Hindi Writing Blog: अगस्त 2021

रविवार, 15 अगस्त 2021

स्वतंत्रता दिवस विशेषांक: इतिहास के पन्नों में दर्ज माँ भारती के अनमोल रत्न खुदी राम बोस की जीवन गाथा

 

स्वतंत्रता दिवस

 दोस्तों, आज देश 75वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहा है ऐसे अवसर पर जश्न-ए-आजादी के इस पावन दिन देश को आजादी दिलाने वाले उन सभी शहीदों के चरणों में मेरा सादर नमन सहृदय समर्पित है आज के इस दिन को मैं उन्हीं शहीदों में से एक खुदीराम बोस की जीवन गाथा द्वारा समस्त भारतीयों के जेहन में एक बार फिर दोहराना चाहूंगी ताकि 1947 में मिली आजादी की उस कीमत को हम सदैव याद रखें।  

दोस्तों, खुदीराम बोस भारतीय स्वाधीनता संग्राम के एक ऐसे सिपाही जिन्होने अपनी नन्ही सी उम्र में देश की आजादी के लिए अपना बलिदान दे डाला। कहा जाता है महज 19 वर्ष की उम्र में देश के लिए बलिदान देने वाले वे प्रथम युवा क्रन्तिकारी थे (हालाँकि इस तथ्य में इतिहासकारों में मतभेद है,  कुछ इतिहासकार इससे पूर्व 16 जनवरी 1862 ईस्वी में घटित 68 युवाओं के नरसंहार में एक 13 वर्षीय बालक के बलिदान को प्रथम शहीद होने का दर्जा देते हैं,  कहते है कि इस देशभक्त के जज्बे में गहराई तक डूबे बालक का 50वां नंबर था  जब उसे मारने के लिए तत्कालीन डिप्टी कमिशनर "कावन" के समक्ष लाया गया तब उसने उनकी दाढ़ी पकड़ ली और तब तक पकड़ी जबतक उसके हाथ उसी तलवार से काट नहीं दिए गए)।

                           स्वाधीनता संग्राम के इन क्रांतिकारियों ने इस गीत को वाकई सार्थकता प्रदान कि___________

" सरफ़रोशी कि तमन्ना

अब हमारे दिल में है।

देखना है जोर कितना

बाजुए कातिल में है।।"

 

भारत माता को अंग्रेजों कि गुलामी कि बेड़ियों से मुक्त कराने वाले भारत माँ के इस सपूत का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के "मिदनापुर" जिले के "बहुवैनी" नामक गांव में "बाबू त्रैलोक्यनाथ  बोस" के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम "लक्ष्मी प्रिया" था। खुदीराम ने जब होश सम्हाला तो उन्होंने अपने इर्द-गिर्द के माहौल में ब्रिटिश शासन के द्वारा भारतीय जनमानस पर ढाये जुल्मों को ही देखा लिहाजा उनके कोमल मन में ये बात घर कर गई कि अपने देश को इन जालिम अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराना है लिहाजा उन्होंने 9वीं कक्षा कि पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और स्वदेशी आंदोलन में कूद पड़े।

                                स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम बोस" रिवोल्यूशनरी पार्टी" के सदस्य बने और वन्देमातरम पैम्पलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, 1905 में बंगाल के विभाजन (बंग-भंग) के विरोध में चलाये गए आंदोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।

इसके बाद 1906 में मिदनापुर कि औद्योगिक और कृषि प्रदर्शनी में क्रन्तिकारी "सत्येंद्र नाथ" द्वारा लिखे "सोनार बांग्ला" कि प्रतियां बांटी।

पुलिस कि नजर इन पर पड़ी और वो बाकी पत्रक लेकर भाग गए परन्तु देशद्रोह के आरोप में सरकार ने उनपर राजद्रोह का मुक़दमा चलाया और सरकार द्वारा गवाही न मिलने पर निर्दोष छूट गए और 2 महीने बाद पुनः 16 मई 1906  को पकड़े गए लेकिन फिर रिहा कर दिए गए। 6 दिसम्बर 1907 में बंगाल गवर्नर की ट्रेन पर हमला कर दिया यही नहीं क्रांति के पुजारी बोस ने 1908 में दो अंग्रेज अधिकारियों "वाटसन" और "पैम्फॉल्ट फुलर" पर बम से हमला किया लेकिन वे बच गए।

