Hindi Writing Blog: मार्च 2019

शनिवार, 30 मार्च 2019

अखंड भारत___एक दर्शन (Monolithic India___A Philosophy)

Monolithic India

भारत____हमारा गर्व, हमारा अभिमान

आज हम भारतवासी पूरी दुनिया में सफलता के परचम लहरा रहे हैं, ऐसे में अपनी मातृभूमि पर तो गर्व करने का हक तो बनता ही है और हो भी क्यों न हमारा देश है ही ऐसा जिसने शायद दुनिया में सबसे ज्यादा आक्रांताओं के आक्रमण झेले लेकिन शायद ही दुनिया के किसी देश को जीतने की लालसा मन में पाली हो| इतिहास गवाह है कि हमारे देश के ज्ञानविद सिर्फ और सिर्फ विदेशों में अपने ज्ञान और संस्कृति का प्रसार करने गए, जहां पहुँचकर उन्होने  दुनिया को अपनी गर्वीली सभ्यता और संस्कृति से अवगत कराया जिनकी झलकियाँ आज भी दुनिया के अनेकों देशों में दिखाई देती हैं| आज मैं आप से अपने भारत के उस अतीत की चर्चा करूंगी जिसमे भारतीय सीमाएं इतनी दूर तक फैली थीं जिसकी वर्तमान में हम सिर्फ और सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं|




भारत जिसे प्राचीन काल से लेकर आज तक जंबू दीप, भारत खंड, आर्यावर्त, अजनाभखंड और हिंदुस्तान के नामों से जाना जाता है| हमारा भारत जैसा आज है वैसा पहले नहीं था| ब्रिटिश शासन से कई वर्षों पहले इस राष्ट्र में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, लंका(सिंहल द्वीप), बांग्लादेश, तिब्बत(त्रिविष्टप), म्यांमार, इन्डोनेशिया जैसे अनेकों देश शामिल थे और तब के सम्पूर्ण भारत का नाम जिस महामना के नाम पर पड़ा था वो थे ऋषभ देव के सौ पुत्रों में से एक "भरत" और बस यहीं से शुरू हुई थी हमारे देश की गौरव गाथा, लेकिन बदलते इतिहास ने बहुत कुछ बदला और धीरे-धीरे भौगोलिक सीमाओं में कटौती होती गयी और एक-एक कर भारत माता से उसके बहुत से महत्वपूर्ण अंग अलग कर दिये गए, चाहे फिर वो 1876 में अफगानिस्तान का अलगाव या 1904 में नेपाल व 1907 में भूटान या फिर 1937 में म्यांमार का, इन सभी विभाजनों ने भारत माँ को तो पहले ही छिन्न-भिन्न कर रखा था, परंतु हिमालय जैसा उच्च मस्तक धारण करने वाले भारत को विखंडन का असली दंश उस समय झेलना पड़ा जब 1947 में धर्म के नाम पर विभाजन कराके अंग्रेजों ने माँ भारती से पाकिस्तान को अलग कर दिया और ये सिलसिला यहीं नहीं रुका| ये अपने बढ्ने के चेष्टा को जारी रखे है और आज जब कभी भी हमारे देश में समाहित 29 राज्यों को भी खंड-खंड कर देने की बातें सुनाई पड़ती हैं तो मन वेदना से भर उठता है, क्योंकि हम सबकी असली ताकत तो सदियों से हम भारतवासियों की एकता ही है और बस वक्त के साथ हम इसे जब-जब छोड़ आगे बढ़े तब-तब हमने और हमारे राष्ट्र दोनों ने विध्वंस  के साये को अपने सिरहने खड़ा देखा है|

आज हम सिर्फ सोच सकते हैं कि हमारा भारत ऐसा था....... वैसा था........ लेकिन आज भी जो हमारे पास बचा है उसके लिए हमारा उत्तरदायित्व यही है कि बस और नहीं हम जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सदा एक रहें क्योंकि यही एकता हमारी ताकत है और ये राष्ट्र हमारा अभिमान| 
               जय हिन्द, जय भारत... 

