Hindi Writing Blog: 2020

सोमवार, 14 दिसंबर 2020

तमन्ना चाँद पर घर बसाने की, पर अधूरी ख्वाहिशें धरती की

 

COVID-19 Vaccine

वर्ष 2020 की उपलब्धियों का अगर मूल्यांकन करें तो जाते हुए इस साल ने पूरी दुनिया को कुछ ऐसे अधूरे जख्मों के सहारे रख छोड़ा है जिसे भरने के लिए आने वाले कई वर्षों को इसकी भरपाई करनी पड़ेगी। लेकिन क्या आपने ये गौर किया है कि वैश्विक आपदा के इस दौर में दुनिया ने चंद्रमा और मंगल पर घर बसाने की (colonizing) एक ऐसी होड़ देखी है जो भले ही वर्तमान मानव प्रजाति के संभावित भविष्य में विकास का नया अध्याय जोड़ने में कामयाब हो जाए परंतु क्या इससे इस मानव प्रजाति का वो आज सुधार पाएगा जिसमें वो जी रही है?

दोस्तों, जैसा की हम सब जानते हैं कि COVID-19 की इस Pandemic ने न केवल लोगों को बीमार बनाया, उनके जीवन छीने बल्कि आगे का जीवन जीने का सहारा, उनका व्यापार और रोजगार भी छीन लिया, बावजूद इसके दुनिया भर के वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई और Pfizer, Moderna, AstraZeneca जैसी कंपनियों की Vaccine ने दुनिया के जल्द ही सामान्य होने की उम्मीद भी बंधाई। ये तो दुनिया का वो चेहरा है जिसे हम सभी संपन्नता और समृद्धि के चश्में से देख पा रहे हैं, लेकिन इन सब के पीछे कुछ ऐसी प्रबल समस्याएँ भी मेरे मतानुसार काफी अहम हैं जिनका हल चाँद पर घर बसाने के पहले ही निकाल लिया जाना चाहिए और वो है दुनिया की एक बड़ी आबादी का “भूखा रहना” जिसे स्वयं विश्व के सबसे बड़े स्वास्थ्य संगठन डबल्यूएचओ (WHO) ने न केवल स्वीकारा है बल्कि ये भी बताया की लगभग 8 billion आबादी वाले इस विश्व की 1 billion आबादी भयंकर भुखमरी की चपेट में है यानि 6 में से 1 व्यक्ति भुखमरी से प्रभावित है। डबल्यूएचओ के इन आंकड़ों से कुछ आगे बढ़ें तो Global Hunger Index, 2020 भी भुखमरी की इस समस्या को अपने तरीके से बताते हुए भारत (लगभग 22 करोड़ 46 लाख लोग कुपोषण का शिकार हैं) सहित दक्षिण एशियाई देशों के हालात को alarming point पर खड़ा होने का संकेत देती है। मेरे कहने का तात्पर्य बस इतना है कि हमारी तमन्ना चाँद पर घर बसाने की है लेकिन क्या हम पूरी तरह अपने धरती को संवार पाए? जहाँ दुनिया का एक हिस्सा अमीरी के पालने में झूल रहा है तो दूसरा हिस्सा सोमालिया, मेडागास्कर, उत्तर कोरिया, बरुंदी, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, जैसे कई और देशों का जो अभी भी गरीबी के दलदल में फंसे हैं और वहाँ के लोग जीवन को जीने की ही जंग लड़ रहे हैं। आखिर जरूरत किस बात की है, जब मलावी जैसे देशों की स्थिति मुफ्त बीज और अनुदानिक खाद्य की बदौलत सुधारी जा सकती है तो अन्य देशों की क्यों नहीं? जहाँ खाद्यान उत्पादन की कोई कमी नहीं है बस अनिवार्यता है उनकी लोगों तक पहुँच की, जिसे supply chain की खामियाँ और बेवजह अन्न बर्बादी जरूरत मंदों तक पहुँचने से रोक रही है।

