शरद ऋतु के आंचल में
नूतन वर्ष के अभिनंदन पर
सूरज की अलसाई किरणें
आज जब आखें खोल रही हैं
मन ही मन बस सोच रही हैं
कितना कुछ अब बदल गया है
धरती माँ के आँगन में
साल पुराना बीत गया है
नए साल ने दी है दस्तक
सपनों को फिर पंख लगे हैं
खुशियों ने भी फैलाई हैं बाहें
कितना कुछ अब बदल गया है....
2023 लिखते थे
अब लिखेंगे 24 सब
एक अंक का फेर दिखे है
क्या सचमुच में ऐसा ही हुआ
कितना कुछ अब बदल गया है...
आशाएँ जो छूट गई हैं
उनको पूरा करना है
बीते साल की कमियों से भी
सबक सीखकर बढ़ना है
कितना कुछ अब बदल गया...
काम जो पीछे छूट गए हैं
उनको सब निपटाएंगे
उम्मीदों पर आन पड़ी धुंध से भी
पीछा अब सब छुड़ाएंगे
कितना कुछ अब बदल गया है...
स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें