Hindi Writing Blog: मई 2021

सोमवार, 31 मई 2021

करोना ने कैसे रोकी शिक्षा की रफ्तार

 

Child Education Impacted due to COVID












दोस्तों, दिसंबर 2019 को चीन के वुहान शहर से शुरू हुए sars-cov-2 ने आज की तात्कालिक परिस्थितियों तक पूरी दुनिया में विनाश की एक ऐसे लीला रची है जो न केवल हमसे हमारे अपनों की जिंदगियाँ छीन रहा है अपितु अपने पीछे कभी न भूलने वाली एक ऐसे अराजकता छोड़ता जा रहा है जो विकास और खुशहाली के मार्ग पर तीव्र गति से(2019 से पहले) दौड़ने वाली सम्पूर्ण वैश्विक मानव सभ्यता को भी छिन्न-भिन्न करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। इस वायरस की मार ऐसी है कि वैक्सीन जैसे समाधान के उपलब्धता के बावजूद दुनिया को इससे छुटकारा नहीं मिल पा रहा है और वर्तमान दशा का यदि विश्लेषण करें तो अभी स्थिति को सुधरने में काफी वक्त लगने की आशंका साफ दिखाई दे रही है। ऐसे में इस वायरस की गति ने जिस एक चीज पर सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव छोड़ा है वो है बच्चे और उनका बचपन।

यदि बच्चों की दुनिया को और करीब से देखने का प्रयास करें तो एक तरफ ये वायरस उनसे खुली हवा में खेलने कूदने का अधिकार छीन कर उनके शारीरिक विकास को अवरुद्ध करता दिखाई दे रहा है तो दूसरी ओर शिक्षा के अधिकार पर लगे ग्रहण द्वारा उनके मानसिक विकास में भी बाधा खड़ी कर पाने में काफी हद तक सफल होता प्रतीत हो रहा है।

जबकि हम पूर्व के आंकड़ों पर नज़र डालें तो करोना पूर्व की स्थिति में भारतीय शिक्षा प्रणाली काफी विकसित अवस्था में दिखलाई दे रही थी। सर्व शिक्षा अभियान की तहत 86th संविधान संसोधन ने तो 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा को मौलिक अधिकार रूप में निशुल्क एवं अनिवार्य बना दिया गया था। समाज में शिक्षा के बढ़ते महत्व को समझते हुए लगभग 95% से अधिक बच्चों के माता-पिता करोना पूर्व प्राथमिक विद्यालयों में अपने बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा करते थे जहां शासकीय नीतियों द्वारा उनके लिए पोषक आहार की व्यवस्था के साथ समुचित शारीरिक विकास हेतु मानकों के लिए भी अनिवार्य स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रहीं थीं परंतु करोना ने उस रफ्तार को पूरी तरह नष्ट कर दिया है। जिसका नतीजा ये है कि न केवल भारतीय स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी दुनिया के बहुत से देशों में शिक्षा प्रभावित हुई है और डबल्यूएचओ के आंकड़ों की मानें तो दुनियाभर के 160 करोड़ बच्चों में से केवल 70 करोड़ बच्चे ही करोनाकाल में शिक्षा ग्रहण कर पा रहे हैं।

कमोवेश भारत में भी विद्यालयों के बंद होने से बच्चों की शिक्षा काफी प्रभावित हुई है। हालांकि इस परिस्थिति से निपटने के लिए डिजिटलाइज्ड भारत में ऑनलाइन शिक्षा का विकल्प मौजूद है परंतु इसका इस्तेमाल कितने प्रतिशत भारतीय अभिभावकों द्वारा संभव हो पा रहा है वो इस चुनौती से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है। करोना पूर्व सन् 2016-17 में मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट पर यदि हम गौर करें तो उसके अनुसार भारत के विद्यालयों में जाने वाले बच्चों का लगभग 65%(11.3 करोड़ बच्चे) जन विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करता था। अपवादों को यदि छोड़कर देखें तो ऐसे परिवारों कि आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति कहीं पीछे है, जिससे शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है क्योंकि ऑनलाइन शिक्षा के लिए अनिवार्य डिजिटल डिवाइस और इंटरनेट कनेक्टिविटी हर अभिभावक द्वारा बच्चों को दे पाना संभव नहीं है। शिक्षा की इस स्थिति को UNICEF ने भी स्वीकारा है और बताया है कि भारत में चार में से एक घर में ही ऑनलाइन शिक्षा से जुड़े संसाधन उपलब्ध हैं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं है कि मौजूदा हालात में ज़्यादातर बच्चों के लिए इस वायरस के चलते शिक्षा से दूरी बन जाना स्वाभाविक हो चला है। इस वायरस की वीभत्सता यहीं नहीं रुकी है, आने वाले समय में शासन-प्रशासन द्वारा देश के इन नौनिहालों को इस वायरस की तीसरी लहर से बचाने के प्रयासों के चलते यदि आगामी सत्र में पुनः विद्यालय को बंद करना पड़ा तो बच्चों की शिक्षा पर काफी नकारात्मक असर पड़ेगा। ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा के अलावा अन्य सकारात्मक विकल्पों पर विचार अनिवार्य हो जाता है ताकि बच्चों का ये बचपन शिक्षा से दूर न रहे और इस वायरस से मानवीय सभ्यता को जल्द से जल्द छुटकारा मिले तथा सबकी जिंदगी एकबार फिर पुनः पटरी पर लौटे।

बस इसी आकांक्षा के साथ बस आज के लिए बस इतना ही...जय हिन्द, जय भारत...


गुरुवार, 6 मई 2021

संकट की इस घड़ी में चलो एक संकल्प लें

 

Helping Hands

























वो सुबह कभी तो आएगी

इन काली सदियों के सर से, जब रात का आँचल ढलकेगा

जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलके गा

जब अंबर झूम नाचेगा, जब धरती नगमें गाएगी

वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी......     (साहिर लुधियानवी)

 

     जी हाँ, दोस्तों, ये बिल्कुल सच है, वो सुबह कभी तो आएगी जब हमारा देश करोना महामारी के इस संकट से पूरी तरह उबर चुका होगा, तब फिर से इस देश में गूँजेगी बच्चों के स्कूलों से बजते घंटों की आवाज, चाय की टपरियों पर खड़े होकर चाय की चुस्कियों के साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर चर्चा-परिचर्चा होगी, मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों और गुरुद्वारों से निकलती पवित्र वाणियों की ध्वनि मंजरियों का शोर होगा। हाँ, बिल्कुल ये सब होगा, जब ये तूफान गुज़र जाएगा।

लेकिन अभी जो वक्त है वो संकट की इस घड़ी में अपने अपनों की मदद का है और अपनी इस कोशिश में यदि हम किसी एक भी जान बचा पाए तो इससे सार्थक कोई और बात हो ही नहीं सकती। बस दोस्तों, ईश्वर से अब यही प्रार्थना है कि जितनी जल्दी हो हमारा देश इस संकट से बाहर निकाल आए क्योंकि...

                       आसुओं से नहीं छिप रही  

                       बेबसी इस जमाने की

                       गुजरता दौर है ऐसा

                       जहां कीमत चुकानी पड़ रहीअपनों को भुलाने की...

                                    स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)