Hunger


सरकार और सामाजिक संगठन इस प्रयास में तो पहले ही लगे हैं जरूरत है हम सब को आगे आने की क्योंकि भुखमरी से जूझते जीवन में रोशनी की एक किरण लाने का दायित्व हम सभी के छोटे-छोटे प्रयासों में समाहित होता है, जिसका प्रशंसनीय उदाहरण है चेन्नई में स्थापित Community Fridge का, जरूरत है उनकी इस पहल को पूरे देश द्वारा अपनाए जाने की जिससे अन्न की बर्बादी से होने वाली भुखमरी को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सके और रही बात हमारे व्यक्तिगत समर्थन की तो स्वयं की थाली से एक अन्न बेकार न जाने का संकल्प भी बहुत कुछ बदल सकता है क्योंकि समय की मांग इस धरती को ही स्वर्ग बनाने की है न कि उसकी तलाश में धरती से दूर जाकर स्वर्ग खोजने की।

आज के लिए बस इतना ही, अगले अंक में फिर मिलेंगे तब तक के लिए ....जय हिन्द...जय भारत....


शनिवार, 14 नवंबर 2020

दीपावली की शुभकामनाएँ

Happy Deepawali


 








जन-जन के जीवन से,

बस दूर तमस का डेरा हो  

खुशियों के प्रकाश का,

अब तो हर घर में बसेरा हो ॥

बस इसी कामना के साथ दीपों के पर्व दीपावली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ

  स्वरचित: रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

                              


रविवार, 25 अक्तूबर 2020

Ram Rajya - Dussehra special

Ram Rajya - Dussehra Special

 दे रही संदेश ये सृष्टि,

पाप का अब नाश हो ।

ऐसे में अब इस धरा पर,  

आपका पुनर्वास हो ।

सो रही माया कहीं,

जीवन कहीं ओझल पड़ा ।  

नभ के हर मण्डल में,  

तेज ओझल हो चला ।

संकीर्ण हुई चाँदनी,

राग भी मद्धम हुआ ।  

अगणित हुई दिशाएँ सारी,  

मस्तक ललाट की स्वर्ण रश्मियाँ,

भयभीत बनी अब नभ थल में,

आओ हे प्रभु राम तुम वापस,

अब हमारे जीवन में ।

मर्यादा की भाव-भंगिमा,

खो गई अब बातों में ।  

दुविधा आन पड़ी धरती पर,

जिज्ञासा भी रोई है,  

सूनी पड़ी अयोध्या में अब,  

राम राज वापस लाओ।

जाने कहाँ चले गए तुम,

सरयू के आँचल के तले ।  

जीवंत वेद पंक्तियाँ,

देती तुम्हें दुहाई अब,  

आ जाओ अब लाल ओ प्यारे,

फिर से अयोध्या तुम्हें पुकारे।

फिर से अयोध्या तुम्हें पुकारे...

       स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)

 

वर्तमान परिस्थितियों में प्रभु राम के आचरण की अनिवार्यता हम सभी के लिए महत्वपूर्ण हो चली है क्योंकि रावण की बुराई अब छद्म वेश धारण किए हमारे इर्द-गिर्द व्याप्त है। इन बुराइयों का अंत हो और सत्य की पुनः स्थापना हो। इसी मंगल कामना के साथ आप सभी को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...

 


सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

दुनिया की आधी आबादी का दर्द

navdurga

 