बुधवार, 20 मार्च 2019

आप सभी को मेरी तरफ से रंगों भरे त्योहार होली की हार्दिक शुभकामनाएँ



























बह रही मदमस्त बयार,
होकर फागुन के रथ में सवार |
छलक रही रंगों की धार,
कर जीवंत ऋतु का शृंगार ||
कहीं होलिका की दुविधा है,
कहीं प्रह्लाद की प्रभु की भक्ति |
ऐसी पुलकित बेला में भी,
छलक रही रंगों की धार ||
कर जीवंत ऋतु का शृंगार, कर जीवंत ऋतु का शृंगार

                              ("कैलाश कीर्ति (रश्मि)" द्वारा रचित)

रविवार, 17 मार्च 2019

ऑटोमेशन (AUTOMATION): वरदान या अभिशाप?


























आज जब कभी भी हम काम करते-करते थक जाते हैं तो सोचते हैं कि काश! कोई ऐसी मशीन होती जो चुटकी बजाते ही हमारा सारा काम कर देती, बस मनुष्य के इसी सोच कि कार्य परिणीति है ऑटोमेशन (AUTOMATION) अर्थात स्वचालन, जहां आप कुछ कामों को ऑटोमैटिक मोड पर सेट कर देते हैं ताकि आपको उन्हे बार-बार करने की जरूरत न पड़े, वो काम खुद ब खुद पूरा हो जाये|

कुछ समय पूर्व आयी विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गयी कि बढ़ते ऑटोमेशन (AUTOMATION): वरदान या अभिशाप?के चलते भारत से लगभग 69%, चीन से लगभग 77% और इथोपिया से लगभग 85% जॉब को खतरा हो सकता है, बस यही मुद्दा चिंता का विषय बन जाता है कि क्या व्यापार और कार्य क्षेत्र की तमाम मुश्किलें आसानी से और कम खर्च से सुलझाने वाला ऑटोमेशन (AUTOMATION) वरदान है या अभिशाप?

आज मैंने अपने इस लेख में परिचर्चा के लिए इस विषय को इसलिए चुना क्योंकि लगभग 7.6 अरब की आबादी वाले इस विश्व में कामकाजी हाथों की कमी नही और समाज की रचना के अनुसार मानव जीवन की सम्पूर्ण भौतिक, सामाजिक, आर्थिक जरूरतों को पूरा करने वाले उसके रोजगार की जिसकी उसे सख्त जरूरत है| ऐसे में बढ़ते ऑटोमेशन(AUTOMATION) के प्रचलन ने कार्य क्षेत्र के लगभग सभी विधाओं जैसे Accounting and Invoicing, Data Backup, स्टाफ ड्यूटी चार्ट बनाना, email मार्केटिंग, Software Testing व अनेकों वेबसाइट में अपनी पैठ बना ली है जिसके चलते हाथों से काम करने वालों के कार्य क्षेत्र पर काफी प्रभाव पड़ा है जो ऑटोमेशन(AUTOMATION) के नकारात्मक प्रभाव का प्रस्तुतिकरण करता है|


हालांकि ऑटोमेशन(AUTOMATION) के चलते कार्य में तीव्रता आयी है और human error की गुंजाइश भी कम हो गयी है और इस नयी तकनीक को अपनाकर समाज विकास की एक नयी परंपरा को लेकर आगे बढ़ना चाहता है और ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि समय-समय पर आने वाली तकनीकों ने हमारे समाज के विकास में अहम भूमिका निभाई है लेकिन यदि यही तकनीकें मानवीय कार्य क्षमता को प्रभावित करने के बदले मिल रहीं हो तो आगे के समाज के लिए शायद ही ये उतनी सार्थक सिद्ध हो सकें जितना हम सोचते हैं, ऐसे में अंत इस आरंभ पर आधारित होकर इस बात के संशय को और भी गहराता जा रहा है कि मानवीय तरक्की के लिए लाया गया ये ऑटोमेशन(AUTOMATION) वाकई वरदान है या अभिशाप? जो एक तरफ अपनी द्रुत गति और human error से परे होकर कार्यों को निष्पादित कर रहा है वहीं दूसरी ओर कार्य क्षेत्र में मानवीय बल को भी चुनौती दे रहा है... 

