दोस्तों, ये समग्र धरती जिसकी भूमि को बहुत
सारे देश न केवल मिलकर साझा करते हैं बल्कि एक दूसरे से बहुत कुछ सीखकर आने वाले
भविष्य के लिए फलदायी नीतियों का निर्माण कर पाने में खुद को सक्षम भी बनाते हैं ताकि
वो अपनी राष्ट्र सीमा में रह रहे लोगों के जीवन को सही आकार दे सकें।
दोस्तों, जैसा कि हम सब जानते हैं कि यदि शासन और सत्ता की बात की जाए तो
प्राचीनकाल से ही इसका स्वरूप समय, काल और परिस्थिति के
अनुसार ही तय होता रहा है, कभी राजतंत्रात्मक तो कभी
तानाशाही। लेकिन इस तरह के शासन से मिले परिणामों ने दुनिया को हमेशा यही सीख दी
कि शासन और सत्ता से यदि सर्वसाधारण यानि आमजन की भागीदारी दूर रहेगी तो समाज में
अधिकारों की सुरक्षा और असमानता की भावना चरम पर होगी। ऐसे में दुनिया ने शासन के
जिस स्वरूप को बढ़ते समय के साथ मंजूरी दी वो है लोकतन्त्र,
जिसमें जनता का शासन, जनता के लिए और जनता के द्वारा होता है
- अब्राहम लिंकन; और दुनिया ने अभी तक इस शासन
व्यववस्था से जो नतीजे देखे हैं उसमें सर्वसाधारण की खुशहाली और तरक्की ज़्यादातर
दिखाई देती है, पर ऐसा नहीं है कि इसकी कुछ शर्तें न हों-
लोकतन्त्र की भी अपनी कुछ शर्तें हैं; जैसा कि 26वें अमेरिकी
राष्ट्रपति थियोडोर रूज़वेल्ट ने कहा था कि महान लोकतन्त्र को प्रगतिशील
होना चाहिए अन्यथा जल्द ही ये महान नहीं रह जाएगा।
दोस्तों, किसी भी लोकतन्त्र का प्रगतिशील होना उसे लंबे समय तक उसके मूल्यों से
जोड़े रखता है और शायद यही वजह है कि प्राचीन भारत की जनपदीय गणतंत्रात्मक व्यवस्था
और योरोप के कुछ हिस्सों से चलकर आई लोकतंत्रात्मक व्यवस्था दुनियाभर के देशों को
आकर्षित करती आई है और शायद यही एक बड़ा कारण भी है कि दुनिया के बड़े-बड़े देश जैसे
अमेरिका, ब्राज़ील, भारत, ब्रिटेन, आदि ने लोकतंत्र को ही तरजीह दी है और
वर्तमान में अब इस कड़ी में एक और नया नाम आ जुड़ा है, लगभग
400 वर्षों तक ब्रिटिश उपनिवेश का हिस्सा रहे बारबोडस का, जो पहली बार सन् 1625 में ब्रिटिश उपनिवेश का हिस्सा बना और जिसके
राष्ट्रप्रमुख पद पर अभी तक ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ-II आसीन थीं। लेकिन दक्षिण-पूर्वी कैरिबियन सागर में स्थित इस छोटे से द्वीप
जिसकी पड़ोसी सीमाएं उत्तर में सेंट लूसिया, पश्चिम में सेंट
विनसेट और ग्रेनेडाइन्स तथा दक्षिण में त्रिनिदाद एवं टोबैको से जुड़ी है और जिसने
खुद को 72 वर्षीय राष्ट्रपति डेम सांड्रा प्रुनेला मेसन के अगुवाई में खुद को
दुनिया का नया नवेला लोकतन्त्र घोषित कर लिया। मशहूर पॉप सिंगर रियाना को अपना
नेशनल हीरो स्वीकारने वाले इस देश ने खुद को प्रिंस चार्ल्स के सामने ही गुलामी की
बेड़ियों को तोड़कर बाहर आने और शासन व्यवस्था के लोकतंत्रात्मक स्वरूप को स्वीकारने
का संदेश बारबोडस की
जमीन से दुनिया को दिया।
बारबोडस
द्वारा लोकतंत्र का ये जश्न हमें हमेशा सन् 1947 में मिली आजादी और बाबा भीमराव
अंबेडकर जी द्वारा 1950 में दिये गए संवैधानिक उपहार लोकतंत्र के उन मूल्यों
की याद दिलाता है जहां बहुजन सुखाय और बहुजन हिताय की बात सत्य सिद्ध होती है, इसलिए मित्रों हम सभी को लोकतंत्र की गरिमा को अनवरत स्वीकारते हुए अपने
मतदान के अधिकार का सही और उचित इस्तेमाल सदैव करते रहना चाहिए क्योंकि यही वो
अधिकार है जिससे हमें अपने देश का भविष्य चुनने की ताकत मिलती है। लोकतंत्रात्मक
शासन व्यवस्था सम्पूर्ण दुनिया में निरंतरता के साथ आगे बढ़ती रहे इसी आकांक्षा के
साथ आज के लिए बस इतना ही, अगले अंक में फिर मिलेंगे।
तब तक के
लिए जय हिन्द, जय भारत।
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