दोस्तों, शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा के उपासना का पर्व नवरात्र प्रारम्भ हो चुका है बावजूद इसके भारत के अनेक हिस्सों से माँ का रूप कही जाने वाली नारी शक्ति के विरुद्ध हिंसाओं का दौर निरंतर जारी है। ऐसा क्यों है कि एक तरफ हम माँ के रूप मेँ नारी शक्ति को पूजते हैं तो दूसरी ओर पुरुष मानसिकता के दंभ का शिकार हो उनके अस्तित्व को ही मिटाने पर आमदा हैं और ऐसा सिर्फ हमारे देश मेँ ही नहीं है। अगर अपनी दृष्टि को वैश्विक पटल तक दौड़ाएँ तो कमोवेश दुनिया की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली नारी शक्ति का दर्द लगभग समान ही है, फिर चाहे वो मुद्दा यौन अपराधों, लैंगिक भेद-भाव, घरेलू हिंसा, अशिक्षा, कुपोषण, दहेज, उत्पीड़न, कन्या भ्रूण हत्या, असामाजिक असुरक्षा या साइबर अपराध का हो या फिर धर्म या रीति रिवाजों के नाम पर बनाई गई परम्पराओं और रूढ़ियों का, प्रत्येक परिस्थिति मेँ महिलाओं से सिर्फ एक चीज की ही कुर्बानी ली जाती है और वो है स्वतन्त्रता और सम्मान की कसौटी पर गौरव से परिपूर्ण जीवन जीने की और इसमें आहुति डाली जाती है प्रकृति प्रदत्त उन प्राणों की जिनपर ज़िम्मेदारी है इस सृष्टि के नवनिर्माण की।

हालांकि समय की बदलती धारा ने बढ़ते प्रगति चक्र में महिलाओं को कई मोर्चों पर सशक्त बनाया है बावजूद इसके आधी आबादी का एक बड़ा तबका (जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल, ब्रिटिश प्रधान मंत्री मारग्रेट थैचर और थेरसा मे, भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी, शेख हसीना, चंद्रिका रणतुंगा, सानिया मिर्जा, स्टेफी ग्राफ, इन्दिरा नूई और ऐसे न जाने कितने नाम जिन्हें Forbes पत्रिका द्वारा घोषित महिलाओं की सूची में प्रतिवर्ष शामिल किया जाता है) से अलग भी है जिसे साधारण से दिखने वाले इस जीवन के प्रत्येक मोर्चों जैसे शिक्षा, सामाजिक स्थिरता, आर्थिक सशक्तता एवं समानता तथा शारीरिक दृढ़ता के साथ मानसिक सबलता आदि पर सावधानी और जागरूकता से सधे अपने कदमों को आगे बढ़ाना पड़ता है क्योंकि दुनिया भर से आए सर्वे महिलाओं की स्थिति को कहीं भी संतोषजनक नहीं मानते, फिर वो चाहे अमेरिका में हो रही घरेलू हिंसाओं का मामला हो या फिर सीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, सऊदी अरब जैसे देशों में महिला प्रताड़ना का सिलसिला हो। अगर बात अपने देश भारत की हो तो 16 दिसंबर 2012 में पूरे देश की आवाज बने निर्भया केस की आवाज कभी ठंडी पड़ी ही नहीं बस जगहें बदलती हैं, वारदात और उसकी आक्रामकता नहीं कभी राजस्थान, कभी तेलंगाना तो कभी उत्तर प्रदेश पूरे देश का यही हाल है। ये आकड़ें तो सिर्फ उन घटनाक्रमों के हैं जो Rare of Rarest के श्रेणी में आते हैं, इनमें हिंसाओं के और रूप तो जुड़ने बाकी हैं। अगर उन सबको जोड़ दें तो आधी आबादी का ये दर्द इतना बड़ा सैलाब लाएगा कि इनसे जुड़े क़ानूनों का भी वजूद खत्म हो जाएगा। जिनके बनाए जाने से ज्यादा अमलीकरण किए जाने के अभाव से विश्व का समग्र शासनतंत्र जूझ रहा है। अनिवार्यता तो बस इस बात की है कि जो कानून इन अपराधों के लिए बनाए जाते हैं उनका पूर्ण पालन हो।



