Hindi Writing Blog: अक्तूबर 2020

रविवार, 25 अक्तूबर 2020

Ram Rajya - Dussehra special

Ram Rajya - Dussehra Special

 दे रही संदेश ये सृष्टि,

पाप का अब नाश हो ।

ऐसे में अब इस धरा पर,  

आपका पुनर्वास हो ।

सो रही माया कहीं,

जीवन कहीं ओझल पड़ा ।  

नभ के हर मण्डल में,  

तेज ओझल हो चला ।

संकीर्ण हुई चाँदनी,

राग भी मद्धम हुआ ।  

अगणित हुई दिशाएँ सारी,  

मस्तक ललाट की स्वर्ण रश्मियाँ,

भयभीत बनी अब नभ थल में,

आओ हे प्रभु राम तुम वापस,

अब हमारे जीवन में ।

मर्यादा की भाव-भंगिमा,

खो गई अब बातों में ।  

दुविधा आन पड़ी धरती पर,

जिज्ञासा भी रोई है,  

सूनी पड़ी अयोध्या में अब,  

राम राज वापस लाओ।

जाने कहाँ चले गए तुम,

सरयू के आँचल के तले ।  

जीवंत वेद पंक्तियाँ,

देती तुम्हें दुहाई अब,  

आ जाओ अब लाल ओ प्यारे,

फिर से अयोध्या तुम्हें पुकारे।

फिर से अयोध्या तुम्हें पुकारे...

       स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)

 

वर्तमान परिस्थितियों में प्रभु राम के आचरण की अनिवार्यता हम सभी के लिए महत्वपूर्ण हो चली है क्योंकि रावण की बुराई अब छद्म वेश धारण किए हमारे इर्द-गिर्द व्याप्त है। इन बुराइयों का अंत हो और सत्य की पुनः स्थापना हो। इसी मंगल कामना के साथ आप सभी को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...

 


सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

दुनिया की आधी आबादी का दर्द

navdurga

 

दोस्तों, शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा के उपासना का पर्व नवरात्र प्रारम्भ हो चुका है बावजूद इसके भारत के अनेक हिस्सों से माँ का रूप कही जाने वाली नारी शक्ति के विरुद्ध हिंसाओं का दौर निरंतर जारी है। ऐसा क्यों है कि एक तरफ हम माँ के रूप मेँ नारी शक्ति को पूजते हैं तो दूसरी ओर पुरुष मानसिकता के दंभ का शिकार हो उनके अस्तित्व को ही मिटाने पर आमदा हैं और ऐसा सिर्फ हमारे देश मेँ ही नहीं है। अगर अपनी दृष्टि को वैश्विक पटल तक दौड़ाएँ तो कमोवेश दुनिया की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली नारी शक्ति का दर्द लगभग समान ही है, फिर चाहे वो मुद्दा यौन अपराधों, लैंगिक भेद-भाव, घरेलू हिंसा, अशिक्षा, कुपोषण, दहेज, उत्पीड़न, कन्या भ्रूण हत्या, असामाजिक असुरक्षा या साइबर अपराध का हो या फिर धर्म या रीति रिवाजों के नाम पर बनाई गई परम्पराओं और रूढ़ियों का, प्रत्येक परिस्थिति मेँ महिलाओं से सिर्फ एक चीज की ही कुर्बानी ली जाती है और वो है स्वतन्त्रता और सम्मान की कसौटी पर गौरव से परिपूर्ण जीवन जीने की और इसमें आहुति डाली जाती है प्रकृति प्रदत्त उन प्राणों की जिनपर ज़िम्मेदारी है इस सृष्टि के नवनिर्माण की।

