Hindi Writing Blog

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

रामनवमी की शुभकामनाएँ

 

RamNavmi

नव गीत है, नव गीत है,

प्रभु राम की यह सीख है ।

जीवन चले जिस ओर तू,

ले चल मना! उस ओर तू ।

क्यूं सोचता कुछ और है,

और करता कुछ और ही ।

जबकि तेरे तो संग है प्रभु,

राम का संकल्प सीधा,

तेरे कर्मों से ही जुड़ेगा,  

जीवन का निष्कर्ष अब ।

क्यूं पड़ा किसी होड़ में तू,

जबकि तेरे तो संग है प्रभु,  

राम का संकल्प सीधा ।

मन की अधीरता त्याग दे,

ले उचित मंतव्य अब ।

ज्ञानगंगा बह उठेगी,

जीवन भी होगा सहज ।

नव गीत है, नव गीत है

          स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

आप सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!

  

 

 

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मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

Chaitra Navratri

Navratri

चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा,

ले आई खुशियां अपार

प्रकृति हिलोरें भरकर गा रही,

सृष्टि-सृजन का राग ।

कहीं उगादि,कहीं गुड़ी पड़वा,

कहीं चैत्र नवरात्र नाम अलग हैं ।

पर पर्व एक हो देते ये,

संदेश जनमानस की एका,

होगी कभी न खंडित ।

क्योंकि नूतन वर्ष बढ़ा रहा स्वयं,

राष्ट्र संस्कृति मान ।

भिन्न प्रांत हैं, भिन्न है भाषा,

पर उत्सव संग जुड़ी अभिलाषा ।

जन-मन को आपस में जोड़े,

नदियां,पर्वत, सागर गहरे और,

खिलखिलाते मौसम सारे ।

प्रकृति संग हम सबकी यारी,

चमकाएगी धरती सारी ।

चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा

             स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

 माँ के आगमन से आज पावन हो चली धरा अगले नौ दिनों तक हम सबक़ो माँ के भिन्न-भिन्न रूपों संग जीवन के इन अनमोल पलों को बिताने और उनके आशीर्वचन के सानिध्य का सौभाग्य हम सबकी झोली में सुख और समृद्धि का उपहार बनाकर बरसाने की ओर उन्मुख है बस आवश्यकता है माँ के चरणों में अपने नयनों को स्थिर कर देने की,तो आइये मित्रों माँ के आगमन के साथ हिन्दू नववर्ष का भी स्वागत कर जीवन को उन्नति के मार्ग की ओर अग्रसरित करें।

 

 

 

 

 


सोमवार, 25 मार्च 2024

Happy Holi

 

Happy Holi

होरी के रसीले गीत गाए

फागुन की बयरिया

लाल पीले हरे गुलाबी

रंगों की छूट रही फुलझरिया

श्यामा संग कृष्णा की होली

या हो ब्रज की जोरा-जोरी

संदेश सभी को इतना है बस

रंगों को अन्तर्मन पे लगाना

नीरसता को दूर भगाना

रस माधुरी छलक पड़ेगी

जीवन बगिया चहक उठेगी

रंग घुलेगा जीवन मे जब

आशाएं चंदा की सैर करेंगी

होरी के रसीले गीत गाए...

मन के सोचे जीत भी

और मन के सोच हार भी

तो चुने काहे ना जीत रे मना!  

अभिलाषाएं भी होंगी पूरी

जीवन को नवप्राण मिलेगा

रंगों की सुलझेगी पहेली

रंग बिना क्यों सूना जीवन

रंगों से ही है ये बहार

यही संदेश दोहराए ये

सृष्टि हर होरी और अबकी बार...

          स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

                                 HAPPY HORI

  

 


बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

Happy Basant Panchami

 

Vasant Panchami


                 बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ                                                               

लेकर एक स्वप्न प्यारा जब धरा,

नभ के आँगन तले, जीवन देने चली,

सृजन के नवअंकुरों ने सृष्टि का स्वागत किया,

झूमा सागर, झूमी नदियां, झूमे सारे जीव-जन्तु ।

लेकर एक स्वप्न प्यारा जब धरा

खोल पोटली जब प्रकृति ने ऋतुओं के थे रंग बिखेरे,

ग्रीष्म, शरद, पतझड़ संग ऋतुराज बसंत ने ली अंगड़ाई,

खेतों में गेहूं की बलियों और बगियाँ में आमों की बौरों

ने भी पुरवाई बयरिया संग धरा की ताल से ताल मिलाई,

लेकर एक स्वप्न प्यारा जब धरा

इंद्रधनुषी रंगों से सजकर महक उठी ये धरती सारी,

नभ भी तेजोमय हो चला देख धरा की जीवन क्यारी ।

             स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”


