Hindi Writing Blog: मई 2020

शनिवार, 16 मई 2020

COVID-19 के बाद हमारे सपनों का भारत कैसा हो?


दोस्तों, जैसा कि हम सब ये देख रहे हैं कि Corona नाम के एक छोटे से विषाणु (Virus) ने अचानक देखते-देखते किस प्रकार Globalization के माध्यम से जुड़ी पूरी दुनियाँ को एक ही झटके में अपने-अपने देशों के सीमाओं तक न केवल सीमित कर दिया है बल्कि उससे ऊपर उठकर अपने देशहित से जुड़े फैसलों को लेने के लिए मजबूर भी कर दिया है ताकि वो अपने-अपने देश के नागरिकों के जीवन को COVID-19 के विनाश लीला के सामने घुटने टेकने से रोक सकें बावजूद इसके इस विषाणु की भयावता इतने बड़े स्तर की है कि दुनियाँ के superpower कहलाए जाने वाले अमेरिका सहित मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) की सूची में ऊंचे पायदानों पर काबिज इटली, फ़्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे देश भी हथियार डाल चुके हैं और यही नहीं अनगिनत ज़िंदगियों ने अपनी जानें भी गंवा दी है| ये विभीषिका मानव इतिहास में छेड़े जा चुके प्रथम विश्व युद्ध (First World War) सन् 1914-1918 और द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) सन् 1939-194) की तुलना में काफी डरावनी नजर आ रही है क्योंकि मेरे इस लेख के लिखे जाने तक अभी भी भारत सहित पूरी दुनियाँ इससे लड़ने का कोई अचूक तरीका नहीं ढूंढ पायी है, लेकिन वो कहते हैं न उम्मीद पर दुनियाँ कायम है| आज नहीं तो कल मानव जाति इस विषाणु पर विजय तो प्राप्त कर ही लेगी फिर उसके बाद क्या होगा? कैसा होगा ये विश्व? कहाँ होगा हमारे राष्ट्र का वैश्विक स्थान? ऐसे अनगिनत प्रश्न हैं जो पूरी दुनियाँ के बुद्धिजीवियों को अभी से सोचने के लिए मजबूर कर रहे हैं क्योंकि जिस तरह से तात्कालिक घटनाक्रम से जुड़े समीकरण हर रोज एक नया बदलाव लेकर आ रहे हैं उससे तो ये तय है कि COVID-19 के बाद द्वितीय विश्व युद्ध के समय हुए परिवर्तनों में कुछ अलग सा बदलाव तो जरूर दर्ज होगा, ऐसे में भारत के परिप्रेक्ष से ये सोचना भी अहम हो जाता है कि COVID-19 के बाद कैसा होगा हमारे सपनों का भारत?

