कहते हैं किसी लेख में प्राण वायु तभी उपजती है जब उसे पढ़ने वाले सच्चे पाठक मिल जायें| मेरी लेखनी को भी दरकार इसी भावना की थी लिहाजा मानवीय जीवन के इर्द-गिर्द हो रही समग्र प्रेरक और अंतर्मन को उद्द्वेलित कर देने वाली घटनाओं को अपनी लेखनी के माध्यम से समाज के अन्य जनों तक पहुंचाने की आकांक्षा ने मुझे ये ब्लॉग लिखने की प्रेरणा दी|
मंगलवार, 26 जनवरी 2021
सोमवार, 18 जनवरी 2021
पक्षियों पर मँडराए खतरे के बादल!!!
दोस्तों, मेरा मानना है कि इस सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने के लिए इस धरती पर प्रत्येक
जीव का सकुशल तरीके से जीवित रहना अनिवार्य है लेकिन समय की भाग-दौड़ और आगे बढ्ने के
चाह ने प्रकृति के साथ घुलमिलकर रहने वाली चिड़ियों की चहचहाहट को गुम सा कर दिया है।
अभी हाल ही
में कानपुर के चिड़ियाघर में Bird Flu से
बाकी पक्षियों को बचाने की कवायद में अनेकों पक्षियों को मार दिये जाने का आदेश या
फिर पतंग के माँझों, कारखानों और फैक्ट्रियों से उठते धूओं, मोबाइल टावरों से निकालने वाले रेडिएशनों जैसे अनगिनत कारणों के चलते इनके
प्राणों की आहुति का ये सिलसिला कहाँ जाकर खत्म होगा ये तो नहीं पता लेकिन पक्षियों
से जुड़े इस संवेदनशील विषय की ओर आप सभी का
ध्यान आकर्षित करने की मेरी एक छोटी सी कोशिश मेरी कविता के माध्यम से......उम्मीद
बस इतनी सी कि इन्हें इनकी खुशहाल दुनिया हमेशा वैसी ही मिले जैसी प्रकृति ने उन्हें
दी है:
“कलरव
करती ध्वनि का मंजर,
देता
है संदेश ।
सृष्टि
सरस है जीवन माया,
द्वेष-कलेश
की अजब है छाया ।।
प्रणत
हो रही धरती सारी,
रास-रंग
कुछ काम न आया ।
चीख-चीख कहती ये वसुधा,
मानव! अब तक तू संभल न पाया ।।
घर-घरौंदे
तूने बनाए,
जख्मों
को तूने झुलसाया ।
समझ
न आई तुझको ये पीड़ा,
कहाँ
चोट खाई थी तूने,
जो
इनको तूने तड़पाया ।
उजड़
गए सब घर और घोंसले,
निर्जीव
बने ये तड़प रहे ।
धरती
की इस पीड़ा में तुझको,
कुछ
क्यों रास न आया ।।
निर्मम
तेरे मन की सोच,
जो
तूने इनको भटकाया ।
सूखा
दिये सब जंगल सारे,
छीन
लिए नदियों के जल ।।
बना
बिल्डिंगें सोच रहा तू,
निपट
लूँगा इनसे मैं कल ।
कल
भी तेरा यही लिखेंगे,
जो
न अब चेतोगे तुम!
भूल
जाओ अब रथ दौड़ाना,
बगिया
के सब फूल खिलाओ ।
शाखाओं
पर चहकें पक्षी,
ऐसे जंगल फिर से उगाओ ।।
सहज होंगी तेरी राहें,
इस
कलरव को सुन-सुनकर ।
बिहस
उठेगा मन का आँगन,
संवरेगा आगामी कल ।।
कलरव करती ध्वनि का मंजर...
स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव
“कैलाश कीर्ति”
शुक्रवार, 1 जनवरी 2021
नव वर्ष की शुभकामनाएँ
नए वर्ष में,
नवदीपों की प्रज्ज्वलित
ज्वाला ।
करती है अभिनन्दन अब ये ॥
सहज संयोग से होगा निर्मित ।
अभिलाषित जीवन का ध्येय ॥
नए वर्ष में नवदीपों की
प्रज्ज्वलित ज्वाला...
सर्द हवाएँ जाने को हैं
ऊष्मा भरे दिन लाने को
सहम-सहम कर गुजरे कल ने
भी दी है दस्तक
सँवरे दिन लौटाने को
नए वर्ष में नवदीपों की
प्रज्ज्वलित ज्वाला...
महक उठेगी मंद बयार जब
नए वर्ष की नई सुबह
दे जाएगी मीठा संदेश
आशाएँ हो जाएंगी पूरी
मिटा जीवन से
भय-क्लेश का द्वेष
नए वर्ष में नवदीपों की
प्रज्ज्वलित ज्वाला...( स्वरचित रश्मिश्रीवास्तव” कैलाशकीर्ति”)
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मिटाये से न मिटेगी कभी साख भारत की झुकाये से न झुकेगी कभी शान भारत की | बदल दे इतिहास के रुख को वो है पहचान भारत की || वो है पहच...
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दोस्तों , जैसा कि हम सब ये देख रहे हैं कि Corona नाम के एक छोटे से विषाणु ( Virus) ने अचानक देखते-देखते किस प्रकार Globalization क...
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दोस्तों , आज मैं आप सभी से जिस संवेदनशील विषय पर बात करना चाहती हूँ वो न केवल इस धरती से जुड़ा है अपितु ये वो चेतावनी है जो पृथ्वी क...
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ये तेरा है… ये मेरा है , बस इसी मानवीय सोच के कारवां का एक मूर्त रूप है सरहद जिसके मायाजाल ने आज सम्पूर्ण विश्व ...
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अटूट है रिश्तो का बंधन , अमिट है स्वरूप ये | समय के वेग मे सहज हो , रिश्तों का प्रारूप ये || ("कैलाश कीर...