Hindi Writing Blog: जुलाई 2020

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

प्रभु राम आगमन की प्रतीक्षा पूरी: सज रही अयोध्या




अटकलों पर लगा विराम, पूर्ण हुई प्रतीक्षा और एक बार फिर लौट रहे भगवान राम सरयू तट किनारे बसी अयोध्या नगरी, जी हाँ दोस्तों, मन हर्षित है क्योंकि वर्षों से जिस फैसले का इंतजार सम्पूर्ण भारत राष्ट्र कर रहा था वो घड़ी अब अपने निर्णायक दौर में पहुँच गयी है और अंततः 5 अगस्त सन् 2020 के ऐतिहासिक दिन अयोध्या नगरी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के भव्य मंदिर निर्माण की नींव रखने की तैयारियां हफ्तों पहले से ही शुरू हो गयी है तो वहीं दूसरी ओर सरयू तट पर दीपों की पंक्तिबद्ध लहरियाँ प्रभु आगमन का इंतजार कर रही हैं तो कहीं मार्गों पर सजती रंगलहरें हर दिशा से ये संदेश पहुंचा रही हैं कि प्रतीक्षा पूरी हुई, अब प्रभु श्री राम अयोध्या स्थित अपने जन्म भवन लौट रहे हैं। बड़ा ही मनोरम दृश्य होने वाला है, ऐसा इसलिए क्योंकि वर्षों से अपने जन्म भवन की प्रतीक्षा में प्रभु राम कपड़ों से बने टेंट की छत्र-छाया में बैठकर खुद को मिले एक और वनवास का पालन ही तो कर रहे थे जो बदलते समय चक्र के साथ बढ़ता चला जा रहा था। इससे पहले का वनवास उन्होने अपने धरती निवास के दौरान माता कैकेयी को पिता दशरथ द्वारा दिये गए वचन को पूरा करने के लिए किया था और जिसके परिणामस्वरूप लंका पति रावण को युद्ध में परास्त कर पुनः अयोध्या वापसी सुनिश्चित हो पाई थी और दूसरा ये जब लगभग 5 सदी का सफर तय कर प्रभु राम को भव्य भवन में स्थापित किया जाएगा।

दोस्तों, भगवान राम के आचरण की कर्मठता और सहनशीलता हर युग में हमें प्रेरणा देती आई है, इसके कर्म प्रवाह में बहकर हम सभी ने अपने जीवन के कर्मयुद्ध की नैया पार लगाई है। दोस्तों, त्रेता युग में भगवान विष्णु के 7वें अवतार के रूप में रघुकुल वंश में जन्में भगवान राम की भक्तिमय अविरल धारा आज श्रद्धा के उस दौर तक पहुँच चुकी है जहां उनकी भक्ति से आबद्ध राम भक्तों को वो दिव्य स्थल प्राप्त होगा जहां वो प्रभु के चरणों में शीश झुका आने वाले कल का शुभाशीष पा सकेंगे और उधर दूसरी ओर सर्व धर्म सद्भाव के रंग में रंगी अयोध्या नगरी अखिल विश्व को भाई-चारे का अद्भुत संदेश देती बस 5 अगस्त की शुभ बेला प्रतीक्षा में प्रतीक्षारत है...

        जय श्री राम...


मंगलवार, 28 जुलाई 2020

COVID-19 के लिए हमारी AWARENESS क्यों जरूरी है?





दोस्तों, वर्तमान परिस्थिति में आज दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रह रही समग्र मानव सभ्यता COVID-19 नाम की विश्वव्यापी महामारी के भयानक दौर से गुजर रही है और अब इस कड़ी में हमारे राष्ट्र भारत का नाम भी काफी प्रमुखता से जुड़ता जा रहा है (आकड़ों के परिप्रेक्ष्य से), जो कहीं से भी उपयुक्त नहीं है। ऐसे में अब हम देशवासियों के कंधों पर एक बड़ी ज़िम्मेदारी के निर्वहन का भार आन पड़ा है, ताकि हम ना केवल अपने देश को इस भयानक आपदा से मुक्ति दिला सकें बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति को इस संकट से उबार सकें।

     ये प्रयास बड़ा जरूरी है लेकिन इसे शुरू करना खुद हमें अपने आप से है, और इसके लिए  करना क्या है------

·       COVID-19 से खुद का भी बचाव करें और दूसरों को भी जागरूक करें ताकि एक ऐसी शृंखला बनें जो इस virus की chain को break कर दे।

·       - खुद भी मास्क लगाएँ और दूसरों को भी प्रेरित करें। 

·      -  सोशल distancing के नियमों का पालन करें और दूसरों को भी इसके लिए जागरूक करें।

·       -   अगर आवश्यक न हो तो घर से बाहर न निकलें stay home stay safe

-  दोस्तों हम सब की पहल देश की सरकार को इस भयावह संकट से लड़ने की शक्ति प्रदान करेगी।

    तो आइये राष्ट्र प्रेम को अपना फर्ज बनायें और जन-जन में COVID-19 से लड़ने की जागरूकता का अभियान चलाएं।  


सोमवार, 13 जुलाई 2020

आत्महत्या ही क्यों?


Positivity


जीना अपने ही में एक महान कर्म है!

जीने का हो सदुपयोग या मनुज धर्म है!

अपने ही में रहना प्रबुद्ध कला है!

जग के हित रहने में सबका सहज भला है!

जग का प्यार मिले जन्मों के पुण्य चाहिए!

जग जीवन को प्रेम सिंधु में डूब थाहिए!

ज्ञानी बनकर मत नीरस उपदेश दीजिये!

लोक कर्म भाव सत्य प्रथम सत्कर्म कीजिये!”

