Hindi Writing Blog: सितंबर 2020

सोमवार, 28 सितंबर 2020

चीन के लिए कभी स्वर्ग था भारत

 

Buddhism












चीन, चीन, चीन! दोस्तों, जब से वर्ष 2020 आरंभ हुआ है तब से लेकर मेरे इस लेख के लिखे जाने तक पूरी दुनिया को खून के आँसू रुलाने वाले चीन का नाम आज सभी के जेहन को आक्रोश से भर देने के लिए काफी है क्योंकि आज इस दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है उसके लिए सभी चीन को उत्तरदाई मानते हैं और अगर पिछले घटनाक्रमों पर नजर डालें तो ये बिल्कुल सही भी है बावजूद इसके कि 3 करोड़ 31 लाख लोगों को संक्रामक बीमारी की चपेट में लेकर और लगभग 10 लाख लोगों को मौत के घाट उतार कर भी चीन के सर से विश्व नेतृत्व पर कब्जा जमाने की महत्वाकांक्षा का अंत नहीं हुआ है, वो तो अभी भी नित नयी चालें चल रहा ताकि सुपरपावर अमेरिका से ग्लोबल लीडर का तमगा छीनकर उस पर कब्जा जमा सके और इसे हासिल करने के लिए उसने अपने पड़ोसी देश भारत की सीमाओं पर जो गंध फैला रखी है वो न केवल इस एशियाई महाद्वीप की शांति के लिए खतरा बन गई है बल्कि पूरी दुनिया के 2 गुटों में बट जाने के चलते अब विश्व शांति पर भी खतरा मंडराने लगा है। दोस्तों, अगर ऐसा होता है तो समकालिक परिस्थितियों में ये इन दो देशों की तबाही के साथ वैश्विक तबाही का भी कारण बन सकता है। ऐसे में अक्सर हमारे मन में ये सवाल उठ खड़ा होता है कि चीन का कम्युनिस्ट प्रशासन इन सब के लिए जिम्मेदार है, तो उत्तर है हाँ, बिल्कुल क्योंकि चीन ने जिस भारत की सीमाओं पर अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं वही भारत कभी चीन के लिए स्वर्ग से भी बढ़कर था, जी हाँ, स्वर्ग से भी बढ़कर और वजह बिल्कुल स्पष्ट है वहाँ बौद्ध धर्म का होना।

दोस्तों, ये बात 65वीं ईस्वी की है जब वहाँ हान वंश सम्राट मितांगी ने अपने स्वप्न में भगवान बुद्ध के दर्शन किए तो उसके बाद उन्होने अपने दूतों को भारत भेजकर बौद्ध भिक्षुओं और बौद्ध ग्रन्थों को लाने के आदेश दिये। उनके इस आदेश पर भारत से बौद्ध भिक्षु धर्मरक्ष और कश्यप मातंग भगवान बुद्ध की मूर्तियों और ग्रन्थों के साथ चीन पहुँचें और इस तरह चीन में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई। उसके बाद तो ये सिलसिला जैसे चल पड़ा चौथी शताब्दी में फाहियान और छठी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हवेन सांग ने भारत भ्रमण कर भारतीय ज्ञान, धर्म और संस्कृति को चीन पहुंचाया लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी ने इन सब पर पानी फेर दिया।

दोस्तों, चीन की समृद्धि प्राचीनकालीन भारतीय समृद्धि के आगे कहीं नहीं टिकती लेकिन उसकी महत्त्वाकांक्षाएँ शिया राजवंश (गुफाओं के साक्ष्य से प्रथम प्रमाणित राजवंश) परंतु प्रथम प्रत्यक्ष राजवंश के रूप में मौजूद शांग वंश से लेकर क्विंग राजवंश (अंतिम राजवंश) तक चलती रहीं और वजह थी इनकी विस्तारवादी नीतियां चाहे वो 220 ईसा पूर्व से 206 ईस्वी के बीच हान वंश द्वारा कोरिया, वियतनाम, मंगोलिया या मध्य एशिया तक सीमाओं का बढ़ाया जाना हो या वर्तमान में हाँगकाँग, तिब्बत, ताइवान, नेपाल और भारत पर एकाधिकार करने की होड़ हो, उसकी इच्छाओं का अंत नहीं। प्राचीनकाल में पूरी दुनिया को रेशम और कागज का निर्यात, सिल्क रूट (रेशम मार्ग) से करने वाला चीन आज भी अपने व्यापार के लिए उसे दोबारा शुरू करने की योजना को पहले ही अंजाम देने की शुरुआत कर चुका है पर रास्ते में भारत जैसे स्वाभिमानी राष्ट्र द्वारा रास्ता रोके जाने से उसका विचलित होना भी अवश्यम्भावी है।

