भाषा अर्थात अपनी
बातों
को दूसरे तक पहुंचाने का वो माध्यम जिनके जरिये हम किसी भी कार्य को सार्थकता प्रदान
करते हैं| आज पूरी दुनियाँ में अनगिनत भाषाएँ बोली जाती हैं, लेकिन
बोले गए सभी भाषायी शब्दों का भावार्थ एक ही होता है, जैसे हम
यदि हिन्दी भाषा में ये पूछते हैं कि तुम्हारा नाम क्या है? वैसे
ही इंग्लिश में हम पूछते हैं “What is your name?”, वैसे ही संस्कृत में बोलते हैं “तव नाम किम
अस्ति” और फ्रेंच में “quel eston nom” यानि सभी भावनाएँ और शाब्दिक अर्थ भाषाओं की रहस्यमयी दुनियाँ में गोल-गोल
घूमते रहते हैं और इन भाषाओं की इन दुनियाँ में गोल-गोल घूमती है समग्र मानव जाति| कहीं-कहीं तो भाषा को लेकर ही द्वंद (लड़ाई -झगड़े) की नौबत बन जाती है|
ऐसे में इन्सानों
के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी इन भाषाओं की शुरुआत कहाँ से हुई है? ये जानने के लिए कभी-कभी हमारा मन व्याकुल हो उठता है, इनका पूर्ण रहस्य तो हम में से शायद ही कोई जनता है, पर अनुमानतः ये आंकलन अवश्य लगाया जाता है कि लगभग सभी भाषाओं के पीछे एक
ही भाषा है जिसे स्वयं सृष्टि संचालित कर रही है और वो है संस्कृत भाषा | अब हमारे मन में एक सवाल और आया कि आखिर ये संस्कृत कहाँ से आयी? तो सटीक उत्तर का अभाव तो है, परंतु प्राचीन लिखे इतिहास
जैसे वेद, पुराण, उपनिषद और अष्टाध्यायी
जैसे ग्रंथ इस ओर इशारा करते हैं कि आदिकाल में भाषा थी ही नहीं, केवल ध्वनि संकेत हुआ करते थे, जो सौरमण्डल के जीवनदायी
ग्रह सूर्य के एक ओर से 9 निकलती रश्मियों के रूप में प्रसरित होते थे और चारों ओर
से मिलकर ये 36 हो जाती हैं और इन्हीं 36 ध्वनियों द्वारा संस्कृत के 36 स्वर बनें
हैं (Vowel) और जब ये 9 रश्मियां पृथ्वी
पर आकार 8 वसुओं से टकराती हैं, तो 72 ध्वनियाँ
उत्पन्न होती हैं, जिनसे संस्कृत के 72 व्यंजन (Consonant) निर्मित हुए हैं और इस प्रकार तैयार हुई संस्कृत वर्णमाला क्योंकि प्राचीनकाल
के विद्वानों का मत था कि धरती और ब्रह्मांड में गति सर्वव्याप्त है और विज्ञान का
ये नियम है कि यदि गति होगी तो ध्वनि होगी और जहां ध्वनि होगी तो शब्द निकलेंगे ही, बस इन्हीं शब्दों को प्राचीनकाल के महर्षियों ने लिपि में बांधा जिसकी पुष्टि
अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों ने स्वीकारी है|
लेकिन एक बात
यहाँ और निकलकर सामने आती है और वो ये है कि भाषाओं के शब्द बनने से पूर्व बातचीत का
माध्यम क्या था और जैसा कि हम सभी जानते हैं “मनुष्य जाति आविष्कारों की जननी है”
तो शुरुआत में ही इस प्रजाति ने बातचीत के लिए ध्वनि संकेतों को चुना, फिर आयी चित्रलिपि, उसके बाद आयी भाषायी लिपि जिसका
आधार विद्वानों ने संस्कृत को माना और उसी से भारतीय भाषाओं सहित अधिकतर यूरोपीय भाषाओं
का भी जन्म हुआ और यहीं से चल पड़ा भाषाओं का सिलसिला| तो है न
भाषाओं की दुनियाँ रहस्यमयी? जहां अभी कितनी परतें खुलनी बाकी
हैं, क्योंकि शोध ऐसी कड़ी है, जो प्राचीन
को इतिहास बना देता है और नए जुड़े को ही सही और सटीक साबित करता है| आने वाले भविष्य में भाषाओं से जुड़े कुछ रहस्य अवश्य खुलेंगे ऐसी मेरी आशा
है, क्योंकि तभी सम्पूर्ण जगत एक परिवार बन पाएगा, जब इंसान उस आधार को खोज लेगा जहां से इन सभी भाषाओं का उद्भव हुआ है और यदि
ऐसा होगा तो दुनियाँ भर के लोग अपनी बात एक-दूसरे से आसानी से व्यक्त कर सकेंगे और
जिसके चलते वो दायरा बढ़ता जाएगा जो भाषा के चलते सीमित है|
बहुत खूब
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