकारी स्वरुप को देख चुकी हैं, लिहाजा अब जरुरत इस बात की है कि सरहदों की दुनिया से निकलकर मनुष्य अपने देशहित और लोकहित के बारे में सोचे और “वसुधैव कुटुम्बकम”‘ की भारतीय अवधारणा को सत्य सिद्ध करें क्योंकि आजतक इन सरहदों की विनाश लीला ने हमें सिवाये खून-खराबे के दिया ही क्या है? जबकि दूसरी ओर विधाता ने इस धरा पर कभी भी मात्र सरहदों के आधार पर बंटवारा  नहीं किया| उसने तो एक रंग-बिरंगी प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण धरती मनुष्य को सौंपी है जिसको मात्र सजाने संवारने  का कृत्य ही इस मानवीय सभ्यता को शोभा देता है न कि इसे विध्वंस के गर्त में धकेलने का| 

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