Indian Flag


भारत अपनी सीमाएं मजबूत करता है तो दर्द चीन को होता है, ऐसा इसलिए है दोस्तों क्योंकि वो कहते हैं न एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं और दक्षिण एशिया की इस म्यान में तो एक तरफ चीन की चालबाजियों भरी आक्रामकता है तो दूसरी ओर स्वाभिमान और आधुनिकता के सांचें में सजी भारत की मजबूती। ऐसे में दुनिया में स्थिर शांति के लिए दोनों देशों का कूटनीतिक रास्तों से समाधान खोजना ही प्रासांगिक होगा बावजूद इसके चीन अपने मंसूबों को नए-नए तरीकों का इस्तेमाल कर और बल दिये जा रहा है जिसका ताजातरीन उदाहरण है अभी हाल ही में आया अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का ये बयान कि चीन अब दुनिया को अंधा और बहरा करने की तैयारी के लिए हथियार बना रहा है, वो भी स्पेस सेटेलाइट वार के जरिये दुनिया को एक तरफ इतनी बड़ी बीमारी देकर भी चीन की नापाक हसरतों में कोई कमी नहीं आई है। वो अब नए मंसूबे पालकर उन्हें पूरा करने में लग चुका है। उसकी ये नीतियाँ विश्व को किस दिशा में ले जाएंगी इसका निर्धारण भले ही तारीख करे लेकिन अभी तो उसकी नीतियों की सजा सारी दुनिया भुगत ही रही है।


सोमवार, 14 सितंबर 2020

हिन्दी दिवस पर लें संकल्प

 

Hindi Divas

आज १४ सितम्बर है और आज के इस दिन को हम सभी “हिन्दी दिवस” के रूप में विचारों के आदान-प्रदान से मंगलमयी होने की शुभकामनाएँ देकर मना रहे हैं परंतु क्या हमारे सिर्फ इस एक दिन के उत्सव से हमारी मातृभाषा/राजभाषा को वो सम्मान मिल पाएगा जिसकी इसे जरूरत है? शायद नहीं। इसका सही सम्मान तो तब होगा जब इस भाषा से जुड़े साहित्य और उनसे जुड़े रचनाकारों को अंतराष्ट्रीय स्तर पर इंग्लिश भाषा के समान पहचान और सम्मान मिले और मुझे “हिन्दी नहीं आती” कहकर गर्व महसूस करने वालों को भी इस भाषा की महत्ता का पता चले।

दोस्तों,  हिन्दी भाषा की असीम वेदना का थाह तो हमें सन् २०२० और उससे पूर्व में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली बोर्ड परीक्षाओं से होता है जहाँ छात्र अपनी राजभाषा हिन्दी में ही रिकार्ड स्तर पर असफल हो रहे हैं, उनकी ये असफलता समाज में लगातार हिन्दी के प्रति उपजी हीन भावना के कारण ही तो है जो हम सभी के लिए चिंतनीय है और इसी के चलते ये सोचना और भी अनिवार्य हो जाता है कि धीरे-धीरे ही सही जब पूरी दुनिया हिन्दी की सशक्तता स्वीकार कर रही है तो माँ भारती की सन्तानें पीछे क्यों हैं?

     इसलिए मित्रों! आइये, आज हिन्दी दिवस के इस पावन दिन हम अपनी भावी पीढ़ी को हिन्दी भाषा की ज्ञानगंगा और समृद्धि धारा से परिचित कराने का संकल्प लें, हम सभी के इस संकल्प में “हिन्दी राइटर कम्युनिटी और “हिन्दी राइटर्स ग्रुप और “हिन्दी राइटिंग ब्लॉग आपकी हर एक पहल का स्वागत करता है क्योंकि इससे हिन्दी के प्रति उपजी समग्र हीन भावनाओं का नाश होगा और हमारी आने वाली पीढ़ी के मन-मस्तिष्क में हिन्दी को लेकर नई ऊर्जा का संचार होगा।

      तो आइये मेरे साथ आप भी दोहराइए...

                        हिन्द की हिन्दी पताका,

                          जब विश्व में लहरायेगी।

                            गूंज उठेगी अ,,,,

                                 तब रंग ये मेहनत लाएगी...

                                        (स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव ”कैलाश कीर्ति”)