हालांकि समय की बदलती धारा ने बढ़ते प्रगति चक्र में महिलाओं को कई मोर्चों पर सशक्त बनाया है बावजूद इसके आधी आबादी का एक बड़ा तबका (जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल, ब्रिटिश प्रधान मंत्री मारग्रेट थैचर और थेरसा मे, भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी, शेख हसीना, चंद्रिका रणतुंगा, सानिया मिर्जा, स्टेफी ग्राफ, इन्दिरा नूई और ऐसे न जाने कितने नाम जिन्हें Forbes पत्रिका द्वारा घोषित महिलाओं की सूची में प्रतिवर्ष शामिल किया जाता है) से अलग भी है जिसे साधारण से दिखने वाले इस जीवन के प्रत्येक मोर्चों जैसे शिक्षा, सामाजिक स्थिरता, आर्थिक सशक्तता एवं समानता तथा शारीरिक दृढ़ता के साथ मानसिक सबलता आदि पर सावधानी और जागरूकता से सधे अपने कदमों को आगे बढ़ाना पड़ता है क्योंकि दुनिया भर से आए सर्वे महिलाओं की स्थिति को कहीं भी संतोषजनक नहीं मानते, फिर वो चाहे अमेरिका में हो रही घरेलू हिंसाओं का मामला हो या फिर सीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, सऊदी अरब जैसे देशों में महिला प्रताड़ना का सिलसिला हो। अगर बात अपने देश भारत की हो तो 16 दिसंबर 2012 में पूरे देश की आवाज बने निर्भया केस की आवाज कभी ठंडी पड़ी ही नहीं बस जगहें बदलती हैं, वारदात और उसकी आक्रामकता नहीं कभी राजस्थान, कभी तेलंगाना तो कभी उत्तर प्रदेश पूरे देश का यही हाल है। ये आकड़ें तो सिर्फ उन घटनाक्रमों के हैं जो Rare of Rarest के श्रेणी में आते हैं, इनमें हिंसाओं के और रूप तो जुड़ने बाकी हैं। अगर उन सबको जोड़ दें तो आधी आबादी का ये दर्द इतना बड़ा सैलाब लाएगा कि इनसे जुड़े क़ानूनों का भी वजूद खत्म हो जाएगा। जिनके बनाए जाने से ज्यादा अमलीकरण किए जाने के अभाव से विश्व का समग्र शासनतंत्र जूझ रहा है। अनिवार्यता तो बस इस बात की है कि जो कानून इन अपराधों के लिए बनाए जाते हैं उनका पूर्ण पालन हो।



दोस्तों, महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुष्कर्म जैसे अपराध के लिए अभी हाल ही में दक्षिण एशियाई देश बांग्लादेश ने फांसी का प्रावधान किया है और हमारे यहाँ भी काफी दिनों से इसकी मांग चल रही है जबकि हैदराबाद में हुए डॉo प्रियंका रेड्डी केस में तो स्थानीय सरकार ने तुरंत ऑन-स्पॉट मृत्युदंड दे दिया बावजूद इसके अपराधी निरंकुश और अपराध निरंतर जारी है। इन अपराधों की तीव्रता इस ओर इशारा करती है की वाकई दरकार किसी न्याय से जुड़े कानून को बनाए जाने की है जिससे इस आधी आबादी के आँसू पोछे जाएँ या फिर उस न्याय की जिसे समाज के प्रत्येक सदस्य को इनके सम्मान रूप में इन्हें देना चाहिए और इसके लिए मेरा मानना है कि महिलाओं के प्रति हम सब को अपने रवैये में परिवर्तन लाना होगा यहाँ तक की खुद महिलाओं को भी, क्योंकि घरेलू हिंसा के मामले में तो अधिकतर महिलाएं ही महिलाओं की दोषी मानी जाती हैं। फिर इस बात से फर्क नहीं पड़ता की आप पुरुष हैं या महिला जरूरत है तो उस जागरूकता की जिसे हम सब को मिलकर इस समाज में लानी होगी क्योंकि हम बदलेंगे तभी ये समाज बदलेगा।

आइये इस नवरात्रि कन्या पूजन से आगे बढ़ स्त्रियों के प्रत्येक रूप को वो सम्मान देने और अधिकार देने की पहल करें जिसकी वो हकदार हैं।

तो ये था दर्द आधी आबादी का – जागरूकता के इस मुहीम का हिस्सा बनिए और कमेंट बॉक्स में अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने की पहल करिए।

                                                               धन्यवाद