Hindi Writing Blog: दिसंबर 2018

सोमवार, 31 दिसंबर 2018

आप सभी को नव वर्ष 2019 की हार्दिक शुभकामनाएँ



नये वर्ष की दस्तक से, पुलकित मन का आँगन है
जीवन की इस मधुरिम बेला मे, आप सभी का स्वागत है |
छोड़ गया है साल पुराना, अमिट धरोहर यादों की
नये वर्ष ने पाँव पसारा, लेकर उम्मीद मुरादों की ||

                                           ("कैलाश कीर्ति (रश्मि)" द्वारा रचित)

शनिवार, 29 दिसंबर 2018

नर नारी के बीच समानता इस मानव निर्मित समाज की अनिवार्यता क्यूँ?




नर-नारी उपहार सृष्टि का
फिर विभेद ये कैसा है |
नारी ने जन्मी मानवता
तो नर भी है सृजक समाज का ||
फिर विभेद ये कैसा है...
नर मे है पुरुषत्व का बल तो
नारी मे अंतर्बल की बहती धारा |
ऐसे मे पूरक हैं दोनों
फिर विभेद ये कैसा है ||
फिर विभेद ये कैसा है...
                ("कैलाश कीर्ति (रश्मि)" द्वारा रचित)

                                     

कल जब पूरे देश की सुर्खियों मे छाये तीन तलाक विधेयक को लोक सभा मे पारित किया गया तो देश की इस व्यवस्थापिका के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु नमन के लिए शीश अपने आप झुक गया क्योंकि ये भारतीय नारियों के इतिहास का वो स्वर्णिम दौर है जब महिलाओं की समानता को वैधानिक रूप से पुरजोर बल मिला है और ये बल आज के इस दौर मे इसलिए भी मायने रखता है क्यूंकि इसमे धर्म और समाज की बेड़ियों को तोड़ते हुए मात्र और मात्र नारी हित की ही बात दोहराई गयी है और ऐसा शायद इसलिए भी संभव हो सका है क्यूंकि आज की भारतीय नारी ने गज़ब की दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय देते हुए मानव निर्मित इस समाज मे पुरुषों के समान अधिकार को दिये जाने और अपने हक़ की लड़ाई को लड़ने वाली पहल का सदैव समर्थन किया है| 
सदियाँ गवाह रहीं हैं कि प्राचीन काल से ही भारतीय नारियां पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती रहीं हैं फिर वो चाहे युद्ध क्षेत्र हो या ज्ञान क्षेत्र सभी मे उन्होने अपनी मौजूदगी पूर्ण रूप से स्पष्ट की है यही नही उन्होने आगे बढ़कर पुरुषों के साथ तारतम्य स्थापित करते हुए विदेशी आक्रांताओं से राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा भी की है| 
ऐसे मे समय की बहती धारा मे नारियों के अस्तित्व पर धीरे-धीरे पुरुषों का पुरुषत्व हावी होता चला गया जिसने स्त्रियों को देश की परिधियों से समेंट कर घर की चार दीवारी मे कैद कर दिया परंतु हौंसलों की ऊंची उड़ान उड़ने वाली भारतीय नारियों ने गाहे-बेगाहे इन चार दीवारियों की बेड़ियों को तोड़कर भारत राष्ट्र के गर्व पटल पर अपने साहस और शौर्य की अमिट दास्तान अंकित की| 
इतना ही नही उन्नीसवीं सदी आते-आते भारतीय नारियों ने घर की जिम्मेदारियों को अपना संबल बनाते हुए समाज की नकारात्मक घटनाओं से लड़ने मे भारतीय पुरुषों का बराबरी से साथ दिया फिर वो चाहे आजादी की लड़ाई हो या आजाद भारत का नव-निर्माण सभी मे नारियों ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने कर्तव्य का बखूबी निर्वहन किया| 
इतने पर ही न रुकने वाला नर-नारी का ये अद्भुत सामंजस्य इक्कीसवीं सदी में भारत राष्ट्र की  एक नयी तस्वीर पूरी दुनिया मे प्रस्तुत कर रहा है चाहे वो सैन्य क्षेत्र हो, विज्ञान, खेल या राजनीति सभी क्षेत्रों मे ये समीकरण इतनी गहराई से समावेशित हो चुका है कि जिसके चलते आज पूरी दुनिया मे  हमारे देश को एक नही पहचान मिल रही है| 
वर्तमान मे नारियों की इस सबलता के पीछे पुरुषों के योगदान को भी कम करके नही आँका जा सकता और हर क्षेत्र मे महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने पुरुषों के सोच को बदलने पर मजबूर कर दिया| ऐसे मे हमारे समाज को अगर हमें तरक्की के नए रास्ते पर लेकर जाना है तो समाज के एक महत्वपूर्ण अंग परिवार को अपने कंधे पर आगे ले जाने वाली नारी की अनिवार्यता को समझना ही होगा जिसको आज का समाज बखूबी निभा रहा है|
ऐसे मे पुरुषों की सोच और समझ मे शामिल महिलाओं की दृढ़ इच्छाशक्ति और कर्तव्य निष्ठा वर्तमान मे पूरी दुनिया मे भारत को एक नयी बुलंदी पर लेकर जा रही है......अच्छा लगता है ये परिवर्तन!!!


शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

भारत के अतीत का गौरवशाली इतिहास: मात्र महिमामंडन या हकीकत



Great Hinduism Image

आज हम भारतीय पूरी दुनिया मे गर्व से सर ऊंचा कर ये कहते नही थकते हैं कि " हम भारतीय हैं और हमें हमारी राष्ट्रीयता पर नाज़ है| "

क्या? हमने ये कभी सोचा है कि हम भारतीयों के मनः पटल पर उकरी गर्व की ये अनुभूति हमें कहाँ से मिलती है, तो इसका सीधा उत्तर हमारे इतिहास मे छिपा है जहां से हमें वो ऊर्जा प्राप्त होती है जो सनातन काल से ही हमें विश्व नेतृत्व की क्षमता प्रदान करती है और ये मात्र हमारे इतिहास का महिमामंडन नही है अपितु यही हकीकत है| 

इतिहास साक्षी रहा है कि हमारे देश को विदेशी आक्रांताओं ने बार-बार लूटा है परंतु इन सबके बावजूद हमारे राष्ट्र के सामाजिक और सांस्कृतिक संस्कार इतने गहरे रहे हैं कि वो उखड़ने के बजाय हमेशा समृद्ध हुए हैं| 

आज मैं भारत के उस गौरवमयी इतिहास की बात कर रही हूँ जिसने दुनिया को समय-समय पर प्रगति के अनमोल तोहफे तो दिये लेकिन जिनके पद-चिन्हों को आगे बढ़ाने की होड़ मे शायद आज हम थोड़े पीछे रह गए हैं चाहे वो भारत के महर्षि कणाद का परमाणु सिद्धान्त हो या फिर ऋषि भारद्वाज का वायुयान की खोज का सिद्धान्त, इन सभी कड़ियों मे और नाम भी हैं जैसे प्राचीन गणितज्ञ और पाइथागोरस सिद्धान्त से पूर्व ही ज्यामिती के सूत्र रचने वाले बौधायन, न्यूटन से पाँच सौ वर्ष पूर्व ही गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त को जाननेवाले ऋषि भास्कराचार्य, भारत के मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक की संज्ञा से विभूषित योगसूत्र के रचनाकार पातंजलि, आयुर्वेद के महत्वपूर्ण ग्रंथ चरक संहिता के जनक ऋषि चरक, शल्य चिकित्सा के आविष्कारक ऋषि सुश्रुत, रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान के प्रस्तोता नागार्जुन, दुनिया को पहला व्याकरण देने वाले पाणिनी, थॉमस एलवा एडीसन के पहले ही बिजली के आविष्कार संबंधी ज्ञान देने वाले ऋषि अगस्त्य, महान गणितज्ञ और भविष्यवक्ता आर्यभट्ट, ये सभी कभी भारत की पहचान थे और जिन्होने आज हमपर उस परंपरा को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी सौंपी है| 

ऐसे मे हम सभी का ये उत्तरदायित्व है कि हम इतिहास पुरुषों के द्वारा दिये गए ज्ञान को अपना संबल बनाएँ और ऐसे भारत के निर्माण मे सहयोग दें जो युगों-युगों तक महिमामंडित होता रहे| 






