Hindi Writing Blog: क्या खतरे में है परिवार की अवधारणा?

रविवार, 2 जून 2019

क्या खतरे में है परिवार की अवधारणा?

Single MOM Vs Single DAD


आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं और प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक के इस सफर में हम सभी अपने आपको आधुनिक (Modern) कहलाने का दावा करते हैं और इस इसी आधुनिकीकरण की होड़ में खुद को शामिल करने के लिए हमसे जो बन पड़ रहा है वो सब हम करने की कोशिश कर रहे हैं जिसके चलते हमारी इस आधुनिक सोच का जो प्रथम शिकार बना है वो है हमारा परिवार, जिसे खुद आगे बढ़ने की चाह में हमने इतना तोड़ा-मरोड़ा है कि अब इसके अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है| पहले से ही संयुक्त परिवार (Joint Family) की परिकल्पनाओं से बाहर निकलकर  हमने एकल परिवारों (Nuclear Family) को तरजीह देना शुरू किया और दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची, बुआ-फूफा और उन सबके बच्चे, कितना कुछ था हमारे पास, लेकिन खुद को संतुष्ट करने और बदलते वक्त के साथ बेलगाम होती मानवीय मनोवृत्तियों के चलते हमने इस खुशहाल संरचना को छिन्न-भिन्न कर नयी सोच पैदा की और जन्म दिया एकल परिवार की अवधारणा को जिसमें माता-पिता और उनके बच्चे सिर्फ इतना छोटा सा परिवार जिसमें खुशियों और गम को बांटने वाले बस कुछ चुनिन्दा से चेहरे, लेकिन इतने से भी हमारा मन नहीं भरा, हम कुछ नया तलाशने के चक्कर में अब इसे भी गँवाते जा रहे हैं| जिस तरह आज मेडिकल सहायता के द्वारा बिना शादी किए, बिना परिवार बसाये ही एकल माता (Single Mother) या एकल पिता (Single Father) के रूप में पारिवारिक सुख लेने की चाह बढ़ रही है वह न केवल हमारे समाज में जिम्मेदारियों और उत्तरदायित्वों का अभाव पैदा कर रही हैं अपितु उसे देखकर तो अब यही लग रहा है कि वाले दो-चार-दस सालों में कहीं मौजूदा हालातों के चलते परिवार की अवधारणा ही न खत्म हो जाये|

उपर्युक्त वर्णित तथ्य मात्र मेरी सोच से नहीं निकले अपितु मैंने आज के समाज में जैसा माहौल देखा है उसको देखते हुए मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची हूँ कि शायद अगर यूं ही चलता रहा तो हमारे समाज के सबसे खूबसूरत संरचना से आने वाले भविष्य में हम हाथ धो देंगे|

तरक्की किसे अच्छी नहीं लगती, लेकिन ऐसी तरक्की का क्या जिसके लिए इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़े| आज हमारे समाज में जिस तरह से अंधा अनुकरण करने की होड़ युवाओं के बीच चल रही है उसे देखकर तो लगता है कि आज का युवा अपने आपको मात्र धन कमाने और भौतिक सुख-सुविधाओं को जुटाने के पीछे भाग रहा है उन्हें फर्क ही नहीं पड़ता कि उनकी प्राथमिकता क्या है? (यहाँ मैं सभी युवाओं को इस परिचर्चा के केंद्र में सीमित नहीं करना चाहती लेकिन अंधी भाग-दौड़ में शामिल युवाओं का प्रतिशत सजग युवाओं पर भारी है)| जिस तरह हमारे देश भारत की कुछ सफल शख्सियतों ने बिना घर बसाये ही Surrogacy या IVF जैसे तकनीकों के जरिये एकल माता या एकल पिता बनने की परंपरा प्रारम्भ की है वो अन्य युवाओं की सोच को भी प्रभावित करने में भी काफी असरदायक होगी क्यूंकी यदि उनके Role Model ऐसा कर सकते हैं तो वो क्यूँ नहीं? और सोचकर देखिये यदि ये सिलसिला अगर चल निकला तो वाकई क्या ये सच साबित नहीं होगा कि माता-पिता और बच्चों से मिलकर बना एकल परिवार भी आधुनिकता की होड़ में कहीं खो जाएगा और सीमित रह जाएंगी तो उनकी निशानियाँ..............

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