दोस्तों, सबसे पहले आप सभी को प्रकाश
पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!
जैसा कि इस आर्टिकल
के विषय से ही आपको यह पता चल गया होगा कि आज के मेरे इस दीपावली विशेषांक की यात्रा
काफी कुछ आपको आध्यात्म की ओर ले जा रही है बावजूद इसके अगर हम इस विषय से मिली सीख
पर थोड़ा सा भी ध्यान दें तो यह शायद बेहद जरूरी है कि आज के इस भौतिकतावादी और लिप्सा
से भरे जिस दौर को हम जी रहे हैं उसमें अगर कलयुग हमें आधुनिकता की ओर धकेल रहा है
तो कहीं न कहीं त्रेतायुग की प्राचीनता से मिलती सकारात्मक ऊर्जा आज भी हमारे कल को
सँवारने का माद्दा रखती नजर आ रही है। जी हाँ दोस्तों, एक तरफ आधुनिकता के लबादे
को ओढ़े हम मोबाइल फोन पर अपनी उँगलियों को फेरते हुए अक्सर ये दावा करते हैं कि हम
खुद को पूरी दुनिया से जोड़ रहे हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि अपने घर की चारदीवारी
में ही अपने आस-पास रह रहे रिश्तों को ही हम अच्छी तरफ संभाल पाने में असफल साबित हो
रहे हैं। इसे बताने या इसपर चर्चा करने की भी जरूरत अब शायद शेष नहीं बची है फिर भी
इन सबके बीच जब हम अपनी प्राचीन संस्कृति से उपलब्ध कराए गए कुछ उत्सवों/ त्योहारों
को मनाते हैं तो एक बार फिर हम मिलजुल कर रहने और साथ-साथ त्योहारों को एक आँगन, एक मोहल्ले, एक गली, एक शहर और
एक देश के साथ मनाने का जज्बा हासिल कर लेते हैं, जो कहीं न कहीं
हमारी उस प्राचीन सभ्यता और संस्कृति से हमें जोड़ता है जो केवल कुछ वर्षों से नहीं
बल्कि सदियों से हमारे इस समाज का अमूल्य हिस्सा रही है।
दोस्तों, बात जब हमारी प्राचीन
सीख और आचार संहिताओं की हो तो त्रेतायुग में जन्में प्रभु राम और उनके इर्द-गिर्द
घूमते वो सभी पात्र जो सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना सिखलाते हैं, आज के इस कलयुग में भी हम सभी के लिए अनुकरणीय बन जाते हैं। जिस प्रकार प्रभु
राम ने रावण वध के उपरांत चौदह वर्षों का वनवास पूरा कर कार्तिक अमावस्या (दीपावली)
के शुभ दिन अयोध्या नगरी में अपनी वापसी की तो अयोध्या वासियों को हर्ष और उल्लास के
आनंदमयी वातावरण में लाखों नकारात्मक परिस्थितियों के बावजूद जीवन को कैसे जीया जाए
इसकी अनमोल सीख मिल गई जिसकी आवश्यकता आज के इस आधुनिक परिवेश में हम सभी को कहीं न
कहीं हर पल महसूस होती है। हम माने या न माने त्रेतायुग से मिली इन बातों तक आज भी
हमारी पहुँच हमारे घरों में रह रहे बूढ़े बुजुर्गों के माध्यम से रोज़मर्रा की जिंदगी
में हो ही जाती है।
कहते हैं दोस्तों
कि जब प्रभु राम 86 दिनों का युद्ध समाप्त कर लंका से पुष्पक विमान द्वारा अयोध्या
जाने के लिए निकले तो वे सबसे पहले अयोध्या नहीं गए अपितु वो एक-एक कर उन सभी के पास
गए जिन महर्षियों, योगियों (सर्वप्रथम वो भारत भूमि पर कुंभज ऋषि कहे जाने वाले ऋषि अगस्त्य
के सुंदर दण्डकवन में स्थित आश्रम में उतरे) पशु-पक्षियों,नदियों (सुंदर दण्डक वन के बाद वो चित्रकूट पहुँचें वहाँ से उन्होने माँ यमुना
