Hindi Writing Blog: नर नारी के बीच समानता इस मानव निर्मित समाज की अनिवार्यता क्यूँ?

शनिवार, 29 दिसंबर 2018

नर नारी के बीच समानता इस मानव निर्मित समाज की अनिवार्यता क्यूँ?




नर-नारी उपहार सृष्टि का
फिर विभेद ये कैसा है |
नारी ने जन्मी मानवता
तो नर भी है सृजक समाज का ||
फिर विभेद ये कैसा है...
नर मे है पुरुषत्व का बल तो
नारी मे अंतर्बल की बहती धारा |
ऐसे मे पूरक हैं दोनों
फिर विभेद ये कैसा है ||
फिर विभेद ये कैसा है...
                ("कैलाश कीर्ति (रश्मि)" द्वारा रचित)

                                     

कल जब पूरे देश की सुर्खियों मे छाये तीन तलाक विधेयक को लोक सभा मे पारित किया गया तो देश की इस व्यवस्थापिका के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु नमन के लिए शीश अपने आप झुक गया क्योंकि ये भारतीय नारियों के इतिहास का वो स्वर्णिम दौर है जब महिलाओं की समानता को वैधानिक रूप से पुरजोर बल मिला है और ये बल आज के इस दौर मे इसलिए भी मायने रखता है क्यूंकि इसमे धर्म और समाज की बेड़ियों को तोड़ते हुए मात्र और मात्र नारी हित की ही बात दोहराई गयी है और ऐसा शायद इसलिए भी संभव हो सका है क्यूंकि आज की भारतीय नारी ने गज़ब की दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय देते हुए मानव निर्मित इस समाज मे पुरुषों के समान अधिकार को दिये जाने और अपने हक़ की लड़ाई को लड़ने वाली पहल का सदैव समर्थन किया है| 
सदियाँ गवाह रहीं हैं कि प्राचीन काल से ही भारतीय नारियां पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती रहीं हैं फिर वो चाहे युद्ध क्षेत्र हो या ज्ञान क्षेत्र सभी मे उन्होने अपनी मौजूदगी पूर्ण रूप से स्पष्ट की है यही नही उन्होने आगे बढ़कर पुरुषों के साथ तारतम्य स्थापित करते हुए विदेशी आक्रांताओं से राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा भी की है| 
ऐसे मे समय की बहती धारा मे नारियों के अस्तित्व पर धीरे-धीरे पुरुषों का पुरुषत्व हावी होता चला गया जिसने स्त्रियों को देश की परिधियों से समेंट कर घर की चार दीवारी मे कैद कर दिया परंतु हौंसलों की ऊंची उड़ान उड़ने वाली भारतीय नारियों ने गाहे-बेगाहे इन चार दीवारियों की बेड़ियों को तोड़कर भारत राष्ट्र के गर्व पटल पर अपने साहस और शौर्य की अमिट दास्तान अंकित की| 
इतना ही नही उन्नीसवीं सदी आते-आते भारतीय नारियों ने घर की जिम्मेदारियों को अपना संबल बनाते हुए समाज की नकारात्मक घटनाओं से लड़ने मे भारतीय पुरुषों का बराबरी से साथ दिया फिर वो चाहे आजादी की लड़ाई हो या आजाद भारत का नव-निर्माण सभी मे नारियों ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने कर्तव्य का बखूबी निर्वहन किया| 
इतने पर ही न रुकने वाला नर-नारी का ये अद्भुत सामंजस्य इक्कीसवीं सदी में भारत राष्ट्र की  एक नयी तस्वीर पूरी दुनिया मे प्रस्तुत कर रहा है चाहे वो सैन्य क्षेत्र हो, विज्ञान, खेल या राजनीति सभी क्षेत्रों मे ये समीकरण इतनी गहराई से समावेशित हो चुका है कि जिसके चलते आज पूरी दुनिया मे  हमारे देश को एक नही पहचान मिल रही है| 
वर्तमान मे नारियों की इस सबलता के पीछे पुरुषों के योगदान को भी कम करके नही आँका जा सकता और हर क्षेत्र मे महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने पुरुषों के सोच को बदलने पर मजबूर कर दिया| ऐसे मे हमारे समाज को अगर हमें तरक्की के नए रास्ते पर लेकर जाना है तो समाज के एक महत्वपूर्ण अंग परिवार को अपने कंधे पर आगे ले जाने वाली नारी की अनिवार्यता को समझना ही होगा जिसको आज का समाज बखूबी निभा रहा है|
ऐसे मे पुरुषों की सोच और समझ मे शामिल महिलाओं की दृढ़ इच्छाशक्ति और कर्तव्य निष्ठा वर्तमान मे पूरी दुनिया मे भारत को एक नयी बुलंदी पर लेकर जा रही है......अच्छा लगता है ये परिवर्तन!!!


1 टिप्पणी: