Hindi Writing Blog: हिंदी सिनेमा (Bollywood): युग परिवर्तनकारी समाज का प्रतिनिधि

शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

हिंदी सिनेमा (Bollywood): युग परिवर्तनकारी समाज का प्रतिनिधि





अभी हाल ही में आयी उरी (URI- The Surgical Strike), मणिकर्णिका- (Manikarnika- The Queen of Jhansi), ठाकरे (Thackeray) जैसी फिल्में और उनकी सफलता ने एक बार फिर हमें ये सोचने पर विवश कर दिया है कि भारतीय हिंदी सिनेमा कला प्रस्तुति की एक ऐसी विधा है जो समाज के प्रत्येक वर्ग पर अपनी अमिट छाप छोड़ पाने में पूरी तरह सक्षम है  फिर चाहे  वो कला फिल्में हों या फिर कमर्शियल फिल्में|

आज हम जब कभी भी किसी फिल्म को बड़े पर्दे पर देखकर आते हैं तो हम हमेशा ये महसूस करते हैं कि उस फिल्म के संवाद (Dialogue), उसके किरदार (Character), उसके गीत (Song) कुछ दिनो तक हमारे अन्तर्मन को झंकृत करते रहते हैं और ऐसा शायद इसलिए होता है क्योंकि इन फिल्मों को देखते समय हम अपने आप को इनसे आंतरिक (Internal) रूप से जोड़ लेते हैं, ऐसे मे ये कहना गलत न होगा कि फिल्में अगर साफ-सुथरी और समाज को आईना दिखाने वाली हों तो वो समाज के लिए बदलते दौर का कारक (Cause) बन जाती हैं|

सन 1913 में "राजा हरिश्चंद्र" पर बनी मूक फिल्म को हिन्दी सिनेमा की प्रथम फिल्म होने का श्रेय प्राप्त है| मूक फिल्म होते हुए भी इसने लोगों पर अपनी इतनी अमिट छाप छोड़ी कि सिने विशेषज्ञों को इस बात का एहसास हो चला कि ये सोच भारत के समाज को एक नया मार्ग दिखाने में जरूर सफल होगी क्यूंकी वो वक्त ब्रिटिश शासन की गुलामी का था, इसलिए देशभक्ति और सामाजिक विषयों से परे धार्मिक विषयों पर ज़्यादातर फिल्में बनाई जाती थीं परंतु एक लंबे संघर्ष के बाद सन 1947 मे मिली आजादी के उपरांत बनी देशभक्ति की फिल्मों ने नए भारत के नव-निर्माण में अपनी सराहनीय भूमिका निभाई| इस दौर मे आई "जागृति", "अछूत कन्या", "बंदिनी", "दो आँखें बारह हाथ" जैसी फिल्मों ने भारतीय आम जनमानस की सोच में युग परिवर्तनकारी बदलाव के बीज रोपित किए, इसके बाद लगातार बनी रोमांटिक फिल्में भी किसी न किसी संदेश को लेकर भारतीय समाज और इसके जनमानस के बीच आती रहीं और बदलते वक्त के साथ बदलती रहीं|

आज के दौर में भी ये समाज को आईना दिखा पाने में पूर्णतया तो नही परंतु आंशिक रूप से जरूर सफल रहीं हैं| फिल्म कॉकटेल (Cocktail) में लिव इन रिलेशनशिप (Live In Relationship) तो विवाह (Vivah) जैसी फिल्मों में नायक के एक स्त्री के प्रति सम्मान को बखूबी प्रदर्शित किया गया है, वहीं दूसरी ओर वीरजारा व बजरंगी भाई जैसी फिल्मों में भारत-पाकिस्तान के बीच के अनछुए व अनदेखे पहलूओं को प्रदर्शित कर जनमानस तक सीधे शब्दों में पहुंचाया गया है|

ऐसे मे जीवन के प्रत्येक उतार-चढ़ाव में अपनी संगीतमय और सोच से परिपूर्ण विचारधाराओं के सामंजस्य को लेकर सहारा बनी ये फिल्में वाकई युग परिवर्तनकारी समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं| फिर वो चाहे देश के महापुरुषों पर बनी फिल्में ("सुभाष चंद्र बोस, गांधी, विवेकानंद) हों या फिर आम जनमानस के किरदारों (2.0 में पक्षी विशेषज्ञ पक्षी राजन का किरदार निभाते अक्षय कुमार और "दो दूनी चार" में एक अध्यापक का किरदार निभाते ऋषि कपूर) को प्रदर्शित करती फिल्में भारत के लोगों के साथ भारतीय समाज के लिए भी अच्छे बुरे का ज्ञान दर्शाती हैं| ऐसे में भारत और भारत के लोगों का हिन्दी सिनेमा के प्रति ये जुड़ाव सामाजिक समरसता की एक अद्भुत मिसाल है| 
                                        जय हिन्द जय भारत...

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