और माँ गंगा के दर्शन हेतु तीर्थराज प्रयाग का रुख किया जहां वे बंदरों और ब्राह्मणों
को दान देने के लिए रुके साथ ही वे ऋषि भारद्वाज के आश्रम भी गए) के पास गए जो उनकी
इस विजयगाथा में कहीं न कहीं से शामिल थे और जिन्होने उनकी कठिन परिस्थितियों में किसी
भी प्रकार सहायता की थी। प्रभु राम का ये चरित्र आज के इस कलयुग में उनकी कृतघ्नता
की उस भावना का संकेत देता है जिसे हम सभी
अपनी दैनिक दिनचर्या में अगर शामिल कर लें तो एक दूसरे को दिए जाने वाले सम्मान से
ही हमारी काफी मुश्किलें कम हो जाएंगी।
त्रेता युग में प्रभु
राम के चरित्र में ऐसी ही अनगिनत विशेषताएँ थीं जो कलयुग भी में भी मर्यादा पुरुषोत्तम
बने रहने की उन प्राचीनताओं की ओर हमें आकर्षित करती हैं जिनमें शांतचित्तता, विनम्रता, वचन निभाने की क्षमता, आज्ञाकारिता, त्याग और बलिदान की भावना तथा स्वार्थ से कोषों दूर रहने की उनकी दृढ़ इच्छा
शक्ति उन्हें रामायण कालीन पात्रों में न केवल सर्वोत्तम स्थान प्रदान करती है अपितु
आज के इन मौजूदा हालात में स्वयं साक्षात पूर्ण ब्रह्म होते हुए भी सुख-दुख को बराबर
से सहन करते हुए मानव जीवन को किस प्रकार संयमित होकर जिया जाए इसकी भी शिक्षा दे जाती
है। त्रेता युग में प्रभु राम के किरदार से अलग होकर अगर हम माता सीता और बंधु लक्ष्मण
के चरित्र की प्रासांगिकता आज के इस युग में विश्लेषित करें तो हमें हर रोज बहुत कुछ
नया ग्रहण करने को मिलेगा। फिर चाहे सीता और लक्ष्मण के साथ उर्मिला का बलिदान हो या
भातृ प्रेम पर न्योछावर भरत का जीवन। ये सभी भले ही आज के आधुनिक कहे जाने वाले समाज
में सही न बैठें पर अगर हमने इन्हें मन और वचन से अंगीकार कर लें तो इतना सुनिश्चित
है कि आज के इस कलयुग में न केवल हमारा खुद का चरित्र सुदृढ़ और बलवान होगा बल्कि उनके
विचारों और आदर्शों को लेकर हम अपने आने वाले कल की नयी तस्वीर चित्रित कर सकेंगे।
दोस्तों, इन दिनों दुनिया के मानचित्र
पर काफी उतार-चढ़ाव चारों तरफ दिख रहा है – कहीं युद्ध की विभीषिका है (रूस-यूक्रेन
युद्ध), तो कहीं सूखा और अकाल (पश्चिमी देश और समस्त यूरोप), तो कहीं मंदी की आहट है। परंतु, इन सबके बीच संभावनाओं
के कमियों के बावजूद हालात बेहतर बनाने की ओर अगर इस विश्व का रुख आने वाले समय के
साथ सकारात्मक होता जाए और प्राचीनता से निकली सीख को अपनाकर यह समस्त संसार मानव हित
के बारे में सोचना प्रारम्भ करें तो इससे बेहतर शायद ही कुछ होगा।
देश और दुनिया में
सकारात्मक ऊर्जाओं का संचार निर्बाध गति से चलता रहे, ऐसी कामना कहीं न कहीं
हम सबके अन्तर्मन में समाई रहती है हम सभी की यह आकांक्षा इस नववर्ष में दीपपर्व दीपावली
के साथ पूरी हो इसी आशा के साथ इस विशेषांक में आज के लिए बस इतना ही। अगले अंक में
फिर मिलेंगे तब तक के लिए जय हिन्द, जय भारत!!!
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