Hindi Writing Blog: सोशल मीडिया अक्सर सवालों के घेरे में क्यों खड़ा होता है?

रविवार, 28 जून 2020

सोशल मीडिया अक्सर सवालों के घेरे में क्यों खड़ा होता है?


Questions around Social Media

दोस्तों, आज जिस तरह के हालात से होकर हमारी धरती गुजर रही है वह हम सब के लिए चिंता का विषय है। एक तरफ हम वैश्विक महामारी COVID-19 का सामना कर रहे हैं तो दूसरी ओर पूरी दुनियाँ में तेजी से बढ़ती सामरिक गतिविधियां भी हमारे माथे पर चिंता की लकीरें खींचें जा रही हैं। आज हर कोई COVID-19 की वैश्विक आपदा से निपटने के चक्कर में अपनी बड़ी सीमाओं का दायरा दिन पर दिन छोटा करता जा रहा है ताकि वो स्वयं को और अपने परिवार को इस virus की चपेट में आने से बचा सके और जिसका नतीजा ये निकला है कि हमने दूसरे और लोगों से दूरी बनाए रखने के formula को तात्कालिक हालात में जीवन जीने का मंत्र बना लिया है, बावजूद इसके कि हमारी फितरत हमें एक सामाजिक प्राणी बनाए रखने के लिए हमेशा उत्तेजित करती रहती है। शायद, यही कारण है कि 21वीं सदी से उपहार स्वरूप मिले technology के संसाधनों Internet, Computer और Laptop के जरिये ही हमने सारी दुनियाँ से खुद को connect कर लिया है और जब हम connect हो ही गए हैं तो लगे हाथ सोशल मीडिया (Facebook, Twitter, Instagram, WhatsApp) पर क्या चल रहा है वो भी देख लेते हैं। लेकिन हम ये नहीं सोचते कि print और electronic मीडिया के समानान्तर चल रही इस दुनियाँ में एक खेल followers पाने और likes बटोरने का भी है, जिससे मिली सस्ती लोकप्रियता के चलते किसी भी घटना को बिना किसी प्रामाणिकता की कसौटी पर परखे हम आगे बढ़ा देते हैं, लेकिन हमारी ये चूक दिन पर दिन हमारे इस समाज में जहर घोलने का काम कर रही है। अभी हाल ही में जब सुशांत सिंह राजपूत ने बांद्रा स्थित flat पर खुदखुसी की तो बिना घटना की असलियत जाने ही nepotism और favourtism के आरोपों और प्रत्यारोपों की झड़ी लग गयी, जिसका शिकार बनी सलमान खान, करण जौहर, आलिया भट्ट जैसी बड़ी हस्तियाँ जिन पर इल्जाम लगाए गए तो दूसरी ओर इन सब से हाय तौबा करके मिताली ठाकुर, सोनाक्षी सिन्हा, नेहा कक्कड़ जैसे स्टार ने सोशल मीडिया से दूरी बना ली।

दोस्तों, ये सोशल मीडिया आज के इस modern age में एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा है जो किसी भी गली-मोहल्ले में घटी घटना को तुरंत नेशनल लेवल तक पहुंचा देता है इसीलिए सिर्फ सुर्खियां बटोरने का जज्बा ही है जो इसे अक्सर सवालों के घेरे में खड़ा करता है। चाहे फिर ये अमेरिका में Donald Trump और Twitter Owner की झड़प हो या फिर सोशल मीडिया के जरिये आए दिन चीन और पाकिस्तान जैसे देशों का कोई नया एजेंडा, जो बढ़ते-बढ़ते उस दौर में पहुँच चुका है जहां लगभग तृतीय विश्व युद्ध (Third World War) के आसार भी बनते नजर आ रहे हैं।

मेरे इस लेख के लिखे जाने तक गलवान घाटी में चीन और भारत के हिंसक झड़प के बाद बढ़ते तनाव को देखते हुए अमेरिका ने यूरोप से अपनी सेनाएँ मंगानी शुरू की है। चूंकि, मेरा मत सदैव युद्ध विरोधी रहा है, इसलिए मैं ये आशा करती हूँ कि एक बार फिर मानवता जीते और धरती को विनाश की ओर ले जाने वाली सोच का अंत हो। दोस्तों, अभी आपने हाल ही में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सोशल मीडिया के चलते बढ़ती Rivalary को ज्यादे करीब से महसूस किया होगा; पहले दिल्ली दंगा फिर अमेरिका में George Floyd के चलते पूरे देश का हिंसा में झोके जाना और बॉलीवुड का बिखराव। तभी तो खुद रतन टाटा ने भी इस बात पर ज़ोर दिया कि ऑनलाइन समुदाय एक दूसरे के लिए हानिकारक हो रहे हैं, ये चुनौतियों से भरा साल है, हमें एक होकर ही इनसे लड़ना होगा और शायद ये ही सच भी है क्योंकि सोशल मीडिया की सबसे अच्छी बात ये है कि आज ये हर वर्ग, हर धर्म, हर समुदाय के लोगों को जिस प्रकार आपस में जोड़ती है उससे हमें एक दूसरे के ज्ञान और कुशलता का लाभ उठाना चाहिए ना कि आधुनिक युग से मिली इस सौगात को मौत के अंधे कुएं में ढकेलना क्योंकि

 

“हौसले जब मिलेंगे साथ,

जमाने में झलक होगी,

न तेरी हो न मेरी हो,

बस खुशियों की परख होगी”

                 स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)

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