काम, क्रोध, लोभ, मोह द्वेष,
घृणा, पक्षपात, अहंकार, व्यभिचार
और धोखे के दस सिर
लिए
दशानन भी, जिसको समझ न पाया
राम नाम की ऐसी माया...
जब-जब तमस बढ़ा धरती
पर
राम नाम ने सदा बचाया
त्रेता हो या कलयुग
राम नाम ने मानव
को
हर पल ये सिखाया
धर्म सदा विजयी होगा
अधर्म गिरेगा औंधे
मुंह
राम नाम की ऐसी माया...
चौदह वर्ष बिताए
वन में
सिया संग वियोग सहा
पर छोड़ी नहीं दया,करुणा
सत्य-सदाचार संग
भी
मर्यादा का साथ निभाया
राम नाम की ऐसी माया...
त्रेता युग से शुरू
हुई
जो कलयुग तक भी जारी
है
अनंतकाल तक गतिमान
रहेगी
ऐसी गूढ़ता को कोई
समझ न पाया
झूमी थी तब भी अयोध्या
झूम रही है आज भी
राम नाम की ऐसी माया...
की अवलि में
रोशन होगी राम की
माया
धरती ये नि:शब्द
रहेगी
अंधकार का करके नाश
राम नाम की ऐसी माया...
स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”
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