रविवार, 16 दिसंबर 2018

वृद्धों का तिरस्कार: युवा पीढ़ी की मंशा या मजबूरी




अटूट है रिश्तो का बंधन,
अमिट है स्वरूप ये|
समय के वेग मे सहज हो,
रिश्तों का प्रारूप ये||
                 ("कैलाश कीर्ति (रश्मि)" द्वारा रचित)

वृद्धावस्था यानि मानवीय जीवन चक्र का वो पड़ाव जहाँ पहुँचकर मनुष्य जीवन और समाज से जुड़े सभी उतार-चढ़ावों से गुजरकर पूर्ण परिपक्व बन चुका होता है, परंतु प्रकृति प्रदत्त इस अवस्था तक पहुँचने के लिए उसे बाल्यावस्था, किशोरावस्था और युवावस्था की सीढ़ियों से होकर गुजरना पड़ता है जहाँ जिंदगी हर पल कुछ नया सिखाती जाती है|
ऐसे मे पूरी जिंदगी का तजुरबा हासिल कर चुके इन बुजुर्गों पर पिछले साल “वर्ल्ड एल्डर एब्यूस अवयरनेस डे” के अवसर पर “हेलपेज इंडिया”  द्वारा कराये गए सर्वे ने जब ये बताया कि भारत मे बुजुर्गों के साथ भी बहुत शर्मनाक व्यवहार होने लगा है तो इस बात ने मेरी अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया कि क्या यही हैं हमारे भारतीय मूल्य जिनपर हम विश्व गुरु होने का दम भरते हैं परंतु जब मेरे मन ने इनका मूल्यांकन प्रारम्भ किया तो मेरे सामने बहुत सारे चीजें भी निकलकर सामने आयी कि क्या आज की युवा पीढ़ी अपने बुजुर्गों के साथ जो व्यवहार कर रही हैं वो उनकी “मंशा है या फिर मजबूरी”?
मंशा और मजबूरी के बीच एक बारीक सा फासला है जिसमे आज की भाग दौड़ और प्रतिस्पर्धा से भरी जिंदगी का भी काफी योगदान है जिसने बुजुर्गों को ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि शायद उम्र के पड़ाव पर उनके अपने उनके साथ ऐसा जानबूझकर कर रहे हैं|
मैं ये नही कहती कि सभी मामलों मे ऐसा होता है परंतु बहुत से मामले ऐसे भी हैं जहाँ आज जिंदगी की जद्दोजहद अनगिनत गलतफहमियाँ पैदा कर देती हैं क्योंकि पीढ़ियों से मिले सद-आचार कभी इतने खोखले नही हो सकते जो रिश्तों की मर्यादा को न समझ सकें| बहुत से घरों मे बेटी-बहू के फर्क ने भी मानसिकता को परिवर्तित कर दिया है, ऐसे मे जितना उत्तरदायित्व युवाओं का है परिवार और रिश्तों को सजोने का उतना ही शायद बुजुर्गों का भी है| बुजुर्गों द्वारा मन की बात कह देने का मार्ग और युवाओं द्वारा उनके बातों को सुनकर समाधानपूर्ण मार्ग निकालने का विचार यदि एक साथ संयोजित हो जाए तो शायद आज भी भारत राष्ट्र की दृढ़ पारिवारिक परम्पराओं की जड़ें इतनी गहरी हैं कि कोई भी बुराई इनकी जड़ों को डिगा तक नही सकती|

रविवार, 9 दिसंबर 2018

क्यूँ दूर हो गए हम संयुक्त परिवार की धारणाओं से?


Nuclear Family Vs Joint Family

छूट गए सब रिश्ते नाते |

टूट गया वो बना घरौंदा ||

कुछ रिश्तों की डोर संभाले |

जाने हम आ गए कहाँ ||

जाने हम आ गए कहाँ…

         ("कैलाश कीर्ति (रश्मि)" द्वारा रचित)

 21वीं सदी मे दस्तक दे चुकी मानवीय सभ्यता को खुद मानव निर्मित इतिहास ने इतना कुछ दिया था कि उन्ही पर हम अपना भविष्य संवार रहे हैंआज हम सभी आगे बढ़ने और समाज मे एक मुकाम हासिल करने की प्रतिस्पर्धा मे जुटे हैं पर जब इन सब से परे होकर कभी शांत चित्त से अकेले मे बैठते हैं तो हमारा मन वही पुराने शोरगुल के लिए तड़पने लगता है जो कभी हमारे दादा-दादीनाना-नानीचाचा-चाचीताई-ताऊभाई-बहन आदि जैसे अनगिनत रिश्तों के बीच मिलता थाइतनी हलचल… के बावजूद दिल मे सुकून था जो आज की इस आपा-धापी मे कहीं खो गया है|