दोस्तों, महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुष्कर्म जैसे अपराध के लिए अभी हाल ही में दक्षिण एशियाई देश बांग्लादेश ने फांसी का प्रावधान किया है और हमारे यहाँ भी काफी दिनों से इसकी मांग चल रही है जबकि हैदराबाद में हुए डॉo प्रियंका रेड्डी केस में तो स्थानीय सरकार ने तुरंत ऑन-स्पॉट मृत्युदंड दे दिया बावजूद इसके अपराधी निरंकुश और अपराध निरंतर जारी है। इन अपराधों की तीव्रता इस ओर इशारा करती है की वाकई दरकार किसी न्याय से जुड़े कानून को बनाए जाने की है जिससे इस आधी आबादी के आँसू पोछे जाएँ या फिर उस न्याय की जिसे समाज के प्रत्येक सदस्य को इनके सम्मान रूप में इन्हें देना चाहिए और इसके लिए मेरा मानना है कि महिलाओं के प्रति हम सब को अपने रवैये में परिवर्तन लाना होगा यहाँ तक की खुद महिलाओं को भी, क्योंकि घरेलू हिंसा के मामले में तो अधिकतर महिलाएं ही महिलाओं की दोषी मानी जाती हैं। फिर इस बात से फर्क नहीं पड़ता की आप पुरुष हैं या महिला जरूरत है तो उस जागरूकता की जिसे हम सब को मिलकर इस समाज में लानी होगी क्योंकि हम बदलेंगे तभी ये समाज बदलेगा।

आइये इस नवरात्रि कन्या पूजन से आगे बढ़ स्त्रियों के प्रत्येक रूप को वो सम्मान देने और अधिकार देने की पहल करें जिसकी वो हकदार हैं।

तो ये था दर्द आधी आबादी का – जागरूकता के इस मुहीम का हिस्सा बनिए और कमेंट बॉक्स में अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने की पहल करिए।

                                                               धन्यवाद


सोमवार, 28 सितंबर 2020

चीन के लिए कभी स्वर्ग था भारत

 

Buddhism












चीन, चीन, चीन! दोस्तों, जब से वर्ष 2020 आरंभ हुआ है तब से लेकर मेरे इस लेख के लिखे जाने तक पूरी दुनिया को खून के आँसू रुलाने वाले चीन का नाम आज सभी के जेहन को आक्रोश से भर देने के लिए काफी है क्योंकि आज इस दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है उसके लिए सभी चीन को उत्तरदाई मानते हैं और अगर पिछले घटनाक्रमों पर नजर डालें तो ये बिल्कुल सही भी है बावजूद इसके कि 3 करोड़ 31 लाख लोगों को संक्रामक बीमारी की चपेट में लेकर और लगभग 10 लाख लोगों को मौत के घाट उतार कर भी चीन के सर से विश्व नेतृत्व पर कब्जा जमाने की महत्वाकांक्षा का अंत नहीं हुआ है, वो तो अभी भी नित नयी चालें चल रहा ताकि सुपरपावर अमेरिका से ग्लोबल लीडर का तमगा छीनकर उस पर कब्जा जमा सके और इसे हासिल करने के लिए उसने अपने पड़ोसी देश भारत की सीमाओं पर जो गंध फैला रखी है वो न केवल इस एशियाई महाद्वीप की शांति के लिए खतरा बन गई है बल्कि पूरी दुनिया के 2 गुटों में बट जाने के चलते अब विश्व शांति पर भी खतरा मंडराने लगा है। दोस्तों, अगर ऐसा होता है तो समकालिक परिस्थितियों में ये इन दो देशों की तबाही के साथ वैश्विक तबाही का भी कारण बन सकता है। ऐसे में अक्सर हमारे मन में ये सवाल उठ खड़ा होता है कि चीन का कम्युनिस्ट प्रशासन इन सब के लिए जिम्मेदार है, तो उत्तर है हाँ, बिल्कुल क्योंकि चीन ने जिस भारत की सीमाओं पर अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं वही भारत कभी चीन के लिए स्वर्ग से भी बढ़कर था, जी हाँ, स्वर्ग से भी बढ़कर और वजह बिल्कुल स्पष्ट है वहाँ बौद्ध धर्म का होना।

