दोस्तों,
2023 की इस पूर्वसंध्या पर जहां एक ओर हम 2022 को विदा कर रहे हैं वहीं
दूसरी ओर हम नूतन वर्ष के आगमन की प्रतीक्षा में प्रतीक्षारत हैं। ऐसे में आने
वाला नवीन वर्ष हम सभी के जीवन में खुशहाली और तरक्की के नित नए आयाम रचे, ईश्वर से मेरी यही कामना है। अब अगर बात नए वर्ष के आगमन की हो तो हम सब
के जेहन में खुद की समृद्धि के साथ एक और इच्छा जो बलवती होती है, वो है हम सबके प्यारे देश के नूतन वर्ष में संपूर्ण जगत में नई बुलंदियों
तक पहुँचने की और ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि जब-जब दुनिया के मानचित्र पर हमारा
देश आगे बढ़ता है तो हम हिंदुस्तानियों का माथा गर्व से ऊंचा हो जाता है।
दोस्तों, आज जब देश की विजयगाथाओं पर परिचर्चा शुरू ही हो गई है तो आइये एक नजर डालें
बदलते भारत की उस तस्वीर पर जिसको साथ मिला भारत सरकार के 1 जुलाई, 2015 को शुरू किए गए डिजिटलाइजेशन अभियान का। दोस्तों आज के अपने इस अंक
में हम जो चर्चा कर रहे हैं उसमें भारत की प्रगति के पन्नों को अतीत से जोड़कर
विश्लेषित करना शामिल है यानि हम कहाँ थे और कहाँ आ गए...कैसी थी ये यात्रा जो 15
अगस्त 1947 से शुरू होकर अब यहाँ पहुंची है, एक लंबा सफर
जहां से आगे अगर भारत साल दर साल यूं ही बढ़ता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब दुनिया के
लिए “सपेरों का देश” कहा जाने वाला भारत अपनी बीन की धुन पर पूरी दुनिया को
नचाएगा।
सन् 1947
में मिली आजादी से पूर्व जब भारत में ब्रिटिश शासन नहीं था तो भी हमारे प्यारे देश
ने संपन्नता और समृद्धि के ऐसे दौर देखे हैं जिसका लोहा पूरी दुनिया मानती थी।
सिंधु घाटी सभ्यता से शुरू हुई भारत की उन्नति ने सत्रहवीं सदी के आते-आते खुद को
मध्ययुगीन विश्व की सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं में सम्मिलित करवा लिया था परंतु
उसके बाद आए सत्ता परिवर्तन ने एक लंबे समय तक भारत को विकास के पहिये से नीचे
उतारकर ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने के लिए मजबूर कर दिया, वजह साफ थी भारत की बचत का यहाँ से बाहर जाना और देश में होने वाले निवेश
में भारी कमी का आना। इन सबके बावजूद 1947 में मिली आजादी के बाद हर मोर्चे पर
मुंह की खाए भारत और भारतीयों के लिए आगे का रास्ता काफी चुनौतीपूर्ण था, लेकिन हम सभी के विश्वास को तब और बल मिला जब बार-बार विदेशी आक्रांताओं
का शिकार बन चुके भारत ने उम्मीदों का साथ कभी नहीं छोड़ा और खुद को एक बार फिर खड़ा
करना शुरू किया। 30 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था (जो उसे 1950 में मिली थी), 2022 आते-आते 3 हजार अरब डॉलर तक पहुँच गई बावजूद
इसके की क्रमश:
1962, 1965, 1971 और 1999 में इस देश ने कई
बार युद्धों का दंश भी झेला तथा इसके साथ ही दुनियाभर में हो रहे उतार-चढ़ाव का भी
सामना किया।
दोस्तों, इस बात का हमें गर्व है कि जो देश 75 वर्ष पूर्व सिर्फ आयात पर निर्भर हो
चला था वो अपने देश की विधिवेत्ताओं, विशेषज्ञों और नागरिकों
के दृढ़ इच्छा शक्ति एवं कर्तव्यनिष्ठा के पथ पर चलते हुए आज दुनियाभर की जरूरतें
पूरी करने में सक्षम बना है, भले ही तब कि 36 करोड़ की आबादी
में सीधे-सीधे 1 अरब 4 करोड़ का इजाफा दर्ज हुआ हो। आबादी बढ़ी
लेकिन तरक्की बाधित नहीं हुई इसकी गवाही प्रति व्यक्ति आय दर के ये आंकड़े भी देते हैं
जिसके अनुसार 1950-51 की प्रति व्यक्ति आय 265 रुपये के लंबा-चौड़ा बदलाव लेकर
वैश्विक महामारी कोविड-19 के संकट के बावजूद लगभग 91,481
रुपये तक पहुँच गई। आज का भारत निश्चित ही विकास के नित नए आयाम रच रहा है पर एक
चीज जो पूरी तरह स्पष्ट है वो है भारत के साथ कंप्यूटर,
इंटरनेट और डिजिटलाइजेशन का समागम, जिसने भारत की छवि को
दुनिया के सामने न केवल एक अभूतपूर्व अंदाज में प्रस्तुत किया बल्कि बढ़ते
डिजिटलाइजेशन ने देश के सुदूर इलाकों को शहरों से जोड़कर आम लोगों की जिंदगी को सहज
बनाने का भी उम्दा कार्य किया है। भारत की प्रगति में शामिल ई-शिक्षा, ई-स्वास्थ्य, ई-गवर्नेंस,
ई-साइन जैसी सेवाओं ने नागरिकों की रोज़मर्रा की जरूरतों को थोड़ा आसान बना दिया। यहाँ
थोड़े शब्द का इस्तेमाल मैंने इसलिए किया क्योंकि डिजिटलाइजेशन का जितना फायदा
विकसित देश उठा रहे हैं उतना फायदा भारत को उठाने में बस थोड़ा ही वक्त लगेगा, पर यह होगा अवश्य और ये जब होगा तब भारत दुनिया के साथ बराबर कदम से कदम
मिलाकर चलता नजर आएगा।
दोस्तों, किसने सोचा था कि जब 1940 के दशक में दुनिया ने अपना पहला कंप्यूटर पाया
तो भारत तक पहुँचने में इसे 16 साल का लंबा इंतज़ार करना पड़ा यानि 1956 का वो वर्ष
जब भारत ने पहली बार HEC-2M को दस लाख की कीमत पर खरीदा और
यह आगे बढ़ते इस सिलसिले ने 1966 में भारत की दो संस्थाओं: भारत
सांख्यिकी संस्थान तथा जादवपुर यूनिवर्सिटी द्वारा मिलकर बनाए गए पहले कंप्यूटर ISIJU-1 ने भारत को इन्फॉर्मेशन टेक्नालॉंजी के दुनिया में कदम रखवाया तो किसी ने
नहीं सोचा था कि आगे चलकर ये कंप्यूटर देश की तस्वीर दुनिया के सामने बदलकर रख देगा।
देश बदल रहा है, दुनिया भी भारत की क्षमताओं को देखकर दंग
है। उतार-चढ़ाव कहाँ नहीं होते, हमारा देश भी ऐसा ही है और
अगर बात सक्षमता की करें तो वो इसमें इतनी है जिसके जरिए अतुलनीय नवनिर्माण को
संभव बनाया जा सके। भारत के सँवरते भविष्य की आकांक्षा लिए हुए अगले अंक में फिर
मिलेंगे, तब तक के लिए जय हिन्द, जय
भारत...
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