सिसकियों और खामोशियों के पिंजरे में
सिमटा था कभी देश मेरा
पर सन् सैतालिस की
उस नई सुबह
जब सूरज ने अपनी अलसाई किरणों
को
धरती पर भेजा
तो रात की मद्धिम होती चाँदनी
ने
मेरे भारत के आजादी की कहानी
उसे भी कह सुनाई ।।1।।
परिंदों की चहचहाहट ने भी
मेरे भारत की आजादी की
गाथा गगन की अनंत परिधि में
घूम-घूमकर खूब सुनाई
धीरे-धीरे बात बढ़ी
तो विधि-विधान की चर्चा आई
पेश हुआ फिर संविधान मसौदा
मेरे भारत की भूमि पर
विविध बोलियाँ, भाषाओं और धर्मों से
सजे देश को संप्रभु बनाने
हर्षित करती 26 जनवरी आई
आया गणतंत्र मेरे देश में
भारत ने संप्रभुता पाई ।।2।।
सिसकियों और खामोशियों के पिंजरे में...
स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश
कीर्ति”
आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
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