सोमवार, 22 जनवरी 2024

प्रभु राम का अभिनंदन

 

प्रभु राम का अभिनंदन


युग बदला
, बदल गई है दुनिया सारी,

अगर नहीं कुछ बदला है

तो वो है राम नाम की महिमा प्यारी ।

भूमि वही है, क्षितिज वही है

पर बदली जनता सारी,

अगर नहीं कुछ बदला है

तो वो है जनमानस के हृदय तल में

उठती राम नाम की धुन प्यारी ।

शासक बदला, शासन बदले

बदली सीमा सारी,

अगर नहीं कुछ बदला है

तो वो है राम नाम संग जुड़ती जाती

जनमानस की क्यारी ।

रंग नया है, रूप नया है

बदली अयोध्या सारी,

अगर नहीं कुछ बदला है

तो वो है राम-सिया संग

सौमित्र की छवि प्यारी...

                                   स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव "कैलाश कीर्ति"


आगे-आगे प्रभु राम, उनसे बस एक पग पीछे माता सीता और प्रभु राम से दो पग पीछे भ्राता लक्ष्मण। अद्भुत, अद्वितीय और मन को मोह लेने वाली छवि, हम सभी के मनः पटल पर उसी प्रकार अंकित है जिस प्रकार हमारे हृदय तल की गहराई में खुद को ढूंढते-ढूंढते हमे श्री हरि के दिव्य दर्शन मिल रहे हों। नयनों की व्याकुलता प्रभु की छवि को अपने नेत्रों में समा लेने के लिए जैसी अतुराई दिख रही है ऐसी ही शायद ही कभी रही हो, हमारे नयन तो सिर्फ प्रभु की इस छवि को चित्र स्वरूप में देखकर इतने अधीर हैं तो सोचिए जब त्रेता युग में सजीव जगत प्रभु की लीलाओं का साक्षी बना होगा तो उस समय जनमानस की अधीरता कितनी ऊंचाई पर विराजमान रही होगी। आज अयोध्या नगरी में एक बार पुनः प्रभु अपने धाम पधार रहे हैं, वो भी इतनी सारी तैयारियों के साथ, तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रभु के अयोध्या वापसी का त्रेता युग में हुआ घटनाक्रम पुनः कलयुग में भी साकार होने को उद्वेलित है। आज जगमगाती अयोध्या नगरी, सुगंधित पुष्पों की साज-सज्जा से उठने वाली सुगंध द्वारा न केवल भारत अपितु पूरी दुनिया को प्रभु राम के आगमन की सूचना दे रही है। ये अधीरता हो भी क्यों ना, प्रभु हैं ही ऐसे। उनकी मर्यादा, उनके चरित्र की गहराई, बुराई में भी अच्छाई ढूंढ लेने की उनकी कला त्रेता से लेकर कलयुग तक हर किसी के लिए अनुकरणीय है। इतिहास गवाह है जब-जब प्रभु के सिखाए रास्तों से मानव जाति पद-भ्रमित हुई तब-तब उसे एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी...

वक्त अभी शेष है, चेतना नवनिर्माण के लिए उद्वेलित है और आकांक्षाएँ नवसृजन के लिए उत्सुक, इसलिए हे! मन: चल प्रभु राम के दिखाए रास्तों से आगे चलकर मानव जाति को प्रगति पथ पर ले जाने के उनके स्वप्न को पूरा करें।

 

शेष!!! अब भी बहुत कुछ

तू छोड़ न उम्मीद पथ,

राहें आगे और जुड़ेंगी

मंजिल भी मिल जाएगी ।

रोके से सो तू रुक जो गया

हाथ नहीं कुछ आएगा,

कर्म पथ पर बढ़े कदम

जो खींचा पीछे आगे

फिर न बढ़ पाएगा ।।

शेष! अभी बहुत कुछ...