शनिवार, 9 मार्च 2019

सरहदों की विध्वंसात्मक पटकथा (Borders Disruptive Story)

सरहदों की विध्वंसात्मक पटकथा (Borders Disruptive Story)
























ये तेरा है… ये मेरा है, बस इसी मानवीय सोच के कारवां का एक मूर्त रूप है सरहद जिसके मायाजाल ने आज सम्पूर्ण विश्व को उलझाकर रख दिया है| आज से लगभग 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व जब हमारी पृथ्वी का निर्माण हुआ तब विधाता ने इस  धरा को सरहदों से मुक्त बनाया था परन्तु धीरे-धीरे मानवीय सभ्यता के विकास ने सरहदों अर्थात सीमाओं का निर्माण प्रारम्भ किया, जिनमें से कुछ अगर प्रकृति प्रदत्त रहीं तो कुछ को मनुष्य ने जन्मा और इसी सृजन के साथ शुरू हुआ सरहदों की विध्वंसात्मक पटकथा का सिलसिला जो आज तक जारी है| वैसे तो हमारा विश्व अतीत से आधुनिक तक एक लम्बा सफर तय कर चुका है और विश्व के इस सफर के साक्षी बने हैं दुनिया के मानचित्र पर अंकित 193 देश जिनका वर्गीकरण ही सरहदों के बंटवारे पर आधारित है|

आज पूरी दुनिया में भारत-पाकिस्तान (India-Pakistan) की सरहदों का मुद्दा मानव निर्मित इस समाज को नयी दिशा में सोचने के लिए प्रेरित कर रहा है क्योंकि जिन सरहदों को इंसान ने विकास की पटकथा लिखने के लिए निर्मित किया था वही सरहदें आज विध्वंस का कारण बन चुकी हैं, फिर वो चाहे अमेरिका और मेक्सिको (America and Mexico) हो या फिर उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया (North Korea and South Korea) या फिर इजराइल और फिलिस्तीन (Israel and Palestine) की सीमाएं, या भारत और चीन (India and China) की सीमाएं सभी के इतिहास का अगर हम अवलोकन करें तो हमारे सामने जो तथ्य निकलकर सामने आ रहे हैं वो ये हैं कि इन सरहदों अर्थात सीमाओं के चक्कर में उलझकर इंसान ने पूरे विश्व को हिंसा के ऐसे चक्रव्यूह में फंसा दिया जहाँ से शान्ति का मार्ग निकल पाना एक असंभव लक्ष्य बन चुका है|


अतीत से निकलकर आयीं गाथाएं सरहदों के  माध्यम से  बनने वाले दुनिया के विनाशकारी स्वरुप को देख चुकी हैं, लिहाजा अब जरुरत इस बात की है कि सरहदों की दुनिया से निकलकर मनुष्य अपने देशहित और लोकहित के बारे में सोचे और “वसुधैव कुटुम्बकम”‘ की भारतीय अवधारणा को सत्य सिद्ध करें क्योंकि आजतक इन सरहदों की विनाश लीला ने हमें सिवाये खून-खराबे के दिया ही क्या है? जबकि दूसरी ओर विधाता ने इस धरा पर कभी भी मात्र सरहदों के आधार पर बंटवारा  नहीं किया| उसने तो एक रंग-बिरंगी प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण धरती मनुष्य को सौंपी है जिसको मात्र सजाने संवारने  का कृत्य ही इस मानवीय सभ्यता को शोभा देता है न कि इसे विध्वंस के गर्त में धकेलने का| 

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस






नारी हूँ मैं, नारी हूँ मैं
निस्तेज का भी तेज मैं
उद्वेग का हूँ वेग मैं
सानिध्य का भी स्नेह मैं
स्वालम्बन का आधार मैं
पीड़ा का हूँ प्रहार मैं
विरह की वेदना से परे, वात्सल्य का उपहार मैं
सृष्टि का भी आरम्भ मैं
अन्धकार का प्रकाश मैं
फिर भी समय की धार में, बह रही निर्बाध मैं
बह रही निर्बाध मैं...
              ("कैलाश कीर्ति (रश्मि)" द्वारा रचित)


मेरी तरफ से आप सभी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं!!!