दोस्तों, ये बात 65वीं ईस्वी की है जब वहाँ हान वंश सम्राट मितांगी ने अपने स्वप्न में भगवान बुद्ध के दर्शन किए तो उसके बाद उन्होने अपने दूतों को भारत भेजकर बौद्ध भिक्षुओं और बौद्ध ग्रन्थों को लाने के आदेश दिये। उनके इस आदेश पर भारत से बौद्ध भिक्षु धर्मरक्ष और कश्यप मातंग भगवान बुद्ध की मूर्तियों और ग्रन्थों के साथ चीन पहुँचें और इस तरह चीन में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई। उसके बाद तो ये सिलसिला जैसे चल पड़ा चौथी शताब्दी में फाहियान और छठी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हवेन सांग ने भारत भ्रमण कर भारतीय ज्ञान, धर्म और संस्कृति को चीन पहुंचाया लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी ने इन सब पर पानी फेर दिया।

दोस्तों, चीन की समृद्धि प्राचीनकालीन भारतीय समृद्धि के आगे कहीं नहीं टिकती लेकिन उसकी महत्त्वाकांक्षाएँ शिया राजवंश (गुफाओं के साक्ष्य से प्रथम प्रमाणित राजवंश) परंतु प्रथम प्रत्यक्ष राजवंश के रूप में मौजूद शांग वंश से लेकर क्विंग राजवंश (अंतिम राजवंश) तक चलती रहीं और वजह थी इनकी विस्तारवादी नीतियां चाहे वो 220 ईसा पूर्व से 206 ईस्वी के बीच हान वंश द्वारा कोरिया, वियतनाम, मंगोलिया या मध्य एशिया तक सीमाओं का बढ़ाया जाना हो या वर्तमान में हाँगकाँग, तिब्बत, ताइवान, नेपाल और भारत पर एकाधिकार करने की होड़ हो, उसकी इच्छाओं का अंत नहीं। प्राचीनकाल में पूरी दुनिया को रेशम और कागज का निर्यात, सिल्क रूट (रेशम मार्ग) से करने वाला चीन आज भी अपने व्यापार के लिए उसे दोबारा शुरू करने की योजना को पहले ही अंजाम देने की शुरुआत कर चुका है पर रास्ते में भारत जैसे स्वाभिमानी राष्ट्र द्वारा रास्ता रोके जाने से उसका विचलित होना भी अवश्यम्भावी है।

Indian Flag


भारत अपनी सीमाएं मजबूत करता है तो दर्द चीन को होता है, ऐसा इसलिए है दोस्तों क्योंकि वो कहते हैं न एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं और दक्षिण एशिया की इस म्यान में तो एक तरफ चीन की चालबाजियों भरी आक्रामकता है तो दूसरी ओर स्वाभिमान और आधुनिकता के सांचें में सजी भारत की मजबूती। ऐसे में दुनिया में स्थिर शांति के लिए दोनों देशों का कूटनीतिक रास्तों से समाधान खोजना ही प्रासांगिक होगा बावजूद इसके चीन अपने मंसूबों को नए-नए तरीकों का इस्तेमाल कर और बल दिये जा रहा है जिसका ताजातरीन उदाहरण है अभी हाल ही में आया अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का ये बयान कि चीन अब दुनिया को अंधा और बहरा करने की तैयारी के लिए हथियार बना रहा है, वो भी स्पेस सेटेलाइट वार के जरिये दुनिया को एक तरफ इतनी बड़ी बीमारी देकर भी चीन की नापाक हसरतों में कोई कमी नहीं आई है। वो अब नए मंसूबे पालकर उन्हें पूरा करने में लग चुका है। उसकी ये नीतियाँ विश्व को किस दिशा में ले जाएंगी इसका निर्धारण भले ही तारीख करे लेकिन अभी तो उसकी नीतियों की सजा सारी दुनिया भुगत ही रही है।


सोमवार, 14 सितंबर 2020

हिन्दी दिवस पर लें संकल्प

 

