Hindi Writing Blog: वैश्विक जनसंख्या असंतुलन कहीं खतरे का संकेत तो नहीं!!!

मंगलवार, 5 नवंबर 2019

वैश्विक जनसंख्या असंतुलन कहीं खतरे का संकेत तो नहीं!!!

World Population Disequilibrium

मौजूदा दौर में राजधानी दिल्ली सहित पूरा उत्तर भारत प्रदूषण की ऐसी जद में लिपट चुका है जिसमें ज़िंदगियों द्वारा ली जा रही सासों तक को जहरीली आबोहवा का शिकार होना पड़ रहा है, आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? यदि एक विश्लेषक के नजरिए से हम इसे देखें तो ही हम ये जान पाएंगे कि जीवन को चुनौती दे रहे इस वातावरण के लिए मात्र “पराली”, दीपावली के पटाखे”, “गाड़ियों या कारखानों से निकले धुएँ” ही जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि कहीं न कहीं जिम्मेदार है हमारी बेतहाशा बढ़ी हुई आबादी जिसकी जरूरतों को पूरा करने में सारे संसाधन दम तोड़ रहे हैं और इतना ही नहीं हमारे राष्ट्र की बढ़ी आबादी के चलते, और दूसरे मोर्चों पर भी हमें एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ रही है|

दोस्तों, ऐसा न केवल हमारे देश के साथ हो रहा है बल्कि दुनियाँ के दूसरे कई अन्य देश भी बढ़ती आबादी के बोझ तले खुद को संभालने में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक आबादी रिपोर्ट 2019 ने इस बात के संकेत दिये हैं की 4.5 बिलियन वर्ष पहले बनी पृथ्वी की आबादी भले ही 2050 में 770 करोड़ (वर्तमान आबादी) से बढ़कर 970 करोड़ पहुँच जाएगी लेकिन दुनियाँ के 55 ऐसे देश होंगे जहां की आबादी लगातार घटती जाएगी जिसके परिणाम स्वरूप वैश्विक जनसंख्या असंतुलन का खतरा बढ़ जाएगा और ऐसा मात्र जन्म दर में आई कमी के चलते नहीं हो रहा है बल्कि इसके लिए लोगों द्वारा पलायन के घटनाक्रम, किसी विशेष राष्ट्र की आरजकतापूर्ण परिस्थितियों जैसे कई अन्य कारक भी शामिल हैं| दूसरे शब्दों में कहें तो धरती का एक हिस्सा जनसंख्या के बढ़ते क्रम की समस्याओं से उलझा होगा तो दूसरा हिस्सा घटते क्रम की, जिसके चलते इस संसार में नीतियों, योजनाओं और कानून के समग्र क्रियान्वयन का भी संकट पैदा हो जाएगा और ऐसा नहीं है कि ये भावी भविष्य द्वारा ही निर्धारित है, इसकी शुरुआत  तो काफी पहले से हो चुकी है| बढ़ती आबादी द्वारा छोड़ी गयी असमानता, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन की धरोहर ही कुछ देशों की घटती आबादी का बड़ा कारण बन रही है और जिसका नतीजा वैश्विक जनसंख्या असंतुलन के रूप में दुनियाँ के सामने आना प्रारम्भ हो चुका है|

आज दुनियाँ के कई ऐसे सम्पन्न राष्ट्र हैं जो बढ़ती आबादी से त्रस्त हैं, जैसे चीन, भारत, अमेरिका, ब्राज़ील, आदि तो वहीं दूसरी ओर डेन्मार्क, जापान, रोमानिया, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, हाँगकाँग जैसे देश अपने राष्ट्र की स्थिर आबादी की समस्या से लड़ रहे हैं जो मानवीय उन्नति के लिए चिंताजनक है| दोस्तों, अनादि काल से हमारी पृथ्वी इस ब्रह्मांड का जीवनदायी ग्रह रही है और इसके निर्माण के वर्षों गुजरने के बाद लगभग 1900 ईस्वी में इस संसार के लिए जनसंख्या के दृष्टिकोण से सबसे बड़ी चुनौती थी शिशु मृत्यु दर (4 में से 1 बच्चा जीवित रहता था) लेकिन आज स्थिति उलट है और इसका सबसे ज्यादा असर यूरोपीय देशों पर पड़ा है जहां घटती आबादी ने सम्पूर्ण वैश्विक आबादी को असंतुलित कर दिया है| प्रकृति द्वारा दिये गए संतुलन-असंतुलन के पलड़े में किसका हिस्सा भारी होगा ये तो आने वाला वक्त तय करेगा परंतु सृष्टि को संतुलित रखती मानवीय आबादी का संतुलन कहीं किसी खतरे का संकेत तो नहीं,ये प्रश्न अभी अनुत्तरित है?




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