Hindi Writing Blog: क्यूँ बोझ बन गयी है नौकरी पेशा जिंदगी ...?

रविवार, 27 जनवरी 2019

क्यूँ बोझ बन गयी है नौकरी पेशा जिंदगी ...?





अभी हाल ही में #MeToo Campaign के चलते एक प्रतिष्ठित प्राइवेट कंपनी के एक नौकरी पेशा शख्स की आत्महत्या और तदोपरांत(subsequently) अपनी पत्नी को लिखे सुसाइड नोट में स्वीकारी गयी ये बात कि "अगर मैं निर्दोष भी साबित हुआ तो भी ऑफिस मे मुझे संदेह के दृष्टि से देखा जाएगा और मेरा जीना दूभर हो जाएगा" कही गयी ये उक्ति क्या इस बात की ओर इशारा नही करती कि आज के इस प्रतिस्पर्त्धात्मक (Competitive)  युग में काम  काजी दफ्तरों में जिस तरह का माहौल होना चाहिए क्या वो नौकरी पेशा लोगों को मिल पा रहा है? तो उत्तर हमें अपने इर्द-गिर्द नज़र घुमाने पर ही मिल जाएगा, क्योंकि जैसा माहौल हम आज संस्थानों मे काम करने वाले नौकरीशुदा लोगों की जिंदगी में देख रहे हैं उसे देखकर तो यही लग रहा है कि आज इस क्षेत्र को सकारात्मक(Positivity) परिवर्तन  की सख्त जरूरत है ताकि नौकरी पेशा लोग तनाव रहित होकर अपने कार्यों द्वारा संस्थान की छवि को और आगे ले जाएँ|
 क्यूंकी आज जब भी हम समाज मे नौकरी करने वालों की जिंदगी में झाकते हैं तो यही पाते हैं कि उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद एक जीवन-परिवर्तनीय नौकरी का स्वप्न लिए संस्थानों में दाखिल हुआ युवा जब जिंदगी की सच्चाई से रुबरु होता है तो वास्तविकता कुछ और ही होती है, ये वास्तविकता उन्हे आर्थिक रूप से सबल तो जरूर बनाती है परंतु बहुत कुछ खोने पर मजबूर कर देती है| कई दफ्तरों मे तो समय को लेकर अनुशासन के लिए जानी जाने वाली नौकरी में अब समय सीमा का ही उलंघन होने लगा है| काम के नाम पर आठ घंटे का दायरा बढ़ाकर लगभग दस से बारह घंटे कर दिया गया है जिसके चलते नौकरी पेशा लोग न परिवार मे अपनी उपस्थिति दर्ज करा पा रहे हैं और न ही समाज में, उनकी इस व्यथा का जो परिणाम निकलकर सामने आ रहा है वो न उन्हे स्वस्थ बना रहा है और न ही उनसे जुड़े तमाम रिश्तों को और न ही इन्ही रिश्तो पर टिके समाज को|
मैं ये नहीं कहती कि चहुँ ओर नकारात्मकता(Negativity) ही पसरी है परन्तु फिर भी अगर सकारात्मकता(Positivity) की बात करें तो नकारात्मकता उसपर ज्यादा भारी पड़ती दिख रही है| जिस नौकरी की चाह में वर्षों हम लम्बी शिक्षा ग्रहण करते हैं सैकड़ों इंटरव्यू से होकर गुजरते हैं वही नौकरी हमें चंद वर्षों में ही बोझिल क्यूँ लगने लगती है? तो वजह साफ है सिस्टम मे आई उदासीनता क्यूंकी आज के इस माहौल में सिस्टम इस ओर ध्यान ही नही देता और अगर देता भी है तो सैलरी में चंद रुपयों की बढ़ोतरी तक जाके ये सीमित हो जाता है|
हमारे समाज में बैठे उच्च प्रशासन को क्यूँ ये चीजें नहीं समझ आती कि जिन नौकरी पेशा लोगों पर हम देश की उन्नति का धागा बुन रहे हैं उनकी मनः स्थिति का भी खुशहाल होना जरूरी है क्योंकि एक स्वस्थ मन ही एक स्वस्थ परिवेश का निर्माण कर सकता है| हमारे देश की अमूल्य धरोहर नौकरी पेशा लोग मानसिक द्वंद के चलते असमायिक होने वाली शारीरिक बीमारियों से घिर जाएँगे तो वो कैसे हमारे राष्ट्र के विकास में अपनी उपयोगी सहभागिता दर्ज करा पाएंगे|
इस लेख के माध्यम से मेरा सम्माननीयों(honourable) से सिर्फ और सिर्फ इतना निवेदन है कि अगर हमारे राष्ट्र के उन्नति के इस महत्वपूर्ण पहलू पर एक बार वो उदारता के दृष्टिकोण(Attitude)  से नज़र डालें तो जरूर इस दिशा में परिवर्तन की राह आगे का मार्ग प्रशस्त करने में सफल हो पाएगी|
क्यूंकी अपने उच्च्स्थ को कुछ न बताने की विडम्बना में घुलता ये वर्ग हमारे राष्ट्र की पूंजी है और इनकी खुशहाली हमारी धरोहर....

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