Hindi Divas

आज १४ सितम्बर है और आज के इस दिन को हम सभी “हिन्दी दिवस” के रूप में विचारों के आदान-प्रदान से मंगलमयी होने की शुभकामनाएँ देकर मना रहे हैं परंतु क्या हमारे सिर्फ इस एक दिन के उत्सव से हमारी मातृभाषा/राजभाषा को वो सम्मान मिल पाएगा जिसकी इसे जरूरत है? शायद नहीं। इसका सही सम्मान तो तब होगा जब इस भाषा से जुड़े साहित्य और उनसे जुड़े रचनाकारों को अंतराष्ट्रीय स्तर पर इंग्लिश भाषा के समान पहचान और सम्मान मिले और मुझे “हिन्दी नहीं आती” कहकर गर्व महसूस करने वालों को भी इस भाषा की महत्ता का पता चले।

दोस्तों,  हिन्दी भाषा की असीम वेदना का थाह तो हमें सन् २०२० और उससे पूर्व में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली बोर्ड परीक्षाओं से होता है जहाँ छात्र अपनी राजभाषा हिन्दी में ही रिकार्ड स्तर पर असफल हो रहे हैं, उनकी ये असफलता समाज में लगातार हिन्दी के प्रति उपजी हीन भावना के कारण ही तो है जो हम सभी के लिए चिंतनीय है और इसी के चलते ये सोचना और भी अनिवार्य हो जाता है कि धीरे-धीरे ही सही जब पूरी दुनिया हिन्दी की सशक्तता स्वीकार कर रही है तो माँ भारती की सन्तानें पीछे क्यों हैं?

     इसलिए मित्रों! आइये, आज हिन्दी दिवस के इस पावन दिन हम अपनी भावी पीढ़ी को हिन्दी भाषा की ज्ञानगंगा और समृद्धि धारा से परिचित कराने का संकल्प लें, हम सभी के इस संकल्प में “हिन्दी राइटर कम्युनिटी और “हिन्दी राइटर्स ग्रुप और “हिन्दी राइटिंग ब्लॉग आपकी हर एक पहल का स्वागत करता है क्योंकि इससे हिन्दी के प्रति उपजी समग्र हीन भावनाओं का नाश होगा और हमारी आने वाली पीढ़ी के मन-मस्तिष्क में हिन्दी को लेकर नई ऊर्जा का संचार होगा।

      तो आइये मेरे साथ आप भी दोहराइए...

                        हिन्द की हिन्दी पताका,

                          जब विश्व में लहरायेगी।

                            गूंज उठेगी अ,,,,

                                 तब रंग ये मेहनत लाएगी...

                                        (स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव ”कैलाश कीर्ति”)


रविवार, 30 अगस्त 2020

परमाणु बम की सोच पर बैठी इस दुनिया का क्या होगा?





