लेकर
एक स्वप्न प्यारा जब धरा,
नभ
के आँगन तले, जीवन देने चली,
सृजन
के नवअंकुरों ने सृष्टि का स्वागत किया,
झूमा
सागर, झूमी नदियां, झूमे सारे जीव-जन्तु ।
लेकर
एक स्वप्न प्यारा जब धरा…
खोल
पोटली जब प्रकृति ने ऋतुओं के थे रंग बिखेरे,
ग्रीष्म, शरद, पतझड़ संग
ऋतुराज बसंत ने ली अंगड़ाई,
खेतों
में गेहूं की बलियों और बगियाँ में आमों की बौरों
ने
भी पुरवाई बयरिया संग धरा की ताल से ताल मिलाई,
लेकर
एक स्वप्न प्यारा जब धरा…
इंद्रधनुषी
रंगों से सजकर महक उठी ये धरती सारी,
नभ
भी तेजोमय हो चला देख धरा की जीवन क्यारी ।
स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”
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