अभी हाल ही में #MeToo Campaign के चलते
एक प्रतिष्ठित प्राइवेट कंपनी के एक नौकरी पेशा शख्स की आत्महत्या और तदोपरांत(subsequently)
अपनी पत्नी को लिखे सुसाइड नोट में स्वीकारी गयी ये बात कि "अगर मैं निर्दोष भी साबित हुआ तो भी ऑफिस मे मुझे संदेह के दृष्टि से
देखा जाएगा और मेरा जीना दूभर हो जाएगा" कही गयी ये उक्ति क्या इस बात की
ओर इशारा नही करती कि आज के इस प्रतिस्पर्त्धात्मक (Competitive) युग में काम
काजी दफ्तरों में जिस तरह का माहौल होना चाहिए क्या वो नौकरी पेशा लोगों को
मिल पा रहा है? तो उत्तर हमें अपने इर्द-गिर्द नज़र घुमाने पर ही मिल जाएगा, क्योंकि
जैसा माहौल हम आज संस्थानों मे काम करने वाले नौकरीशुदा लोगों की जिंदगी में देख रहे
हैं उसे देखकर तो यही लग रहा है कि आज इस क्षेत्र को सकारात्मक(Positivity) परिवर्तन की सख्त जरूरत है ताकि नौकरी पेशा लोग तनाव रहित
होकर अपने कार्यों द्वारा संस्थान की छवि को और आगे ले जाएँ|
मैं ये नहीं कहती कि चहुँ ओर नकारात्मकता(Negativity)
ही पसरी है परन्तु फिर भी अगर सकारात्मकता(Positivity) की बात करें तो नकारात्मकता
उसपर ज्यादा भारी पड़ती दिख रही है| जिस नौकरी की चाह में वर्षों हम लम्बी शिक्षा ग्रहण
करते हैं सैकड़ों इंटरव्यू से होकर गुजरते हैं वही नौकरी हमें चंद वर्षों में ही बोझिल
क्यूँ लगने लगती है? तो वजह साफ है सिस्टम मे आई उदासीनता क्यूंकी आज के इस माहौल में
सिस्टम इस ओर ध्यान ही नही देता और अगर देता भी है तो सैलरी में चंद रुपयों की बढ़ोतरी
तक जाके ये सीमित हो जाता है|
हमारे समाज में बैठे उच्च प्रशासन को क्यूँ
ये चीजें नहीं समझ आती कि जिन नौकरी पेशा लोगों पर हम देश की उन्नति का धागा बुन रहे
हैं उनकी मनः स्थिति का भी खुशहाल होना जरूरी है क्योंकि एक स्वस्थ मन ही एक स्वस्थ
परिवेश का निर्माण कर सकता है| हमारे देश की अमूल्य धरोहर नौकरी पेशा लोग मानसिक द्वंद
के चलते असमायिक होने वाली शारीरिक बीमारियों से घिर जाएँगे तो वो कैसे हमारे राष्ट्र
के विकास में अपनी उपयोगी सहभागिता दर्ज करा पाएंगे|
इस लेख के माध्यम से मेरा सम्माननीयों(honourable)
से सिर्फ और सिर्फ इतना निवेदन है कि अगर हमारे राष्ट्र के उन्नति के इस महत्वपूर्ण
पहलू पर एक बार वो उदारता के दृष्टिकोण(Attitude)
से नज़र डालें तो जरूर इस दिशा में परिवर्तन की राह आगे का मार्ग प्रशस्त करने
में सफल हो पाएगी|
क्यूंकी अपने उच्च्स्थ को कुछ न बताने की
विडम्बना में घुलता ये वर्ग हमारे राष्ट्र की पूंजी है और इनकी खुशहाली हमारी धरोहर....
Oh.. very sad
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