आज १४ सितम्बर है और आज के इस दिन को हम सभी “हिन्दी दिवस” के रूप में विचारों के आदान-प्रदान से मंगलमयी होने की शुभकामनाएँ देकर मना रहे हैं परंतु क्या हमारे सिर्फ इस एक दिन के उत्सव से हमारी मातृभाषा/राजभाषा को वो सम्मान मिल पाएगा जिसकी इसे जरूरत है? शायद नहीं। इसका सही सम्मान तो तब होगा जब इस भाषा से जुड़े साहित्य और उनसे जुड़े रचनाकारों को अंतराष्ट्रीय स्तर पर इंग्लिश भाषा के समान पहचान और सम्मान मिले और मुझे “हिन्दी नहीं आती” कहकर गर्व महसूस करने वालों को भी इस भाषा की महत्ता का पता चले।
दोस्तों, हिन्दी भाषा की असीम वेदना का थाह
तो हमें सन् २०२० और उससे पूर्व में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली बोर्ड परीक्षाओं से
होता है जहाँ छात्र अपनी राजभाषा हिन्दी में ही रिकार्ड स्तर पर असफल हो रहे हैं, उनकी ये असफलता समाज में लगातार हिन्दी के प्रति उपजी हीन भावना के कारण ही
तो है जो हम सभी के लिए चिंतनीय है और इसी के चलते ये सोचना और भी अनिवार्य हो जाता
है कि धीरे-धीरे ही सही जब पूरी दुनिया हिन्दी की सशक्तता स्वीकार कर रही है तो माँ
भारती की सन्तानें पीछे क्यों हैं?
इसलिए मित्रों! आइये, आज हिन्दी दिवस के इस पावन दिन हम अपनी भावी पीढ़ी को हिन्दी भाषा की ज्ञानगंगा
और समृद्धि धारा से परिचित कराने का संकल्प लें, हम सभी के इस
संकल्प में “हिन्दी राइटर कम्युनिटी”
और “हिन्दी राइटर्स
ग्रुप” और “हिन्दी
राइटिंग ब्लॉग’ आपकी हर
एक पहल का स्वागत करता है क्योंकि इससे हिन्दी के प्रति उपजी समग्र हीन भावनाओं का
नाश होगा और हमारी आने वाली पीढ़ी के मन-मस्तिष्क में हिन्दी को लेकर नई ऊर्जा का संचार
होगा।
तो आइये मेरे साथ आप भी दोहराइए...
हिन्द की हिन्दी पताका,
जब विश्व
में लहरायेगी।
गूंज उठेगी अ, आ, इ, ई,
तब रंग ये मेहनत लाएगी...
(स्वरचित
रश्मि श्रीवास्तव ”कैलाश कीर्ति”)
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