गाएँ बरखा राग,
कहीं रौद्र तो कहीं
शांत हो
देती हैं संदेश ।
प्रकृति विनाश तो
प्रकृति सृजन भी
दोनों पहलू एक,
ज्ञान अधूरा कहलाएगा
जो चुना नाश का साथ
।
सृजन संग ले चल कारवां
काहें करे विनाश,
मन अधीर मानव का
तन
पर देना होगा साथ
।
किंकर्तव्यविमूढ़
बना अगर तू
वक्त कभी न देगा
साथ,
सम्हाल सृष्टि अब
समय शेष जो
वरना जीवन की यह
भौतिक माया
छीन लेगी प्रकृति
की छाया ।
न सृष्टि रहेगी न
ये जीवन,
बस चहुं हो ओर दिखलाई
देगा
बरखा का ये जल ही
जल ।
कहीं रौद्र तो कहीं
शांत हो…
बच जाएंगे दोनों
अब भी
जो हमने प्रकृति
हित में कदम उठाया,
अपनी धरती चलो बचाएं
प्रकृति माँ का साथ
निभाएँ ।
सावन की मनोहारी
बूंदें देती हैं संदेश...
स्वरचित “कैलाश कीर्ति” रश्मि श्रीवास्तव
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