Hindi Writing Blog: क्यों खेल बन गए गेम(Game)?

रविवार, 23 जून 2019

क्यों खेल बन गए गेम(Game)?



Game Addiction




आज जिस तरह के परिवेश में हम जी रहे हैं, वो कहने को तो Hitech और एक बड़े ही उंचें स्तर का है, जहां चारो ओर सबकुछ Digitalize और तकनीकों से लैस है______अच्छा तो लगता ही है ये सबकुछ, लेकिन यदि हम अपने दृष्टि के दायरे को थोड़ा विस्तार दें तो ही ये हमें मालूम चलेगा कि इस तरक्की के पीछे हम कितना कुछ खो रहे हैं| आज एक Internet Connection और Mobile अगर हाथ में हो तो लगता है बस सारी दुनिया यहीं सिमट कर आ गयी है, किसी के पास एक दूसरे को देने के लिए वक्त ही नहीं बचा है और हो भी क्यूं न पूरी दुनियाँ कि सुधी जो लेनी है, हमारे घर में क्या हो रहा है इसे तो घरवाले किसी तरह सुलझा ही लेंगे|  

अभी हाल ही मैंने PUBG game पर बैन की मांग लेकर जंतर-मंतर पर उतरे parents की पीड़ा देखी और सुनी, जो मन को अत्यंत गहराई तक आहत कर गयी, लेकिन क्या किसी गेम पर बैन लगाना पर्याप्त होगा, हमारे बच्चों को इससे बचाने के लिए आज ये जाएगा, कल दूसरा आएगा, ये सिलसिला चलता ही रहेगा|  


हम सबको इस दिशा में मिलकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है कि क्यों आखिर आजकल के बच्चे कमरों से बाहर निकलकर खेलने के बजाय कमरों में कैद होकर Laptop, Internet, मोबाइल के जरिये ही गेम खेलना पसंद कर रहे हैं, हमें इन बच्चों को बचपन से ही मोबाइल के जरिये होने वाले addiction से रोकना होगा, आज जब भी कभी कोई छोटा बच्चा जिद्द करता है, या रोता है, तो प्रतिस्पर्धात्मक(Competitive) युग की जरूरतों से जूझते माता-पिता उन्हें मोबाइल देकर शांत करने की कोशिश करने लगते हैं, क्या ये उचित है? हमें ये सोचना होगा कि हमने भी तो बचपन जिया, हमने भी खेल खेलें हैं पर वो गेम नहीं थे, खेलों का गेम में हुआ परिवर्तन अत्यंत दुखदायी है, जो न जाने हमारे कितने नन्हें-मुन्नों को असमय ही हमसे छीन चुका है| आज स्कूलों द्वारा Outdoor और Indoor गेम्स को बढ़ाने की जो पहल चल रही है, उसमें हर माता-पिता को अपने नौनिहालों के साथ आगे आकर उनका उत्साहवर्धन करना होगा, हमें अपने बच्चों में सुधार लाने से पहले अपनी आदतों में सुधार लाना होगा| आधुनिकता से भरी इन चीजों को बस जरूरत के अनुसार ही प्रयोग करना होगा, तभी हम आने वाले भविष्य में इससे उठने वाली अन्य भयंकर समस्याओं से लड़ पाएंगे|  

तो आइये हमसब मिलकर अपनी बचपन की यादों में खोये पारंपरिक खेलों लुका-छिपी, खो-खो, कबड्डी, शतरंज, गिल्ली-डंडा, चोर-सिपाही जैसे खेलों में नवीनता लाकर अपने बच्चों के सामने रखें, तभी हम गेम बन चुके खेलों से उनका वास्तविक परिचय करा पाएंगे, जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा| तो आज हमसब मिलकर इसकी शुरुआत अपने-अपने घरों से करते हैं, ये शुरुआत बड़ी तो नहीं होगी पर जरूरी अवश्य है|


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