फागुन की बयरिया
लाल पीले हरे गुलाबी
रंगों की छूट रही फुलझरिया
श्यामा संग कृष्णा की होली
या हो ब्रज की जोरा-जोरी
संदेश सभी को इतना है बस
रंगों को अन्तर्मन पे लगाना
नीरसता को दूर भगाना
रस माधुरी छलक पड़ेगी
जीवन बगिया चहक उठेगी
रंग घुलेगा जीवन मे जब
आशाएं चंदा की सैर करेंगी
होरी के रसीले गीत गाए...
मन के सोचे जीत भी
और मन के सोच हार भी
तो चुने काहे ना जीत रे मना!
अभिलाषाएं भी होंगी पूरी
जीवन को नवप्राण मिलेगा
रंगों की सुलझेगी पहेली
रंग बिना क्यों सूना जीवन
रंगों से ही है ये बहार
यही संदेश दोहराए ये
सृष्टि हर होरी और अबकी बार...
स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव
“कैलाश कीर्ति”
HAPPY HORI
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