Hindi Writing Blog: अप्रैल 2021

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

Screen Media को लेकर माताओं में जागरूकता क्यों जरूरी?

children watching TV














कोविड 19 एक बार फिर वापस लौटा, स्कूलों पर फिर लग गए ताले, स्कूलों में बच्चों के गूँजते शोर-गुल पर लगा फुल-स्टॉप!

दोस्तों, कोविड 19 की महामारी ने एक तरफ जहां हम बड़ों का सुख-चैन छीन लिया है वहीं दूसरी ओर इसकी जद में हमारे भावी भविष्य यानि कि हमारे बच्चे भी कुछ खास सकून से नहीं रह पा रहे, वो घर की चार दीवारों में खुद को जकड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं, बावजूद इसके कि उनके माता-पिता उन्हें उनका comfort level देने की पुरज़ोर कोशिश में लगे हैं। फिर भी सामाजिक दूरी के कारण दूसरे बच्चों के साथ उनके जुड़ाव में आई कमी ने उन्हें न केवल भावनात्मक रूप से कमजोर बनाया है अपितु उनके दिमाग पर मानसिक उलझनों का भी ताला लगा दिया है। ऐसे में ज़्यादातर घरों में बच्चों का रुझान screen media की ओर कुछ ज्यादा ही divert हो गया है, लेकिन ये उनके लिए किस हद तक खतरनाक है ये भी जानना बेहद जरूरी है क्योंकि screen media (जिसमें यूं तो Cinematic screen, Television Screen, Computer screen, Smart Phone जैसे और दूसरे devices के साथ small screen भी शामिल हैं) का इस कोविड situation में टीवी, मोबाइल और लैपटाप के रूप में ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है जो बच्चों के स्वास्थ और उनकी याद करने की क्षमता पर सीधा असर डाल रहा है। इसलिए, जब तक बच्चे घरों से निकलकर न स्कूल जा पा रहें और ना ही दूसरे बच्चों के साथ खेल पा रहें तो उनका टीवी से चिपकना भी लाज़िमी है और जहां तक ऑनलाइन क्लासेस की बात है वो भी compulsory है, जिन्हें स्कूल-कॉलेज दूसरी activities के combination के साथ मानदंडों का ख्याल रखते हुए चला रहे हैं। उसके बावजूद बचे बाकी समय को भी बच्चे screen media के involvement में ही गुज़ार रहे हैं। जब कि शोधों की मानें तो British Psychological Society के एक सदस्य के अनुसार ज्यादा टीवी देखने से नींद न आना, व्यवहारिक बदलाव के साथ मोटापे का आ जाना और बच्चों के ब्रेन से मेमोरी का corrupt हो जाने जैसे घटनाक्रमों की संभावना बढ़ जाती है।

दोस्तों, यूं तो ये digital revolution का age है जहां सबकुछ hi-tech है, बच्चे तो बच्चे, बड़े भी screen media पर अपने daily routine का एक लंबा हिस्सा बिता रहे हैं, फिर भी चेतावनी तो बच्चों से ही शुरू होती है क्योंकि ये उनका growth period है जहां चीजें बनती और बिगड़ती हैं। ऐसे में इस वैश्विक महामारी की आकस्मिक अवस्था में हमें घर में ही बच्चों के लिए Chess, Carom, Snakes and Ladders, Table Tennis, Solving Puzzles की आदत डालनी होगी और इसके लिए हर घर की माताओं का जागरूक होना अनिवार्य है क्योंकि WHO (World Health Organization) ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि बच्चे यदि एक घंटे से ज्यादा टीवी/मोबाइल देखते हैं तो वो उनके लिए हानिकारक है। WHO के इस report में आगे बताया गया है कि एक साल से कम उम्र के बच्चों के लिए electronic screen देखना खतरनाक हो सकता है।

दोस्तों, माना कि Work From Home (WFH) की situation वाली इस pandemic ने शहरों में रह रहे माता-पिता के लिए बच्चों की परवरिश को एक चुनौती बना दिया है जिसका नतीजा ये निकला है कि काम करने की धुन में हम बच्चों से छुटकारा पाने के लिए बिना उनकी उम्र का ध्यान रखे उन्हें टीवी या मोबाइल के जरिये engage करने की कोशिश करते हैं। कमोवेश, ऐसी situation से तो अब ग्रामीण इलाके भी अछूते नहीं हैं, पर क्या ये सही है? ये सोचना इस आपातकालीन स्थिति में बेहद जरूरी है क्योंकि जब ये सबकुछ खत्म होगा तो हमारे सामने हमारे बच्चे होंगे और उनका भविष्य जो हमारी इस दुनिया को बचाए रखने के लिए जरूरी है। इसलिए screen media के ज्यादा इस्तेमाल द्वारा बच्चों की creativity को नष्ट होने से बचाना हम सभी का दायित्व है क्योंकि “यही वो आज हैं जो हमारा कल लिखेंगे।”

आज के लिए बस इतना ही, अगले अंक में आप से किसी रोचक विषय पर फिर से परिचर्चा जारी रहेगी। इसी उम्मीद के साथ “जय हिन्द, जय भारत”