अंबर शीश झुकाए है
।
कल्पित छल की ओढ़
चुनरिया,
नदिया जल बरसाए है
।।
अठखेली करती वसुधा
से ममता,
सीख हमें दे जाए
है ।
तरु पल्लव की पुष्प
मल्लिका,
हर्ष गान जब गाए
है॥
प्रकृति सहेजे माँ
स्वरूप को,
जब पुष्पों की कोमल
पंखुड़ियाँ,
मंद बयार सहलाए है
।
माँ की महिमा इस
जग में,
सूरज चाँद भी गाएँ
हैं ॥
सूरज की स्वर्णिम
आभाएँ,
जब माँ-आशीष में
मिल जाए है।
चन्द्र-चाँदनी की
शीतलता
माँ लोरी संग गाए
है ॥
प्रकृति मिलन का
यही आईना,
हम सब मातृ रूप में
पाएँ हैं’ ।
धरती में है माँ
की खुशबू...
स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”
प्रस्तुत पंक्तियों
में “कल्पित जल की ओढ़ चुनरिया, नदिया जल बरसाए है अर्थात
नदी जब पानी के लहरों को लेकर कर पहाड़ों से चलती है तो धरती माँ की गोद में कही उठती
है तो कहीं गिरती है, कहीं छुपती है तो कहीं सामने आ जाती है।
कल्पनाओं का ये बादल लिए जब वो आगे बढ़ती है तो धरती माँ उस पर अपना सारा स्नेह लुटा
देती हैं। प्रकृति का दिया ये संदेश उन सभी संतानों के लिए है जिनकी माँ सारे बंधन
से परे होकर अपनी ममता आजीवन अपने बच्चों पर लुटाती हैं फिर चाहे उसमें समर्पण, त्याग, बलिदान, आलोचना और निंदा
जैसी अनगिनत मनोभावनाओं का उतार-चढ़ाव भी शामिल क्यूँ न हो...Happy Mother’s Day!!!
मातृ दिवस पर बहुत अच्छी माँ सी कविता प्रस्तुति हेतु धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजी आपका आभार...
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