Hindi Writing Blog: जून 2021

मंगलवार, 22 जून 2021

विश्व योग दिवस विशेषांक - आ अब लौट चलें…

 

Yog and Ayurveda













दोस्तों, आज के लेख का शीर्षक “आ अब लौट चलें” सन् 1999 में सिनेमा के रुपहले पर्दे पर आयी उस फिल्म को लेकर मैंने रखा है जिसमें पर्दे पर फिल्माए गए किरदारों (राजेश खन्ना, अक्षय खन्ना, ऐश्वर्या राय) को अपने देश से जुड़ी माटी की सोंधी खुशबू तब याद आती है जब वो विदेशी धरती पर अपने देश की गरिमामयी संस्कृति का ख्याल अपने जेहन में लेकर आते हैं। चूंकि रुपहले पर्दे पर फिल्मायी गईं ये कहानियाँ हमें हमारे जीवन में बहुत कुछ सीखने की सीख दे जाती हैं, इसलिए अब हमें भी अपने जीवन की धारा को ठीक इस कहानी की भांति प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति की उन गहरी जड़ों की ओर वापस ले जाना होगा जो आज की इस भौतिकता में कहीं खो सी गयी है।

जी हाँ दोस्तों, एक लंबे अर्से से जिम्मेदारियों के निर्वहन और भौतिक सुखों को पाने की चाह ने हमसे हमारी उन परम्पराओं को दूर कर दिया है जिसमें हमारी कामना, शारीरिक रूप से स्वस्थ रहकर मानसिक स्वस्थ को पाने की थी और ये बात वैश्विक महामारी से उपजे हालातों के इस दौर में और भी अनिवार्य हो जाती हैं कि हमें अब खुद को लौटने का संकेत दे देना चाहिए क्योंकि पिछले कुछ समय से प्रकृति के बेतहाशा दोहन ने अगर एक ओर समग्र जलवायु को परिवर्तित कर देने का माद्दा दिखाया है तो वहीं दूसरी ओर हमारी बदलती आदतों और अनियमित जीवन शैली ने हमसे हमारे शरीर की ताकत भी छीन ली है।

दोस्तों, आज दुनिया भर के वैज्ञानिक/विशेषज्ञ हमें हमारे शरीर के immune system को मजबूत बनाकर इस महामारी से निपटने के लिए प्रेरित कर रहे हैं क्योंकि Covid-19 के इस वायरस ने ये तो प्रूव कर ही दिया है कि अगर हमारा शरीर मजबूत होगा तो ही हम इस बीमारी से भलि-भांति लड़ पाएंगे और ऐसा तब होगा जब यूरोपीय पुनर्जागरण से शुरू हुए नित नए अन्वेषण/आविष्कार से परे होकर हम खुद को आधुनिकता की अंधी दौड़ से पीछे हटा लें और अपनी दैनिक दिनचर्या में भारतीय संस्कृति से मिली विरासत योग/ध्यान की परंपरा को आगे बढ़ाएँ, बेहतर खान-पान के साथ अपने अपनों को दी गई सकारात्मक ऊर्जा को मानसिक स्वास्थ्य की दृढ़ता में लगाएँ क्योंकि दोस्तों, यूनान, रोम, मिस्र और चीनी संस्कृतियों की लगभग नष्ट हो चुकी परंपरा से परे भारतीय सभ्यता और संस्कृति ही एक मात्र ऐसी धरोहर है जो आदिकाल से लेकर वर्तमान तक अपने परंपरागत अस्तित्व को जीवित रखकर अजर और अमर बनाए हुए है। फिर चाहे वैदिक काल में किए गए शस्त्र पराक्रम हो या महाकाव्य काल में धनुर्विद्या, तीरंदाजी या अन्य विधाओं का प्रदर्शन, सभी का उद्देश्य सिर्फ एक ही था, विश्व में सबसे प्राचीन मानी जाने वाली भारतीय व्यायाम प्रणाली को जीवित रखना तथा स्वस्थ शरीर के साथ स्वस्थ मन का निर्माण करना। जैसे-जैसे वक्त बीता भारत की इन विधाओं ने दुनियाभर में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी और इसी क्रम में यूनान, स्पार्टा, रोम में भी शारीरिक स्वास्थ्य ने लय पकड़ ली और रही बात भारत की तो कभी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध रहे नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में 7वीं शताब्दी में आए चीनी यात्री ह्वेन सांग ने स्वयं यह लिखा कि “उसने भारत में आकर लगभग 10 हजार विद्यार्थियों को रोज़ अपने दैनिक दिनचर्या में दंड-बैठक, मुगदर, गदा, नाल, धनुर्विद्या, मुष्टि, वज्रमुष्टि, आसन, प्राणायाम, सूर्य नमस्कार, नौलि, नौती, धौति, वर्ती, आदि अनेक क्रियाएँ करते देखा था, जो उन विद्यार्थियों को फिट बनाए रखती थीं।”

दोस्तों, हम सभी भारतीय हैं और हमारी समृद्ध परंपरा ने हमें पातंजलि के माध्यम से योगदर्शन, चरक के माध्यम से चरकसंहिता तथा सुश्रुत और वाग्भट् के माध्यम से क्रमशः सुश्रुत संहिता और अष्टांग संग्रह जैसे ग्रन्थों द्वारा चिकित्सा/व्यायाम के द्विसमन्वय से परिचित कराया। वक्त आ गया है कि हम अपने पूर्व मनीषियों से मिले ज्ञान का थोड़ा अंश अपनी जीवनशैली में भी शामिल करें ताकि हम निरोगी रहें।

दोस्तों, कोविड-19 जैसी इस भयंकर आपदा ने आज हम सभी की जीवनशैली पर कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक असर डाला है लेकिन अब बारी हमारे निर्णय की है कि हम इनमें से किसे चुनते हैं क्योंकि इस आपदा ने इतना तो सीखा ही दिया है कि “जान है तो जहान है” और इस जान की सुरक्षा तभी होगी जब हम इस दिशा में आज और अभी से प्रयास प्रारम्भ कर दें। चूंकि हमारे पास हमारे पूर्वजों द्वारा समग्र मानव जाति को अर्पित मूल्यवान ज्ञान की एक बहुमूल्य धरोहर पहले से ही मौजूद है तो हमें इसे ढूँढना नहीं है बस करना ये है कि अपनी मंशा को आ अब लौट चलें” की ओर मोड़ देना है, ये अपनी वही पुरानी जड़ें हैं जहां से भारत ने जगत गुरु बनने की यात्रा प्रारम्भ की थी।

दोस्तों आप सभी स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें!!! आज के लिए बस इतना ही अगले अंक में फिर मिलेंगे ...जय हिन्द, जय भारत...