                              खुदीराम बोस ने देश कि आजादी को और जोर देने के लिए मिदनापुर के "युगान्तर" नाम कि संस्था के माध्यम से पहले ही स्वयं को क्रांतिकारियों से जोड़ दिया था। उसके बाद 1905 में बंग-भंग आंदोलन (लार्ड गर्जन) के विरोध में सड़कों पर उतरे। उस समय भारत के अनेकों विरोधकर्ताओं को कोलकाता में मजिस्ट्रेट "किंग्जफोर्ड" ने क्रूर दंड दिया। इसी वजह से ब्रिटिश शासन ने उसकी पद्दोनति कर उन्हें मुज्जफ्फरपुर का सत्र न्यायधीश बना दिया। युगांतर समीति कि गुप्त बैठक में किंग्जफोर्ड (जिसने बंग-भंग आंदोलन के विरोदियों को क्रूरता से दंड दिया था) को मारने का निश्चय किया। इस महत्वपूर्ण कार्य हेतु खुदीराम तथा "प्रफुल्ल चाकी" का चयन किया गया,  उन्होंने "किंग्जफोर्ड" कि गाड़ी पर बम फेंका जिसमे दो यूरोपीय स्त्रियों ने अपने प्राण गवायें परन्तु किंग्जफोर्ड बच गया।

            अंग्रेजी पुलिस प्रफुल्ल चाकी व खुदीराम बोस के पीछे पड़ गयी, गिरफ़्तारी से बचने के लिए प्रफुल्ल चाकी ने ब्रिटिश सिपाही कि गोली से मरने कि बजाय स्वयं को गोली द्वारा मारना पसंद किया और  इसी भावना के चलते प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मार ली और देश पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए, चूँकि भागते समय दोनों ने अपने-अपने रास्ते अलग कर लिए थे और जिसके चलते अलग हुए खुदीराम को पुलिस ने पकड़ लिया और 11 अगस्त 1908 को 18+ कि उम्र में उन्हें फांसी दे दी गयी।

           इस प्रकार भारत माँ का ये वीर सपूत नन्ही से उम्र में इस दुनिया से विदा हो गया। परन्तु उनकी मौत ने उन्हें बंगाल में इतना लोकप्रिय बना दिया कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे जिसके किनारों पर खुदीराम बोस लिखा होता था  और ये धोती भारतीय युवाओं में काफी प्रचलित हो गई।

                   दोस्तों आजादी के महासंग्राम में अपनी अमर आहुति देकर खुदीराम बोस जैसे युवाक्रांतिकारी ने इस देश को आज ये दिन दिखलाए हैं कि हम सभी आज आजाद भारत की तरक्की और खुशहाली का एक सजा सजाया मंच देख पा रहे हैं यहाँ से अभी इस राष्ट्र को एक लंबा सफर तय करना है जिसमें देश की एकता के साथ समग्र भाईचारे की भावना का संयोग अनिवार्य है क्योंकि तभी बनेगा हमारे सपनों का वो नया भारत जो अतीत से लेकर आने वाले भविष्य तक सम्पूर्ण विश्व को मार्ग दिखलाएगा।

 आज के लिए इतना ही अगले अंक में आप से फिर मुलाक़ात होगी। जाते-जाते एक बार फिर  आप सभी को स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!!!

 


रविवार, 1 अगस्त 2021

फ्रेंड्शिप डे

 

Friendship Day

“दोस्ती” - कहने को बड़ा आसान सा शब्द है ये दोस्ती

पर क्या पता है दोस्तों, हर रिश्ते की जान है ये दोस्ती

माँ के प्यार दुलार में छुपी, आँख-मिचौली है ये दोस्ती

पिता की सीख और नसीहत के पीछे भी है ये दोस्ती

भाई-बहन के लड़ाई-झगड़े के बीच भी है ये दोस्ती

पति-पत्नी की नोक-झोंक में भी है ये दोस्ती

और कहीं रिश्तों से परे बन जाये बस एक प्यारा सा बंधन

तो उस रिश्ते की नींव भी है ये दोस्ती

तभी तो इन इंद्रधनुषी रंगों का प्यारा सा पैगाम है ये दोस्ती

कुछ कही-अनकही बातों के पालनों में झूला जाती है ये दोस्ती

तो होंठो की मुस्कान और आसुओं के दर्द का हिसाब भी दे जाती है ये दोस्ती

तभी तो दोस्तों, दुनिया में सबसे अनमोल है ये दोस्ती...

                         स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाशकीर्ति”


इन्हीं शब्दों के साथ आप सभी को मित्रता-दिवस (फ्रेंडशिप-डे) की हार्दिक शुभकामनाएँ