कहते हैं किसी लेख में प्राण वायु तभी उपजती है जब उसे पढ़ने वाले सच्चे पाठक मिल जायें| मेरी लेखनी को भी दरकार इसी भावना की थी लिहाजा मानवीय जीवन के इर्द-गिर्द हो रही समग्र प्रेरक और अंतर्मन को उद्द्वेलित कर देने वाली घटनाओं को अपनी लेखनी के माध्यम से समाज के अन्य जनों तक पहुंचाने की आकांक्षा ने मुझे ये ब्लॉग लिखने की प्रेरणा दी|
रविवार, 27 जनवरी 2019
क्यूँ बोझ बन गयी है नौकरी पेशा जिंदगी ...?
शनिवार, 26 जनवरी 2019
रविवार, 20 जनवरी 2019
तेज रफ्तार जिंदगी का पंख बना - ड्रोन (Drone)
शनिवार, 19 जनवरी 2019
जीवनदायी जल की कीमती बूंदें...
नीर हूँ मैं नीर हूँ…
सृष्टि में सर्वत्र हूँ
पर प्रयोग में विभेद हूँ ।
जीव का मैं मूल हूँ
पर जीव से ही दूर हूँ ॥
मेरे है ये वेदना
मुझको होगा रोकना ।
वरना मैं लुप्त हूँ
क्यूंकि मैं नीर हूँ...
क्यूंकि मैं नीर हूँ...
("कैलाश कीर्ति (रश्मि)" द्वारा रचित)
नीर अर्थात “जल” धरा पर ईश्वर द्वारा मानव जीवन को सौंपी
गयी एक ऐसी भेंट है जिसके बिना हम अपने इस अमूल्य जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते| आज मैंने
परिचर्चा के लिए जल को इसलिए चुना क्योंकि इस बर्फीली सर्दी में भी जब मैंने
महानगरों की ऊँची इमारतों की ओर नजर दौड़ाई तो मुझे इन गगनचुम्बी इमारतों के आगे
टैंकरों से जल चढाती पाइपों की अनगिनत संख्या दिखाई पड़ी, क्या कर दिया है? हमने अपनी इस धरती का कि बिना मूल्य दिए उपयोग में लाये
जाने वाले जल को हम आज मूल्य चुकाकर क्रय कर रहे हैं| अभी तो शायद इतनी देर नहीं हुई लेकिन अगर अब भी हम और आप
नहीं चेते तो जीवनदायी ये जल मूल्य चुकाकर भी हमें नहीं मिल पायेगा| अपनी चेतना को
अगर हम शहरों के दायरे से निकालकर ग्रामीण इलाकों की ओर ले जाते हैं तो स्थिति और
भी भयावह हो चुकी है जहाँ उपयोगी जल की कमी फसलों के साथ-साथ मानव जीवन को भी लील
रही है|
हमारी धरती पर वैसे तो नमकीन पानी के महासागरों के रूप में 97% जल है और केवल 3% ही हमारे उपयोग
के लायक है, परन्तु मानव
जीवन के लिए उपस्थित ये 3 % जल भी लगातार
हो रहे प्रकृति दोहन के चलते हमसे दूर होते जा रहे हैं जिसका सीधा संकेत हैं जमीन
के अंदर भी जल का गिरता भू स्तर जो हम सभी के लिए चिंताजनक है|
शायद हममें से कोई भी ऐसा नहीं होगा जो इन आकड़ों से अवगत न
हो और इतना ही नहीं इस समस्या के समाधान से भी सभी परिचित हैं कि ईश्वर प्रदत्त वर्षा जल
को संचित कर व अपनी धरती को प्रदूषण से मुक्त कर हम जल को बचा सकते हैं| हम सब में से
बहुत से लोग ऐसा कर भी रहे हैं
वो प्रकृति को इस कमजोर स्थिति से उबारने में लगे हैं परन्तु जब तक हमारे राष्ट्र
का प्रत्येक नागरिक जल बचाओ अभियान से नहीं जुड़ेगा तब तक दिन प्रतिदिन भयावहता की
सीमा लांघ चुकी इस समस्या का समाधान नहीं हो सकेगा|
मैं ये नहीं
कहती कि हम सभी वर्षा जल संरक्षण करना शुरू कर दें परन्तु अगर हम अपने-अपने घरों
में जल का आवश्यकतानुसार प्रयोग शुरू कर दें तो इतना ही काफी होगा हमारे योगदान के
लिए और मुझे उम्मीद है कि हमारी ये छोटी कोशिश रंग जरुर लाएगी क्योंकि वर्तमान
स्थिति इस बात की ओर इशारा कर रही है कि जल की कमी से न केवल हमारा देश अपितु
विश्व के अधिकांशत: भाग छद्म लड़ाई लड़ रहे हैं| ऐसे में मेरी और आप की आज उठी एक पहल आने वाले भविष्य के
लिए जरूर एक सार्थक प्रयास सिद्ध होगी|
गुरुवार, 10 जनवरी 2019
हिन्दी की गौरवगाथा का सफरनामा___विश्व हिन्दी दिवस विशेषांक
आज "विश्व हिन्दी दिवस" है, सोचकर ही कितने गर्व का ही अनुभव प्राप्त हो रहा है और हो भी क्यों न आज हम सब की मातृ भाषा "हिन्दी" के सम्मान का दिन जो है| अब लगता है कि हम वाकई आजाद हैं क्योंकि सन 1947 के बाद मिली आजादी ने तो हमें सिर्फ अंग्रेजों से मुक्ति दिलाई थी उनके द्वारा दी गयी अंग्रेजी भाषा की गुलामी मे तो हम सब अभी तक जकड़े थे, हालांकि भारत में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली हमारी मातृ भाषा हिन्दी को 14 सितंबर 1949 को ही राज भाषा का दर्जा मिल गया था परंतु एक लंबे समय तक अंग्रेजी शासन के चलते हमारी भाषा को अहमियत थोड़ी देर से मिली फिर भी आजादी बाद आए इस बदलाव ने लगभग 72 वर्षों का समय अवश्य लिया परंतु हमारे भारत वंशियों के विदेश प्रवास के चलते हमारी ये भाषा राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छा गयी|
शनिवार, 5 जनवरी 2019
वो भारत देश था मेरा......ये भारत देश है मेरा
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मिटाये से न मिटेगी कभी साख भारत की झुकाये से न झुकेगी कभी शान भारत की | बदल दे इतिहास के रुख को वो है पहचान भारत की || वो है पहच...
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दोस्तों , जैसा कि हम सब ये देख रहे हैं कि Corona नाम के एक छोटे से विषाणु ( Virus) ने अचानक देखते-देखते किस प्रकार Globalization क...
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दोस्तों , आज मैं आप सभी से जिस संवेदनशील विषय पर बात करना चाहती हूँ वो न केवल इस धरती से जुड़ा है अपितु ये वो चेतावनी है जो पृथ्वी क...
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ये तेरा है… ये मेरा है , बस इसी मानवीय सोच के कारवां का एक मूर्त रूप है सरहद जिसके मायाजाल ने आज सम्पूर्ण विश्व ...
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अटूट है रिश्तो का बंधन , अमिट है स्वरूप ये | समय के वेग मे सहज हो , रिश्तों का प्रारूप ये || ("कैलाश कीर...