पहले भी इस धरा पर रहने वालों को दिन-रात के चौबीस घंटे ही मिलते थे और आज भी उतने ही मिलते हैं फिर भी वो कम ही लगते हैं क्योंकि हमने अपने आप को काम के सिलसिले मे इतना व्यस्त कर लिया है जिसके चलते परिवारों को छोड़ हमने अपनी अलग दुनिया बना ली है और परिवारों से अलग होने पर मिले इसी एकाकीपन के चलते स्ट्रेसडिप्रेशन जैसी लाइलाज बीमारियों ने हमें अपना शिकार बना लिया हैं|

क्या कभी हम सब ने ये सोचा है कि हमें ऐसा क्यों महसूस होता हैतो उत्तर है- सोचा तो हम सभी ने पर अब चीज़ें हमारे एकाधिकार से बाहर हो चली हैंशायद सत्यता भी यही है कि हमारे मन के कोने मे आज भी संयुक्त रूप से जुड़े परिवारों की परंपरागत यादें हिलोरें तो मारती हैं पर हम सब ने खुद अपने को उनसे दूर कर रखा है ऐसे मे अब हमें खुद ही आगे आना होगा ताकि जो हमें न मिला वो हम अपनी भावी पीढ़ियों को तो दे सकें|

रविवार, 2 दिसंबर 2018

आखिर हमने जहरीली क्यों कर दी हैं हवाएं?



Polluted Air


फिजाओं में न वो बात है

हवाएं भी न कुछ ख़ास हैं || 
न जाने क्यों हमीं ने ही
बदल दी है तस्वीर धरती की || 
स्वर्ग सी हो यही धरती
गगन भी श्वेत स्यामल हो || 
हवाओं का भी रुख बदले
फिजाएँ भी तो निर्मल हों || 
             
("कैलाश कीर्ति (रश्मि)" द्वारा रचित)                                   

हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली से आयी इस खबर ने कि -"यह स्वास्थ्य  की आपात स्थिति है, क्योंकि शहर व्यवहारिक रूप से गैस चैम्बर में बदल गया है" ने हम सभी को एक पल के लिए ही सही ये सोचने पर जरूर मजबूर कर दिया कि अगर हवाओं में घुले इस जहर की आज ये स्थिति है तो आने वाले समय में क्या होगी? और हमारे सामने जी रही नयी पीढ़ी का क्या होगा-वगैरह-वगैरह...

जब कभी भी कोई समाचार हमारे देश या हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा मिलता है तो हम एक पल के लिए ही सही काफी जागरूक हो जाते हैं पर अगले ही पल उसी के विरुद्ध कार्य करने में कोई कसर नहीं छोड़ते शायद ऐसा ही कुछ हमने अपने पर्यावरण के साथ भी किया है जिसका खामियाजा आज शुद्ध हवा के लिए तरसती हमारी एक-एक साँसों को भुगतना पड़ रहा है|

हमने विकास और आधुनिकता की चाह में पूरी पृथ्वी को ही असंतुलन की भेंट चढ़ा दिया है| हम मानवों की महत्वाकांक्षाओं की असीमित सीमाओं ने अगर कभी कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित भी किया तो अगले ही पल हमारे मन में पलते लालसा के भाव ने हमें पीछे धकेल दिया|

आज हमारे समाज में बहुत सारे संगठन, सरकार सभी पर्यावरण प्रदूषण की भेंट चढ़ती प्राण-वायु (ऑक्सीजन) को संभालने में लगे हैं, ऐसे में इस समाज से जुड़े होने के नाते हम सभी का ये कर्तव्य बनता है कि इनकी इस पहल में हम इनका साथ दें और अपनी धरा को जहरीली हवा के दमघोंटू आवरण से मुक्त करायें ताकि न केवल हम अपना वर्तमान सवारें अपितु अपनी पीढ़ियों को सौपें जाने वाले भविष्य के संरक्षक का दायित्व भी बखूबी निर्वाहित कर सकें