इस जग में
निंदा के हैं, रूप कई,
कहीं
खोट वश, कहीं चोट वश,
कहीं
प्रेम वश, कहीं द्वेष वश,
रूप
गिनाती अलग-अलग पर,
अर्थ
बताएं एक समान,
एक
तरफ परिभाषित हैं तो,
दूजी
ओर अपरिभाषित,
निर्भर
करते कैसे लेंगे लोग इसे,
मंन
अधीर कर या फिर हो संयमित,
इस जग में
निंदा के हैं रूप कई....
दोस्तों, आज हम 21वीं सदी के ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां से आगे का रास्ता
तकनीकों के माध्यम से लाई गई आधुनिकता द्वारा सफलता की बुलंदी की ओर इस प्रकार बढ़
रहा है जहां पहुँचने से पहले हम में से अधिकतर लोग अपने जीवन में किसी भी तरह की
आलोचनाओं को दर किनार करते दिखलाई दे जाते हैं, लेकिन अतीत
के बीते साक्ष्य और वर्तमान को आगे लेकर बढ़ता भविष्य आलोचनाओं की महत्ता को उसी
प्रकार घोषित करता है जैसे कि हमारी अधीरता प्रशंसा को सुनने की ओर हमें हर पल
अग्रसर दिखाई देती है। ऐसे में, इस प्रश्न का उठना अवश्यसंभावी
हो जाता है कि क्या हमारे जीवन में लक्ष्य तक पहुँचने की क्षमता केवल प्रशंसा की
पास ही सीमित है? तो इसका सीधा सा उत्तर है कि बिल्कुल नहीं।
आमतौर पर साक्ष्यों पर आधारित तथ्य तो इसी ओर इशारा करते हैं कि प्रशंसा के विपरीत
की गई आलोचनाओं ने भी इस धरा को अभूतपूर्व और अनमोल रत्न प्रदान किए हैं जिनके
पदचिह्नों पर चलकर आज ये समग्र विश्व मानवता का एक लंबा सफर तय कर पाने में सफल हो
पाया है।
दोस्तों, ये ही धरती है जहां भगवान बुद्ध, भगवान राम और
भगवान कृष्ण को भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन क्या
उन्होने इन आलोचनाओं से सहम कर या क्रोध या नफरत वश कोई विनाशकारी फैसले लिए? नहीं न? बल्कि उन्होने हम सभी को जीवन जी लेने की
वो सीख दी जिसपर चलकर हम इन आलोचनाओं को अपना शस्त्र बनाएँ और सफलता के नए आयाम रच
सकें। हमने ये अक्सर देखा और परखा है कि हमें अपनी रोज़मर्रा जीवनचर्या में कहीं न
कहीं लगभग प्रतिदिन आलोचनाओं का सामना करना ही पड़ता है, फिर
चाहे हम छात्र जीवन जी रहे हों या उससे एक कदम आगे बढ़ जिंदगी के नए प्रांगण में
कदम रख चुके हों, हमारा सामना प्रशंसाओं के साथ आलोचनाओं से
भी होता ही है और ऐसी परिस्थिति में हम करते क्या हैं – हम प्रशंसा को तो गले लगा
लेते हैं लेकिन आलोचना सुनते ही हमारे शरीर की नकारात्मक ऊर्जा न केवल सक्रिय हो
जाती है बल्कि हमारे चारो ओर एक ऐसा घेरा बना देती है जिसमें हम मेहनत से हासिल की
गई अपनी सारी सफलता को एक पल में त्यागने के लिए खुद को मना लेते हैं। लेकिन क्या
ऐसा करना सही है? यदि इस सवाल का जवाब आप अपने आप से पूछेंगे
तो इसका आपका उत्तर भी वहीं मिलेगा जहां से ये सवाल आया है,
क्या आपने प्रशंसा सुनते वक्त भी यही किया था? अगर नहीं, तो फिर आप आलोचना के लिए ऐसा दोहरा रवैया क्यों अपना रहे हैं?
दोस्तों, मेरा मानना है कि जिस प्रकार प्रशंसा हमें नित नए लक्ष्य की ओर बढ़ने के
लिए प्रेरित करती है उसी प्रकार आलोचना हमें अंदर पनप रहे अवगुणों को समझने और
उन्हें दूर कर प्रशंसा का पात्र बनाने का रास्ता भी दिखलाती है। फिर ऐसे में
आलोचना से मिलने वाली हमारी ये प्रतिक्रिया ऐसी क्यों है?
क्यों नहीं हम आलोचना को अपनी तरक्की के काम आने वाली वो सीढ़ी बना लेते जिससे हमें
खुद में सुधार लाकर आगे बढ़ने की प्रेरणा अनवरत मिलती रहे।
दोस्तों, तभी तो महान संत कबीरदास जी ने भी आलोचना की महत्ता को स्वीकारते हुए समाज
को ये संदेश दिया:
“निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिना
पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाए॥
जी हाँ
दोस्तों, ये निंदक ही हैं जो आपकी निंदा (आलोचना) कर आपको आपकी कमियों से रूबरू
कराते हैं और हमारे अंदर की ये कमियाँ ही तो हैं जो बिना आलोचना के कालिदास को महाज्ञानी
कालिदास कहलाने और तुलसीदास को महापंडित तुलसीदास कहलाने से रोकती रही हैं। इसलिए
कभी भी घर, दफ्तर या किसी भी सार्वजनिक स्थान पर किसी के
द्वारा आपकी आलोचना की जाए तो आप फिर समझ लीजिये कि ये वो संकेत है जो आप में
सकारात्मक ऊर्जा जागृत करने के लिए आपको प्रेरित कर रहा है। आलोचनाओं को लेकर एक
चेतावनी ये भी है कि नकारात्मकता के साथ ग्रहण की जाने वाली आलोचना आपकी स्थिति भी
अँग्रेजी भाषा के महान कवि “जॉन कीट्स” और “शैली” की भांति
बना सकती है, जिन्होने अपनी रचनाओं के लिए मिलने वाली झूठी
आलोचनाओं के चलते जीवन को ही दांव पर लगा दिया।
दोस्तों, आज अपने इस लेख के लिए आलोचना जैसे संवेदनशील विषय चुनने का मेरा
अभिप्राय बस इतना है कि जब भी आप अपने जीवन में आलोचनाओं को सुनें तो उसपर अपना
ध्यान केन्द्रित करने की बजाय अनवरत अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें क्योंकि आप सभी
ने एक बात तो सुनी ही होगी कि जब वृक्ष फलों से लद जाता है तभी उसपर पत्थर फेंके
जाते हैं, तो फिर क्या बस इतना समझ लीजिये कि आप में जरूर
कुछ अच्छाइयाँ हैं जो आपको आलोचना सुननी पड़ती है। सीधे शब्दों में अगर कहूँ तो
आलोचना का महत्व आपके जीवन को सफल बनाने के लिए उसी भांति है जिस भांति प्रशंसा का
क्योंकि आलोचना और प्रशंसा दोनों जीवन में आगे कैसे बढ़ें इसी विकल्प को तैयार करने
का मार्ग दिखलाती हैं।
बस इन्हीं
शब्दों के साथ आज के लिए इतना ही, अगले अंक में किसी रोचक विषय के
साथ फिर मिलूँगी तब तक के लिए...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें