Hindi Writing Blog: जल के बल से....बेबस क्यों हैं हम

रविवार, 21 जुलाई 2019

जल के बल से....बेबस क्यों हैं हम


Water Conservation

कहीं बरसा है सावन तो,
कहीं प्यासी ये धरती है,
कहीं सैलाब सा है जल,
तो कहीं सूखे का है मंजर,
बदल दो रुख ये मौसम का,
मिटा तो फासला इनका,
क्योंकि तुम्ही से है ये धरती
और तुम्हीं से है ये जीवन भी

कहने को तो सावन का महिना है, काले-काले मेघों की आकाश में मौजूदगी से धरती भी प्रफुल्लित नज़र आ रही है, धरती की ये खुशी इस बात का संकेत दे रही है कि धरा पर चहुं ओर हरियाली छायी है| धरती से ऋतु के इस मिलन का मधुर संगीत कानों में किसी दिव्य संगीत की तरह गुंजायमान हो रहा है!

है न मनोरम अभिव्यक्ति, जो मात्र जादुई शब्दों का करिश्मा है, जिसे कागज पे उकेरा गया है, लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है| आसमान से हो रही काले-काले मेघों द्वारा जल की बारिश वर्तमान में हमारे चारो ओर चल प्रलय बन सब कुछ खत्म करने पर आमादा है और इस जल से हो रही क्षतियाँ इस ओर इशारा करती प्रतीत हो रहीं हैं कि प्रकृति से खिलवाड़ करने वालों अभी भी वक्त है संभलने का क्योंकि ये जल का जो बल है वो यदि जिद्द पे आ जाए तो कैसे एक झटके में ही सबकुछ नष्ट कर सकता है|

आज वर्तमान में जल की ये माया मात्र और मात्र विनाश पर उतारू है, एक तरफ नदियां उफान पर हैं तो दूसरी ओर इन्द्र देवता समस्त धरती को जलमयी करने पे तुले हैं और जिसकी बलि चढ़ रहा है, इनकी चपेट में आने वाला मानव जीवन, अभी इसी हफ्ते मुंबई के डोंगरी इलाके में न जाने कितनी मासूम जिंदगियाँ दफन हो गईं वहीं दूसरी ओर देश के अनेक राज्यों में आई बाढ़ ने मानव जीवन के साथ-साथ मवेशियों सहित सम्पूर्ण फसलों को भी अपनी तबाही की जद् में समेट लिया है और यदि आंकड़ों का हिसाब लगाया जाए तो लगभग हर वर्ष ये स्थिति ऐसी ही उभर कर सामने आती है| ऐसा क्यों होता है कि साल भर हम जल की न्यूनता को लेकर चिंतित होते हैं और जब साल के कुछ महीनों में हमें ये प्रकृति द्वारा स्वयं मुहैय्या कराई जाती है तो हम इन्हें संभाल ही नहीं पाते| क्या ऐसा नहीं किया जा सकता कि प्रतिवर्ष जल के बल से आँख मिचौली खेलने की बजाय समय रहते उन उपायों को स्वीकारा जाये जो जल प्रलय को रोकने में अपनी अहम भूमिका निभाएँ, जैसे सूखती नदियों से बारिश में जल मग्न नदियों का जुड़ाव, जगह-जगह कृतिम तालाबों की और ज्यादा व्यवस्था, नदी के निचले इलाकों के लिए तकनीकों से लैस प्रणालियों की स्थापना, बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के लोगों का इन दिनों के लिए विशेष प्रशिक्षण तथा अन्य वैकल्पिक संसाधनों की उपलब्धता का प्रति व्यक्ति पर आधारित होना, कुछ ऐसे उपाय हैं, जो यदि अमल में लाए जाएँ तो जल के इस बल के समक्ष घुटने टेकने के बजाय हम उससे लड़ने में सफल साबित होंगे और जहां तक प्रश्न है डोंगरी जैसी परिस्थितियों का तो हमें प्रसाशन के साथ जन सहयोग करना अनिवार्यता की ओर ले जाता है, जिसे यदि समय रहते कर लिया जाये तो हमारे देश के नागरिकों की सुरक्षा हित का ध्यान रखना संभव हो सकेगा, क्योंकि भारत माँ की एक भी संतान का यूं असमय मात्र सुव्यवस्थाओं के आभाव में दुनियाँ से चले जाना हमारे राष्ट्र के साथ हमारे समाज की भी अपूरणीय क्षति है|

तो आइये हम सभी ये अभी से सुनिश्चित करें कि आने वाले भविष्य में हम प्रकृति के संरक्षण का दायित्व निभाते हुए जल के बल से बेबस होने के बजाय बेखौफ बनेंगे....

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