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दोस्तों, 130 करोड़ की विशाल आबादी वाले देश ने संकट के इस घड़ी में जैसी एकजुटता दिखाई है उससे दुनियाँ ने भारत की एक अलग छवि तो जरूर महसूस की होगी फिर वो चाहे हमारे प्रवासी श्रमिक भाइयों का बिना किसी हिंसा का सहारा लिए शांतिपूर्ण तरीके से अपने घरों की ओर पलायन हो या फिर देवदूत बने Corona Warriors का जंग से लड़ने और उसे जीत लेने का हौसला, ये सभी बदलते भारत का ही संकेत हैं बस जरूरत है तो इन्हें दिशा देने की जो हमारे नीति निर्माताओं से आने वाले भविष्य में सकारात्मक पहलों के साथ हांसिल होता ही रहेगा क्योंकि अब हमारे सपनों का जो भारत होगा वो पूरी तरह बदला हुआ होना ही चाहिए, वजह साफ है COVID-19 जैसी आपदाएँ कभी भी कोई signal देकर नहीं आतीं, ये आती हैं तो अपने साथ लाती हैं बस तबाही का मंजर, जिन्हें दुनियाँ अपनी खौफनाक यादों की आलमारी में बस किसी तरह समेट भर लेती है |
दोस्तों, हमारा देश दुनियाँ का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है, यहाँ की आबादी ज्यादा है तो समस्याएँ भी ज्यादा, इस बीमारी ने हमें जो सिखाया है उसके अनुसार अब हमारे देश में सर्वप्रथम जीवन के लिए जरूरी मूलभूत आवश्यकताओं पर देश के हर नागरिक को समान अधिकार दिये जाने की सुनिश्चितता तय करनी होगी ताकि ऐसे संकट की घड़ी अगर दोबारा भविष्य में आए तो हम पूरी तरह तैयार हों, शायद इसी चीज का जिक्र 12 मई को रात 8:00 बजे राष्ट्र के नाम अपने दिये गए संदेश में प्रधानमंत्री जी ने भी किया था और कहा था कि “अब हमें आत्मनिर्भर बनना ही होगा” क्योंकि COVID-19 ने हमें ये सीखा दिया है कि ऐसी आपदाएँ अगर आती हैं तो देश के सीमाओं के भीतर की मजबूती ही हमें इनसे निपटने में सहायता दे सकती है और ये मजबूती हमें लानी कहाँ-कहाँ है तो सीधा सा उत्तर है कि आने वाले समय में भारत को अपनी स्वास्थ्य सेवाएँ 130 करोड़ की आबादी को देखते हुए व्यवस्थित करनी होगी ताकि हम केवल  इटली की मेडिकल सेवाओं की उत्कृष्टता से स्वयं को न आँकते रह जाएँ बावजूद इसके कि इटली की आबादी मात्र 6 करोड़ है और अब हम जो भी सोचें वो भारत के गांवों से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक के संघीय ढांचे को ध्यान में रखकर क्योंकि आंकड़ों के अनुसार भारत के गांवों में जो आबादी है वो देश की कुल आबादी का लगभग 68% है और उसपर चिकित्सक मात्र 2%, ऐसे आंकड़े अब बदलने ही होंगे, इनके अलावा हमें हमारी सीमाओं की सुरक्षा भी इस लहजे में करनी होगी जो न केवल दुनियाँ के लिए अनुकरणीय बनें बल्कि दुश्मनों के लिए अभेद्य भी हो ऐसा इसलिए है कि कोरोना के इस संकटकाल में भी जम्मू-कश्मीर में जैसे हमारे जवान शहीद हो रहे हैं वो चिंतनीय है| इन बदलावों के साथ अब राष्ट्र की आर्थिक प्रगति में गाँव और शहरों दोनों की भूमिका में समानता का एक स्पष्ट संदेश हो, जिसमें गावों के समग्र विकास के साथ देश के शहरीकरण के लिए चुनौती बन चुकी धारावी जैसी झुग्गी झोपड़ियों का भी भारत के नीति निर्माताओं द्वारा की जाने वाली नयी पहल के तहत इनके पुनर्स्थापन की भी आवश्यकता है ताकि इनको भी जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मदद मिल सके और भविष्य में पुनः अगर इस तरह की कोई वैश्विक महामारी आती है तो राष्ट्र को इस तरह सशंकित न होना पड़े| इनके अलावा कृषिगत ढांचे में भी अभूतपूर्व परिवर्तन लाये जाएँ क्योंकि COVID-19 ने हमें हमारी मुख्य जरूरतें रोटी, कपड़ा और मकान तक ही सीमित बताकर, बेकार के दिखावे से भी दूरी बनाने की सोच को जन्म दिया है, जो वाकई इस आपदा से मिला एक अवसर ही तो है|


उम्मीद है COVID-19 के बाद आने वाला भारत हमारे सपनों का भारत बनें और अपनी बहुसांस्कृतिक, बहुभाषीय और बहुधार्मिक समाज की ताकत को सकारात्मक परिणामों में बादल पाये| बस इसी आकांक्षा को लिए.....जय हिन्द जय भारत... 

शनिवार, 2 मई 2020

COVID-19 पर कविता




COVID-19 के चक्रव्यूह में फंसी दुनियाँ जल्द ही इस वैश्विक महामारी पर विजय प्राप्त कर इस संकट से बाहर निकल आए ताकि मानवता एक बार फिर झूमकर गाए| इसी आकांक्षा में वर्तमान को समर्पित कुछ पंक्तियाँ:

है कैसा वक्त ये आया,
डरा इंसान से, इंसान का साया |
सूनी पड़ी गलियों में,
मंजर खौफ का छाया ||
है कैसा वक्त ये आया...
कहीं लाचार है जनता,
कहीं बेबस प्रशासन है |
ली है धर्म ने छुट्टी,
लगी विज्ञान की ड्यूटी ||
है कैसा वक्त ये आया...
कितना विस्मित नजारा है,
घरों में कैद बैठे हम |
सड़कों पर अब,
 जंगल ये सारा है |
रची धरती विधाता ने,
बनाया स्वर्ग से सुंदर ||
बिगाड़ा खेल ये सारा,
इन्सानों के दिमागों ने |
उबर जाए ये जग सारा,
अब बस उम्मीद इतनी है ||
है कैसा वक्त ये आया...
                      स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)