 

दोस्तों, महान छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत जी की ये पंक्तियाँ हमारे कानों को अपनी स्वर मधुरिमा से गुंजायमान करती हैं तो हमारे इस जीवन को पाने और उसे जी लेने दोनों के मायने बड़ी ही सरल भाषा में हमें समझा जाती हैं। फिर, आखिर ऐसा क्यों होता है जो हम इस जीवन से मिली हर एक सीख (नसीहत) को पल भर में भूल इस दुनिया से अपने अस्तित्व को मिटा देने पर आमादा हो जाते हैं, माना कि 2020 के जिस दौर को हम जी रहे हैं उसमें धरती पर फैली COVID-19 की इस बीमारी ने दुनिया के अनगिनत लोगों की जीवन शैली में एक बड़ा फेरबदल दर्ज करा दिया है। कहीं किसी ने अपनों को खोया है तो कहीं किसी ने जीवन को सहारा देती आजीविका के साधन(रोजगार और नौकरी) को लेकिन जीवन में घटते इन घटनाक्रमों का ये मतलब तो कत्तई नहीं है कि जैसी जिंदगी हमारी आज है वैसी हमेशा से थी या आगे हमेशा ऐसी बनी रहेगी।

दोस्तों, Lockdown और खुद को COVID-19 से सुरक्षित रखने की इस मुहीम ने जहां एक ओर हमें घरों में रहने को मजबूर कर दिया है वहीं दूसरी ओर हमारे सोचने और समझने की क्षमता पर भी भरपूर असर डाला है, नतीजन डांवाडोल होती इस समकालिक मानसिक स्थिति में हम में से कितनों को आत्महत्या जैसे रास्ते बड़े सहज नज़र आ रहे हैं, चाहे फिर वो Bollywood फिल्म छिछोरे में suicide का विरोध करते एक पिता की भावना का सशक्त किरदार निभाने वाले सुशांत सिंह राजपूत का मामला हो या फिर 16 वर्षीय TikTok स्टार सिया कक्कड़ और संध्या चौहान का, इस कड़ी में शामिल हुए और नामों में कन्नड़ अभिनेता सुशील गौड़ा और सुशांत सिंह राजपूत और वरुण शर्मा की Manager रही दिशा शालियान भी हैं। दोस्तों, इन सभी ने जीवन जीने के इस महान कर्म को बीच धारा में छोड़ खुद को ही इससे अलग कर लिया। ये तो वो चंद नाम हैं जिन्हें हमारा समाज लोकप्रियता के चलते जान पाया और अगर गुमनाम नामों का जिक्र करें तो ये आकड़ें हमें ये सोचने पर मजबूर करते हैं कि आखिर क्यों लोग आत्महत्या के रास्ते को इतनी आसानी से सहज मान बैठते हैं और छोड़ जाते हैं अपने पीछे सवालों की वो भंवर जिसमें उत्तर की कोई संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती।

आखिर क्यों हम इस जीवन के लिए मिले मूल मकसद को भूल भौतिक संसाधनों की पकड़ और समाज में रुतबा कायम करने की होड़ में अपना सर्वस्व गंवा देते हैं जिसके चलते पूरे विश्व में हर साल 8,00,000 से 10,00,000 लोग हर वर्ष आत्महत्या कर जीवन खत्म कर देते हैं। ये वो अनुत्तरित प्रश्न है जिसका जवाब पाने की इच्छा हम में से कितनों को हर पल व्यग्र (बेचैन) करती रहती है और जब हम इनके उत्तर सकारात्मक ऊर्जाओं (Positive Energy) के वशीभूत होकर ढूंढ़ते हैं तो ही जान सकते हैं कि वास्तविकता चाहे जितनी कड़वी हो उससे हमें लड़कर जीतना चाहिए न कि उसे मिठास में बदलने की चाह में हम आत्महत्या जैसे निरर्थक कदम उठा लें, जिसमें हम हत्या तो मात्र अपने शरीर की कर पाते हैं लेकिन आत्मा वो तो इससे निकलकर न जाने कब तक हमारे द्वारा खुद ही इस सुंदर जीवन को नष्ट करने का उत्तर मांगती रहती है।

दोस्तों, समय, काल, परिस्थिति चाहे जैसी हो उम्मीद का दामन तब तक नहीं छोड़ना चाहिए जब तक हमारे अंदर इनसे लड़ने का हौसला न खत्म हो जाये आ हौसला वो तो तभी खत्म होगा जब हम अपने मन को ही हारने पर विवश कर दें और ऐसा हमें कभी होने नहीं देना है।

दोस्तों, बड़ा ही दुखद होता है जब हम किसी जीवन को इस तरह असमय खोते देखते हैं और उसके जाने के बाद शुरू होता है हमारा चिंतन क्यों, कब और कैसे का, फिर चाहे क्यों न अभी चंद मिनट पहले हम खुद ही उसी भंवर में उलझे रहे हों। दोस्तों, हमारे मन की सोच और विचार दुनिया की वो 2 प्रबल चीजें हैं जिन्होने ये पूरी दुनिया बना दी है। इसलिए हम चाहे जितनी भी मुश्किल में क्यों ना हों हमें इस धरती के अतीत और वर्तमान दोनों को सकारात्मकता के चश्में से ही देखना चाहिए और अपने अंदर की ऊर्जा को महसूस करते हुए जिंदगी को हरिवंश राय बच्चन जी की इन पंक्तियों जैसा कुछ इस तरह जीना चाहिए –

 

“कभी फूलों की तरह मत जीना

जिस दिन खिलोगे बिखर जाओगे

जीना है तो पत्थर बनकर जियो

किसी दिन तराशे गए तो खुदा बन जाओगे”