Hindi Writing Blog: खेत-खलिहान से जुड़ी भारतीय उन्नति: एक सार्थक सोच

सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

खेत-खलिहान से जुड़ी भारतीय उन्नति: एक सार्थक सोच


दोस्तों, जहां एक ओर पूरी दुनियाँ में Corona virus के चलते global health emergency declare की गयी है वहीं दूसरी ओर आज भारतीय संसद, आजाद भारत से जुड़े एक और बजट का गवाह बनी जिसमें वर्तमान सरकार ने कृषि क्षेत्र से जुड़ी कई नई भावी योजनाओं से देश को अवगत कराया| दोस्तों, 130 करोड़ आबादी वाले इस विशाल देश में यूं तो प्रतिवर्ष भारतीय नीति निर्माताओं द्वारा किसानों और खेत-खलिहानों की खुशी के लिए अनेकों योजनाएँ बनाई जाती हैं लेकिन क्या वो पर्याप्त हैं? ये सवाल आज हर किसी के मन में इसलिए कौंध रहा है क्योंकि मौजूदा दौर में जब भारत सहित पूरी दुनियाँ की अर्थव्यवस्थाओं में मंदी के कयास लगाए जा रहे हैं ऐसे में कभी अतीत के आर्थिक superpower रहे भारत की ओर पूरी दुनियाँ की निगाहें होना लाजिमी है क्योंकि पूरे विश्व के लिए ये मायने रखता है कि भारत कैसे और किस प्रकार भारतीय economy को आने वाले सालों में 5 trillion dollar economy बनाने के लक्ष्य को पूरा कर सकेगा| दोस्तों, विशेषज्ञों की अगर मानें तो इस उन्नति का रास्ता जाता है भारतीय खेत-खलिहानों से होकर दूसरे शब्दों में कहें तो हमारे जीवन को जीने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जरूरतों में से एक अन्न उपजाने वाले किसानों और उनके खेत-खलिहानों का विकास कर ही सरकार हमारे देश को तरक्की की राह पर पुनः ले जा सकती है|
मैं ये नहीं कहती कि सरकार के प्रयासों में कोई कमी होती है पर सरकार द्वारा लागू अनेकों योजनाओं के बावजूद storage और transportation के समस्याओं के चलते किसानों को direct इन सुविधाओं का लाभ अभी भी नहीं मिल पा रहा और तो और आम आदमी की महंगी होती खाने की थाली का सटीक मूल्य भी उन्हें नहीं मिल पाता ऐसे में कृषि कार्यों से दूरी बनाये रखना भारतीय युवाओं की पहचान बन चुकी है जिसे हर हाल में रोकना ही होगा| दोस्तों, जैसा कि हम सब जानते हैं कि बीते वर्ष का economic sciences का Nobel prize share करने वाले good economics for hard times के लेखक और भारतीय मूल के economist अभिजीत बनर्जी को मिला था और उनका भी यही मानना है कि भारत की तरक्की का रास्ता भारत के खेतों से ही होकर गुजरता है और हो भी क्यों न हम भारतीय आज इतनी समस्याओं से घिरे होने के बावजूद दुनियाँ के सबसे बड़े कृषि प्रधान राष्ट्र का दर्जा जो रखते हैं यही नहीं दोस्तों, मनुष्य को जीवन देती अन्न उपजाने की परंपरा की शुरुआत कर उसे इस विकसित स्वरूप में लाने वाले इस विशाल देश में खेती आज से लगभग 5 हजार वर्ष पूर्व सिंधु सभ्यता से ही प्रारम्भ हो चुकी है जो निरंतर विकास के दौर से गुजरते हुए इस रूप में हमारे सामने मौजूद है| ऐसे में कृषिक्षेत्र को अगर हम  भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहें तो गलत न होगा और शायद यही कारण भी रहा है कि भारत पर निरंतर हुए विदेशी हमलों के बावजूद भारत आज भी इतना सम्पन्न है| दोस्तों, हमारे देश में खेल-खलिहानों की खुशिहाली लोगों के जीवन को किस हद तक प्रभावित करती है कि हमारे तीज त्योहारों से लेकर हमारे शास्त्रो जैसे ऋग्वेद, अथर्ववेद, गृह सूत्र, श्रोत सूत्र और पाणिनी की अष्टाध्यायी तक में इनका वर्णन प्राप्त होता है और रही रोज़मर्रा के जीवन में इसके शामिल होने की बात तो इसका सीधा उदाहरण है पद्मश्री से सम्मानित बीजमाता राहीबाई पोपरे, जिन्होने मात्र अपने जीवन के अनुभवों से कृषि जगत को अनुपम भेंट सौपी है जो ये prove करने के लिए काफी है कि भारतीय जनमानस के बीच कृषि क्षेत्र से जुड़ी परम्पराओं की जड़ें कितनी गहरी हैं बस जरूरत है तो इन्हें सींच कर पुष्पित और पल्लवित करने की ताकि भारत की उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो सके साथ ही भारतीय खेत-खलिहानों से सदैव राष्ट्र तरक्की की गाथा आने वाले भविष्य में लिखी जाती रहे इसी आशा में जय जवान जय किसान जय विज्ञान...

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