Hindi Writing Blog: क्यूँ दूर हो गए हम संयुक्त परिवार की धारणाओं से?

रविवार, 9 दिसंबर 2018

क्यूँ दूर हो गए हम संयुक्त परिवार की धारणाओं से?


Nuclear Family Vs Joint Family

छूट गए सब रिश्ते नाते |

टूट गया वो बना घरौंदा ||

कुछ रिश्तों की डोर संभाले |

जाने हम आ गए कहाँ ||

जाने हम आ गए कहाँ…

         ("कैलाश कीर्ति (रश्मि)" द्वारा रचित)

 21वीं सदी मे दस्तक दे चुकी मानवीय सभ्यता को खुद मानव निर्मित इतिहास ने इतना कुछ दिया था कि उन्ही पर हम अपना भविष्य संवार रहे हैंआज हम सभी आगे बढ़ने और समाज मे एक मुकाम हासिल करने की प्रतिस्पर्धा मे जुटे हैं पर जब इन सब से परे होकर कभी शांत चित्त से अकेले मे बैठते हैं तो हमारा मन वही पुराने शोरगुल के लिए तड़पने लगता है जो कभी हमारे दादा-दादीनाना-नानीचाचा-चाचीताई-ताऊभाई-बहन आदि जैसे अनगिनत रिश्तों के बीच मिलता थाइतनी हलचल… के बावजूद दिल मे सुकून था जो आज की इस आपा-धापी मे कहीं खो गया है|

पहले भी इस धरा पर रहने वालों को दिन-रात के चौबीस घंटे ही मिलते थे और आज भी उतने ही मिलते हैं फिर भी वो कम ही लगते हैं क्योंकि हमने अपने आप को काम के सिलसिले मे इतना व्यस्त कर लिया है जिसके चलते परिवारों को छोड़ हमने अपनी अलग दुनिया बना ली है और परिवारों से अलग होने पर मिले इसी एकाकीपन के चलते स्ट्रेसडिप्रेशन जैसी लाइलाज बीमारियों ने हमें अपना शिकार बना लिया हैं|

क्या कभी हम सब ने ये सोचा है कि हमें ऐसा क्यों महसूस होता हैतो उत्तर है- सोचा तो हम सभी ने पर अब चीज़ें हमारे एकाधिकार से बाहर हो चली हैंशायद सत्यता भी यही है कि हमारे मन के कोने मे आज भी संयुक्त रूप से जुड़े परिवारों की परंपरागत यादें हिलोरें तो मारती हैं पर हम सब ने खुद अपने को उनसे दूर कर रखा है ऐसे मे अब हमें खुद ही आगे आना होगा ताकि जो हमें न मिला वो हम अपनी भावी पीढ़ियों को तो दे सकें|

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