दोस्तों, जैसा कि हम सब जानते हैं आज हमारी खूबसूरत धरती और इस पर रह रही मानव सभ्यता एक ऐसे खतरनाक दौर से गुजर रही है जहाँ मानव ज़िंदगियों को बचाने के लिए दुनियाभर के warriors कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं, फिर चाहे वो उनकी खुद की जान ही क्यों न हो? लेकिन दूसरी ओर तीव्र गति से लगभग दुनिया के हर देश में पैर पसार चुकी इस महामारी के लिए शुरुआत से लेकर अब तक जो प्रयास दुनिया की ओर से किए जा रहे हैं क्या वो इस समग्र पृथ्वी की उस एकजुटता को दिखा पाने में सक्षम हैं जिसकी इस कठिन समय में जरूरत है? ये एक सवालिया प्रश्न हैं जिसका जवाब दुनियाभर के देशों के बीच इस महामारी के खिलाफ एक होकर लड़ने के आह्वान की गैरमौजूदगी के बीच हमें बार-बार दिखाई पड़ रहा है, फिर चाहे वो दुनिया का नेतृत्व करने वाले बड़े देश America, Russia, Britain या Germany हों या फिर दुनिया की तबाही का हर पल सपना संजोते चीन, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान जैसे देश जिन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी आवाम को जरूरत किस चीज की है, रोटी, स्वास्थ्य, कपड़ा और मकान की या फिर Atom Bomb (परमाणु बम)। उनकी सोच के पीछे सिर्फ और सिर्फ छुपी है एक विध्वंसात्मक सोच, तभी तो आए दिन एक ओर अगर पड़ोसी देश परमाणु हमला करने की धमकी देता रहता है, तो दूसरी ओर 24 May 2020 को आई उत्तर कोरयाई खबर भी इस बात का संकेत देती है कि COVID-19 की इस भयावह तबाही के बीच भी ये देश अपनी परमाणु मारक क्षमता बढ़ाना चाहता है और इसी के चलते दुनिया पर आए दिन इस अनचाहे हमले का खतरा मंडराता ही रहता है, ऐसे देशों की श्रेणी में कमोवेश अब चीन का भी यही हाल है बावजूद इसके इसी August माह की 6 तारीख को ठीक 75 साल पहले सन् 1945 में जापान ने हिरोशिमा में अपने 1,40,000 लोगों और 9 अगस्त को नागासाकी में लगभग 74,000 लोगों की मौत का नजारा क्रमश: Little boy” (लिटिल बॉय) और “Fat Man”(फैट मैन) नामक परमाणु बम के गिराए जाने से देखा है फिर भी लगता है उस महाविनाश से भी दुनिया ने न तब कुछ सीखा था और ना आगे कुछ सीखने के mood में है। कम से कम आज के हालात को देखकर तो बस यही लगता है, सृजन से ज्यादा तबाही ही इस दुनिया के लिए ज्यादा मायने रखती है और इस अग्नि में घी डालती चीन की नीतियाँ आने वाले समय में दुनिया को किस ओर ले जाएंगी ये तो वक्त बताएगा लेकिन विस्फोटक तबाही क्या होती है इसका बहुत छोटा सा उदाहरण है लेबनान की राजधानी बेरुथ में हुआ विस्फोट जिसमें मंशा तो नहीं थी, थी तो केवल आकस्मिकता, फिर सोचिए जिसमें मंशा होगी उसका अंजाम क्या होगा?

दोस्तों, आज दुनिया के 9 देशों के पास लगभग 13,865 से ज्यादा परमाणु हथियार हैं (रूस: 6,500, अमेरिका: 6,185, फ्रांस: 300, चीन: 290, ब्रिटेन: 200, भारत: 130-140, पाकिस्तान: 150-160, इज़राइल: 80-90) हैं और उनमें से बस कुछ ही इस जीवनदायी ग्रह पृथ्वी को समाप्त करने के लिए पर्याप्त हैं, इसलिए ये बेहद जरूरी है कि दुनिया अपनी सोच बदले और हाल-फिलहाल मानव जीवन के लिए चुनौती बन चुके इस COVID-19 नाम की आँधी को WHO के साथ एकता के सूत्र बंधकर रोकने की तैयारी करें क्योंकि इस धरती का वजूद तब तक है जब तक यहाँ जीवन है और ये जीवन कितना बेशकीमती है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कभी-कभी इस जीवन को बचाने के लिए nature को भी खुद आगे आना पड़ता है क्योंकि उसे पता है happiness सृजन में है विध्वंस में नहीं... 

Nature के इन्हीं सकारात्मक कदमों पर विश्वास की सोच को आधार देती, अपनी आशाओं के लिए बस इतना ही...

            जय हिन्द, जय भारत...

 

शनिवार, 15 अगस्त 2020

Independance Day - स्वतन्त्रता दिवस

Independance Day
 








मूर्छित पड़ी दिशाओं में

कुछ राग भक्ति भर लो

देशभक्ति की विह्वल धारा

सहज बना दें राहें अपनी

ऐसी सोच कर लो

निज हित से तुम आगे बढ़ कुछ

सर्व हित तो कर लो

मूर्छित पड़ी दिशाओं में......

