युग बदला, बदल गई है दुनिया
सारी,
अगर नहीं
कुछ बदला है
तो
वो है राम नाम की महिमा प्यारी ।
भूमि
वही है, क्षितिज वही है
पर
बदली जनता सारी,
अगर
नहीं कुछ बदला है
तो
वो है जनमानस के हृदय तल में
उठती
राम नाम की धुन प्यारी ।
शासक
बदला, शासन बदले
बदली
सीमा सारी,
अगर
नहीं कुछ बदला है
तो
वो है राम नाम संग जुड़ती जाती
जनमानस
की क्यारी ।
रंग
नया है, रूप नया है
बदली
अयोध्या सारी,
अगर
नहीं कुछ बदला है
तो
वो है राम-सिया संग
सौमित्र
की छवि प्यारी...
आगे-आगे प्रभु राम, उनसे बस एक पग पीछे माता सीता और प्रभु राम से दो पग पीछे भ्राता लक्ष्मण। अद्भुत, अद्वितीय और मन को मोह लेने वाली छवि, हम सभी के मनः पटल पर उसी प्रकार अंकित है जिस प्रकार हमारे हृदय तल की गहराई में खुद को ढूंढते-ढूंढते हमे श्री हरि के दिव्य दर्शन मिल रहे हों। नयनों की व्याकुलता प्रभु की छवि को अपने नेत्रों में समा लेने के लिए जैसी अतुराई दिख रही है ऐसी ही शायद ही कभी रही हो, हमारे नयन तो सिर्फ प्रभु की इस छवि को चित्र स्वरूप में देखकर इतने अधीर हैं तो सोचिए जब त्रेता युग में सजीव जगत प्रभु की लीलाओं का साक्षी बना होगा तो उस समय जनमानस की अधीरता कितनी ऊंचाई पर विराजमान रही होगी। आज अयोध्या नगरी में एक बार पुनः प्रभु अपने धाम पधार रहे हैं, वो भी इतनी सारी तैयारियों के साथ, तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रभु के अयोध्या वापसी का त्रेता युग में हुआ घटनाक्रम पुनः कलयुग में भी साकार होने को उद्वेलित है। आज जगमगाती अयोध्या नगरी, सुगंधित पुष्पों की साज-सज्जा से उठने वाली सुगंध द्वारा न केवल भारत अपितु पूरी दुनिया को प्रभु राम के आगमन की सूचना दे रही है। ये अधीरता हो भी क्यों ना, प्रभु हैं ही ऐसे। उनकी मर्यादा, उनके चरित्र की गहराई, बुराई में भी अच्छाई ढूंढ लेने की उनकी कला त्रेता से लेकर कलयुग तक हर किसी के लिए अनुकरणीय है। इतिहास गवाह है जब-जब प्रभु के सिखाए रास्तों से मानव जाति पद-भ्रमित हुई तब-तब उसे एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी...
वक्त अभी शेष
है, चेतना नवनिर्माण के लिए उद्वेलित है और आकांक्षाएँ नवसृजन के लिए उत्सुक, इसलिए हे! मन: चल प्रभु राम के दिखाए रास्तों से आगे चलकर मानव जाति को प्रगति
पथ पर ले जाने के उनके स्वप्न को पूरा करें।
शेष!!!
अब भी बहुत कुछ
तू
छोड़ न उम्मीद पथ,
राहें
आगे और जुड़ेंगी
मंजिल
भी मिल जाएगी ।
रोके
से सो तू रुक जो गया
हाथ
नहीं कुछ आएगा,
कर्म
पथ पर बढ़े कदम
जो
खींचा पीछे आगे
फिर
न बढ़ पाएगा ।।
शेष!
अभी बहुत कुछ...
स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव "कैलाश कीर्ति"