चलो बेटियों की दुनिया सजाएँ
काम से थककर आए पिता के लिए
पानी का ग्लास लेकर दौड़ने वाली बेटियाँ
जीवन से जीवन को जोड़ती
वो अनमोल डोर हैं
जिन्हें न महलों की शानों-शौकत
चाहिए
न सोने चाँदी का पालना
उन्हें तो बस चाहिए
माँ-बाबा के हाथों से बना
झूले का ऐसा हार
जिसमें झूलकर वो गगन की
ऊंचाइयों तक कुल, परिवार, समाज सहित
सभी दुनियाई बंधनों को तोड़कर
परिंदों सी उड़ती फिरें
ताकि उनकी इस उड़ान से
ये जमीं ऐसी जगमगाए
जिसमें संस्कारों की उपजती फसल
के रसास्वादन से
ये समस्त सृष्टि अभिभूत हो जाए
शौर्य, पराक्रम, साहस, असमानता और बुद्धिमत्ता
से मिली चुनौतियाँ फिर कभी बेटियों
के पैरों की बेड़ियाँ न बनाने पाएँ
तो आइये इस बेटी दिवस हम सब खुद
से कहा एक संकल्प दोहराएँ “बेटियों को मायके और सासरे की दहलीज़ से निकालकर चलिये एक
बार फिर उन्हें मन के आँगन के बगिया में सजाएँ” Happy Daughter’s Day!!!
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