खुला गगन हो

खुली हवा हो

ऐसी श्वांस भर लो  

लाचारी से हो न नाता

ऐसी जीत कर लो

मूर्छित पड़ी दिशाओं में......

रहे अखंड अक्षुण्ण आजादी

कर्म ऐसे कर लो

वक्त सबल हैं राहें भारी

निश्चय दृढ़ तुम कर लो

मूर्छित पड़ी दिशाओं में

कुछ राग भक्ति भर लो, कुछ राग भक्ति भर लो........

                          स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

 

देश की आजादी सदैव अक्षुण्ण रहे और हमारा राष्ट्र प्रगति पग पर अग्रसर...इसी कामना के साथ आप सभी को भारत के 74वें स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...

                                    



गुरुवार, 30 जुलाई 2020

प्रभु राम आगमन की प्रतीक्षा पूरी: सज रही अयोध्या




अटकलों पर लगा विराम, पूर्ण हुई प्रतीक्षा और एक बार फिर लौट रहे भगवान राम सरयू तट किनारे बसी अयोध्या नगरी, जी हाँ दोस्तों, मन हर्षित है क्योंकि वर्षों से जिस फैसले का इंतजार सम्पूर्ण भारत राष्ट्र कर रहा था वो घड़ी अब अपने निर्णायक दौर में पहुँच गयी है और अंततः 5 अगस्त सन् 2020 के ऐतिहासिक दिन अयोध्या नगरी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के भव्य मंदिर निर्माण की नींव रखने की तैयारियां हफ्तों पहले से ही शुरू हो गयी है तो वहीं दूसरी ओर सरयू तट पर दीपों की पंक्तिबद्ध लहरियाँ प्रभु आगमन का इंतजार कर रही हैं तो कहीं मार्गों पर सजती रंगलहरें हर दिशा से ये संदेश पहुंचा रही हैं कि प्रतीक्षा पूरी हुई, अब प्रभु श्री राम अयोध्या स्थित अपने जन्म भवन लौट रहे हैं। बड़ा ही मनोरम दृश्य होने वाला है, ऐसा इसलिए क्योंकि वर्षों से अपने जन्म भवन की प्रतीक्षा में प्रभु राम कपड़ों से बने टेंट की छत्र-छाया में बैठकर खुद को मिले एक और वनवास का पालन ही तो कर रहे थे जो बदलते समय चक्र के साथ बढ़ता चला जा रहा था। इससे पहले का वनवास उन्होने अपने धरती निवास के दौरान माता कैकेयी को पिता दशरथ द्वारा दिये गए वचन को पूरा करने के लिए किया था और जिसके परिणामस्वरूप लंका पति रावण को युद्ध में परास्त कर पुनः अयोध्या वापसी सुनिश्चित हो पाई थी और दूसरा ये जब लगभग 5 सदी का सफर तय कर प्रभु राम को भव्य भवन में स्थापित किया जाएगा।

दोस्तों, भगवान राम के आचरण की कर्मठता और सहनशीलता हर युग में हमें प्रेरणा देती आई है, इसके कर्म प्रवाह में बहकर हम सभी ने अपने जीवन के कर्मयुद्ध की नैया पार लगाई है। दोस्तों, त्रेता युग में भगवान विष्णु के 7वें अवतार के रूप में रघुकुल वंश में जन्में भगवान राम की भक्तिमय अविरल धारा आज श्रद्धा के उस दौर तक पहुँच चुकी है जहां उनकी भक्ति से आबद्ध राम भक्तों को वो दिव्य स्थल प्राप्त होगा जहां वो प्रभु के चरणों में शीश झुका आने वाले कल का शुभाशीष पा सकेंगे और उधर दूसरी ओर सर्व धर्म सद्भाव के रंग में रंगी अयोध्या नगरी अखिल विश्व को भाई-चारे का अद्भुत संदेश देती बस 5 अगस्त की शुभ बेला प्रतीक्षा में प्रतीक्षारत है...

        जय श्री राम...