Hindi Writing Blog: अक्तूबर 2023

बुधवार, 4 अक्तूबर 2023

सिक्के के दो पहलू

 

Life's two parts

रिश्तों की डोर को,

चाहे जितना सुलझा रे मना!

गलतफहमियों की अगर,

गाँठे लगा दी है ऐ जिंदगी तूने,

तो अबूझ पहेली से बन,

घूमा करेंगे जग में,

न चैन मिलेगा न सुकून की छांव होगी,

बस छोटी सी बात पर शुरू हुई,

तल्खियों के साथ ही,

जिंदगी फ़ना होगी!!!

                                                 स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

 

सुबह के 8:50 हो रहे हैं, श्रेया ने अभी-अभी ऑफिस में कदम रखा है। तभी अचानक सानिध्य बॉस के केबिन से निकलकर तेजी से बाहर जाते वक्त श्रेया से टकरा जाता है, फिर बिना रुके उसे सॉरी बोलते हुए वो निकल जाता है। श्रेया बॉस के केबिन का दरवाजा खुला देख अंदर जाती है, तो वो देखती है कि बॉस का लॉकर खुला हुआ है, सारा सामान इधर-उधर फैला है। उसे ये सब देखकर लगता है कि सानिध्य ने बॉस के लॉकर को तोड़कर पैसे निकाल लिए और भाग गया। वो उसपर चोरी का इल्जाम लगाते हुए बाहर आती है। सामने से आ रहे ऑफिस बॉय को पुलिस बुलाने को कॉल करती है। तब तक पूरा स्टाफ जुट चुका है। थोड़ी देर में पुलिस भी आ पहुँचती है। पुलिस सानिध्य का फोन ट्राई करती है तो श्रेया बॉस का। दोनों के फोन स्विच ऑफ हैं। पूरे ऑफिस में हड़कंप मच जाता है। बातें होने लगती हैं। कहीं सानिध्य ने बॉस के साथ कुछ उल्टा-सीधा तो नहीं कर दिया? केबिन में बिखरे सामान और ताजा माहौल को सुव्यवस्थित करने और सबके बयान लेने में पुलिस को दो घंटे लग जाते हैं। तभी दरवाजे की ओर से बॉस श्रीधर अंदर आते दिखते हैं। उनकी अजीब सी हालत देखकर सब उनकी ओर दौड़ पड़ते हैं। वो सबको दिलासा देते हैं कि अब मैं पूरी तरफ ठीक हूँ और मेरे कारण जिस आदमी को चोट आई वो भी अब खतरे से बाहर है। ऑफिस में खड़े सभी लोग आवक होकर पूछते हैं “क्या!”

हाँ, वो अपनी ऑफिस का यंग बॉय सानिध्य है न, आज उसने एक नहीं दो जिंदगियाँ बचाईं। हुआ यूं कि मैं घर से ऑफिस के लिए निकला तो गोल गुंबद वाले चौराहे पर मेरी गाड़ी से एक बुजुर्ग पुरुष को झटका लगा, वो गिर पड़े, शायद जल्दी में थे। मैं कुछ समझ पाता तभी सानिध्य वहाँ आ गया। उसने उनके सर से बहते खून को रोकने के लिए कपड़ा बांधा और मेरी गाड़ी में उन्हें बैठा ही रहा था कि मेरे भी सीने में अचानक दर्द शुरू हो गया। दर्द ऐसा था कि मैं गाड़ी चलाने की हालत में नहीं था। उसने मुझे और उन वृद्ध महाशय दोनों को किसी तरह गाड़ी में डाला। मुझे लगा पैसों की ज्यादा जरूरत होगी इसलिए आनन-फानन में मैंने उसे चाबी देकर हॉस्पिटल जाने से पहले लॉकर से पैसे लाने को भेजा। फिर पैसे लेकर हम हॉस्पिटल गए और अब  उसकी वजह से हम दोनों सुरक्षित हैं। इतने में सानिध्य एक नायक की भांति ऑफिस में दाखिल होता है। श्रेया हतप्रभ रह जाती है।

सभी तालियाँ बजाते हैं और श्रेया को कुछ समझ नहीं आता कि वो अब क्या करे?

तभी श्रीधर ऑफिस कर्मचारियों के बीच पुलिस को देखकर चौंक पड़ते हैं। वो कहते आप लोग यहाँ? तो पुलिस ने कहा कुछ नहीं सर इन मैम को कुछ गलतफहमी हो गयी थी जिसके चलते इन्होने हमें बुला लिया था, अब हम चलते हैं। इतना कहकर वो चले गए। ले

किन श्रीधर के ऑफिस में घटे इस घटनाक्रम में दोस्तों आप जानना नहीं चाहेंगे कि श्रेया ने जो भूमिका निभाई उसके पीछे क्या था? तो इसका सीधा सा उत्तर है दोस्तों ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमारे इर्द-गिर्द जो भी घटनाक्रम घटित होते हैं उनके हमेशा दो पहलू होते हैं और हमारे साथ अक्सर ऐसा हो जाता है कि सच्चाई को जाने बगैर हम सामने दिख रहे मात्र एक पहलू को ही देखकर कोई धारणा बना लेते हैं जिससे हानि होने की संभावना काफी ज्यादा होती है और कभी-कभी तो ऐसा भी देखा गया है कि हम दूर से सुनी-सुनाई बातों को ही लेकर अपनी खुद की एक अवधारणा विकसित कर लेते हैं। हमारा दिमाग जैसा सोचता है उसे ही सच मान लेते हैं। वो भी बिना किसी छान-बीन में उलझे। लेकिन वास्तविकता ये है कि सच्चाई ठीक इसके उलट हो सकती है।

