ओढ़ चुनरिया बसंत ऋतु की, धरती ने फिर किया शृंगार |
जीवन बरसाती इस ऋतु का, भंवरे भी करते हैं प्रसार ||
नए कपोलों के झुरमुट से, कू-कू करती कोयलिया |
भी बरसाए राग-बसंत की फुहार ||
तरुण आम्र की मंजरियों से, सुवासित होकर |
बहती मंद-मंद बसंत बयार||
कमल कामिनी सी काया ले, खेतों में लहराती सरसों |
जीवंत रागनियों की तानों पर, गाये गीत बसंत के बारंबार ||
रंग-बिरंगे फूलों के झूलों में फिर
हे सखी! आए ऋतुराज बसंत बहार, आए ऋतुराज बसंत बहार....
स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)
माँ शारदा के प्राकट्योत्सव और बसंत पंचमी के पावन पर्व की आप सब को मेरी तरफ से ढेरों शुभकामनाएँ
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