बचपन बोलने और सुनने
मात्र से ही हमारे कानों में सुनहरी यादों की बंद आलमारी फिर से खुल जाती
है और ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि ये वही बचपन है जिसे हम सभी अपने जीवन के यादगार लम्हों
की तरह जो जीते हैं और इससे जुड़ी हर एक सीख और शिक्षा को हम अपनाकर न केवल अपने भविष्य
का निर्माण करते हैं अपितु खुद से जुड़े इस समाज व इस राष्ट्र को भी नयी दिशा देने की
क्षमता विकसित कर लेते हैं, लेकिन यदि किन्हीं कारणों से हमारा ये
बचपन आहत हो तो इससे न केवल हमारा खुद का नुकसान होता है बल्कि कहीं न कहीं ये एक बचपन
भी पूरे राष्ट्र को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है| इसीलिए
हमारे देश में पल रहे हर एक बचपन को हमें न केवल सशक्त बनाना होगा अपितु उसे पूरे राष्ट्र
को समृद्ध व खुशहाल बनाने वाला भी बनना होगा|
दोस्तों! आज
अपने इस लेख में मैंने भारत के गाँव में पल रहे बचपन यानि हमारे उन नन्हें-मुन्हों
को सशक्त बनाने की पहल का समर्थन किया है जो हमारे देश के आने वाले कल का भविष्य लिखेंगे| जैसा कि हम सब जानते हैं कि आज के मौजूदा दौर के नगरों और महानगरों की तुलना
में हमारे गाँव में रह रहे बच्चे उतने सशक्त नहीं बन पा रहे जैसे बनने की उन्हें इस
वक्त में जरूरत है| हालाँकि उन्हें सशक्त बनाने के लिए हमारे
राष्ट्र का नेतृत्व भी पूर्णतया कटिबद्ध है और वो इसके लिए समय-समय पर ठोस रणनीतियों
के जरिये कदम भी उठाता है लेकिन ग्रामीण इलाकों में रह रहे लोग अशिक्षा के चलते इसका
भरपूर लाभ नहीं उठा पाते, वो अपने बच्चों को स्कूल केवल छात्रवृत्ति
और मिड-डे मील पाने की लालसा में भेजते हैं| ऐसे माहौल में हम
सबको मिलकर उनकी इस अवधारण को बदलने में उनके माता-पिता की मदद करनी होगी ताकि उनके
जीवन स्तर में बदलाव दर्ज हो और वो हमारे नन्हें-मुन्हों की जीवन शैली में बदलाव लाने
योग्य बन सकें, वो स्वच्छता के साथ स्वास्थ्य को भी अपनाएं जिससे
हमारे नौनिहाल स्कूल से लेकर घर तक के फासले को उसी प्रकार तय करें जैसे नगरों-महानगरों
में रहने वाले बच्चे करते हैं|
दोस्तों! हमारे
देश की 75% आबादी गाँव में रहती है| कहते हैं हमारे गाँवों
में ही हमारा भारत बसता है, ऐसे में इन गाँव में रह रहे इन बच्चों
को शासन प्रशासन द्वारा मुहैया कराई जा रही समग्र सुविधाओं के साथ उनके माता-पिता को
आगे आकर अपने बच्चों को सशक्त बनाना होगा और उनके इस कदम में हम भारतीय नागरिकों को
भी जहां तक अवसर मिले और जितना हम कर सकें उनका सहयोग करना होगा क्योंकि हम सबकी एक
छोटी सी कोशिश किसी बच्चे की जीवन धारा बदल दे तो इससे बढ़के न कोई जनसेवा है, न कोई राष्ट्रसेवा|
दोस्तों! मैंने
महसूस किया है कि भारत के गाँव में पलते ये नौनिहाल प्रतिभा संपन्नता व योग्यता के
मामले में कहीं से कम नहीं, जरूरत है बस इन्हें दिशा देने की क्योंकि
भारत के गाँव में पलता एक-एक बच्चा सशक्त और सक्षम बन जाये तो हमारे राष्ट्र का भाग्य
परिवर्तन इस हद तक सुनिश्चित होगा जिसपर आने वाली पीढ़ियाँ खुद को गौरान्वित महसूस करेंगी|
तो आइये सशक्त
ग्रामीण बचपन की मुहीम को समर्थन देकर नये कल की इस पहल का स्वागत करें|
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