Hindi Writing Blog: कब थमेगा ये अंतहीन हो चला सिलसिला…

रविवार, 9 जून 2019

कब थमेगा ये अंतहीन हो चला सिलसिला…



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कसक उठी है वही

फिर हूक सीने में 

तड़प जाता है मन मेरा,

कली से यूं बिछड़ने पर 

छलक जाते हैं आँखों से ये आँसू,

जमाने भर की बेबसी पर 

कहीं विधि का लचरपन है,

कहीं खुद की विवशता है 

कहाँ ढूंढ़ू कहाँ पाऊँ,

न मंजिल है न रस्ता है।

कसक उठी है वही फिर हूक सीने में,

कसक उठी है वही फिर हूक सीने में...

 

भारत माँ के आँगन से एक और बेटी की निर्मम विदाई से आहत मन की वेदना...


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