अभी हाल ही में चीन से एक वाकया आया कि एक एक बच्चे ने सिर्फ होमवर्क करने के डर से बोर्ड पर हेल्प लिखकर खिड़की से बाहर टांग दिया। पड़ोसियों के साथ पुलिस के भी हाथ-पैर फूल गए कि ऐसा क्या हुआ? लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो बात बहुत साधारण सी निकली। आज की तेजी से बदलती इस दुनिया में हम अक्सर ये गलती कर जाते हैं कि कानों सुनी पर यकीन न होने पर आँखों देखी पर भरोसा कर बैठते हैं और जीवन में ऐसे-ऐसे फैसले ले लेते हैं जिनको बाद में बदलना हमारे खुद के लिए मुश्किल हो जाता है। इसलिए किसी भी शंका या संदेह को हमारे मस्तिष्क पर हावी होने देने से पहले, घटनाक्रम की सच्चाई ठीक उसी प्रकार जांच लेने चाहिए जिस प्रकार हम किसी सिक्के को दोनों तरफ से देखकर ही ये तय कर पाते हैं कि सिक्का खरा है या खोटा।

माँ ने देखा बच्चे आज देर रात तक जग रहे हैं, सोचा पक्का इनका रातभर जागकर टीवी पर आ रही मूवी को देखने का प्लान होगा। पर हकीकत इससे कोसों दूर थी। बच्चे माँ के सोने का इंतजार इसलिए कर रहे थे ताकि उनके और पापा की मैरिज एनिवर्सरी पर वो सरप्राइज़ पार्टी दे सकें।

पति-पत्नी के बारे में ऑफिस में बैठे-बैठे सोचता है। आज मैं अपना पर्स घर पर भूल गया। निश्चित सुमेधा ने पैसे लेकर अपने लिए नई साड़ी खरीदी होगी। पति जब शाम को घर आता है तो देखता है टेबल पर शर्ट रखी है। हाथ में चाय का कप पति को पकड़ाते हुए सुमेधा कुर्सी पर बैठते हुए कहती है – आपको चार लोगों के बीच जाना होता है न, आप तो अपने लिए कुछ खरीदेंगे नहीं, मैंने सोचा मैं ही खरीद लूँ। आप अपना पर्स आज घर भूल गए थे और बड़े दिनों से मेरी इच्छा थी। आप से पैसे मांगती तो सैकड़ों काम बताकर आप अपने ऊपर पैसे खर्च करने के पैसे न देते।

दोस्तों हमारी जिंदगी है ही ऐसी मानवीय संवेदनाएँ हमें चीजों का नकारात्मक पहलू पहले दिखाती हैं, इसलिए हम सभी कहीं न कहीं अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में हर दिन कुछ नया सीखने के बावजूद इनके ताने-बाने में उलझ जाते हैं।

राघव अपने घर-परिवार से दूर गाँव में अपने बूढ़े माँ-बाप को छोड़कर एक कमरे के घर में बड़े शहर में रह रहा है। बाबूजी को लगता है बेटा जानबूझकर हमें अपने साथ नहीं ले जाता, लेकिन उधर राघव के साथ सच्चाई कुछ और है। शहर के गगनचुम्बी इमारतों में उसे अपने परिवार के रैन बसेरे के लिए मात्र एक कमरे का छोटा सा घर मिला जिसमें बा मुश्किल मुन्नी और पिंकू को उनकी माँ के साथ राघव रख पाता है वो भी इस आस में की शहर के स्कूल में पढ़-लिखकर शायद पिंकू और मुन्नी भविष्य में कुछ बन जाएँ। तो पीढ़ियों से चली आ रही परिवार की गरीबी दूर हो जाए। वो भी ज्यादा न पढ़ पाया इसलिए नौकरी अच्छी न मिली। इसलिए मजबूरी में अपने माँ-बाप से दूर यहाँ इस शहर में घुटन भरे एक कमरे में जिंदगी के दिन निकालने पड़ रहे हैं। बाबूजी और माँ को अगर यहाँ लाया तो गाँव की शुद्ध हवा जो उन्हें लंबा जीवन दे रही है वो भी यहाँ नसीब न होगी और ऊपर से अम्मा का पूरे गाँव में घूम-घूमकर अपने शरीर को मजबूत रखना भी तो बेहद जरूरी है। भगवान करे दोनों सौ साल जिएँ ताकि बच्चों को बड़ाकर मैं उन दोनों के साथ अपना जीवन फिर जी सकूँ। लेकिन दोस्तों राघव की इस गहरी सोच को सिक्के के पीछे छिपे हिस्से में मौजूद होने के कारण बाबूजी को दिखाई दे रहा था तो सिक्के के सामने का वो पहलू जिसे तेजी से भागती ये दुनिया यथार्थ का सच मानती है। सच्चाई तो ये है कि आज का हर इंसान कल को बेहतर बनाने की आस में अपने आज से कहीं न कहीं समझौता कर रहा है। लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि हम अपने दिमाग की गढ़ी बातों को अपने दिल से मनवाने पर मजबूर कर दें और उसे वही दिखाएँ जो रिश्तों को ऐसा बंजर बना दे जिसपर भावनाओं की फसल दोबारा कभी न उगे।

 दो सिक्कों के छोर वाले हमारे जिंदगी के इन उलझे रिश्तों को सुलझाने की मेरी ये छोटी सी कोशिश है। उम्मीद करती हूँ कि कहानियों पर आधारित ये लेख आपको रोचक और प्रासांगिक लगा होगा। आज के लिए इतना ही अगले अंक में फिर मिलेंगे तब तक के लिए जय हिन्द जय भारत।