                           स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव "कैलाश कीर्ति"


बुधवार, 10 जनवरी 2024

हिन्दी दिवस कविता

Hindi Divas

 

सुमधुर स्वर लहरियों की झंकार बनी हिन्दी,

विश्व के पटल पर शब्दों का आकार बनी हिन्दी,

दुनिया के कोने-कोने तक बातों को निज भाषा में,

पहुंचाने का आधार बनी हिन्दी,

विकसित देश की ओर अग्रसर होते भारत के,

140 करोड़ देशवासियों का अभिमान बनी हिन्दी,

“हिन्दी है तो हम हैं” ऐसी पहचान बनी हिन्दी,

उन्नति की ओर खुले मार्ग अब चल पड़े मंजिलों

की ओर उन रास्तों का द्वार बनी हिन्दी।  (स्वरचित रचना)

                                रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

           विश्व हिन्दी दिवस की आप सभी को बहुत-बहुत बधाई।

 


सोमवार, 1 जनवरी 2024

नव वर्ष कविता

 

नव वर्ष कविता

शरद ऋतु के आंचल में

नूतन वर्ष के अभिनंदन पर

सूरज की अलसाई किरणें

आज जब आखें खोल रही हैं

मन ही मन बस सोच रही हैं

कितना कुछ अब बदल गया है

धरती माँ के आँगन में

साल पुराना बीत गया है

नए साल ने दी है दस्तक

सपनों को फिर पंख लगे हैं

खुशियों ने भी फैलाई हैं बाहें

कितना कुछ अब बदल गया है....

2023 लिखते थे

अब लिखेंगे 24 सब

एक अंक का फेर दिखे है

क्या सचमुच में ऐसा ही हुआ

कितना कुछ अब बदल गया है...

आशाएँ जो छूट गई हैं

उनको पूरा करना है

बीते साल की कमियों से भी

सबक सीखकर बढ़ना है

कितना कुछ अब बदल गया...

काम जो पीछे छूट गए हैं

उनको सब निपटाएंगे

उम्मीदों पर आन पड़ी धुंध से भी

पीछा अब सब छुड़ाएंगे

कितना कुछ अब बदल गया है...

     स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”


रविवार, 12 नवंबर 2023

Happy Deepawali

 


 राम नाम की ऐसी माया

काम, क्रोध, लोभ, मोह द्वेष,

घृणा, पक्षपात, अहंकार, व्यभिचार

और धोखे के दस सिर लिए

दशानन भी, जिसको समझ न पाया

राम नाम की ऐसी माया...

जब-जब तमस बढ़ा धरती पर

राम नाम ने सदा बचाया

त्रेता हो या कलयुग

राम नाम ने मानव को

हर पल ये सिखाया

धर्म सदा विजयी होगा

अधर्म गिरेगा औंधे मुंह

राम नाम की ऐसी माया...

चौदह वर्ष बिताए वन में

सिया संग वियोग सहा

पर छोड़ी नहीं दया,करुणा

सत्य-सदाचार संग भी

मर्यादा का साथ निभाया

राम नाम की ऐसी माया...

त्रेता युग से शुरू हुई

जो कलयुग तक भी जारी है

अनंतकाल तक गतिमान रहेगी

ऐसी गूढ़ता को कोई समझ न पाया

झूमी थी तब भी अयोध्या

झूम रही है आज भी

राम नाम की ऐसी माया...

 जब-जब दीपों

की अवलि में

रोशन होगी राम की माया

धरती ये नि:शब्द रहेगी

अंधकार का करके नाश

राम नाम की ऐसी माया...

                    स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

बुधवार, 4 अक्तूबर 2023

सिक्के के दो पहलू

 

Life's two parts

रिश्तों की डोर को,

चाहे जितना सुलझा रे मना!

गलतफहमियों की अगर,

गाँठे लगा दी है ऐ जिंदगी तूने,

तो अबूझ पहेली से बन,

घूमा करेंगे जग में,

न चैन मिलेगा न सुकून की छांव होगी,

बस छोटी सी बात पर शुरू हुई,

तल्खियों के साथ ही,

जिंदगी फ़ना होगी!!!

                                                 स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

 

सुबह के 8:50 हो रहे हैं, श्रेया ने अभी-अभी ऑफिस में कदम रखा है। तभी अचानक सानिध्य बॉस के केबिन से निकलकर तेजी से बाहर जाते वक्त श्रेया से टकरा जाता है, फिर बिना रुके उसे सॉरी बोलते हुए वो निकल जाता है। श्रेया बॉस के केबिन का दरवाजा खुला देख अंदर जाती है, तो वो देखती है कि बॉस का लॉकर खुला हुआ है, सारा सामान इधर-उधर फैला है। उसे ये सब देखकर लगता है कि सानिध्य ने बॉस के लॉकर को तोड़कर पैसे निकाल लिए और भाग गया। वो उसपर चोरी का इल्जाम लगाते हुए बाहर आती है। सामने से आ रहे ऑफिस बॉय को पुलिस बुलाने को कॉल करती है। तब तक पूरा स्टाफ जुट चुका है। थोड़ी देर में पुलिस भी आ पहुँचती है। पुलिस सानिध्य का फोन ट्राई करती है तो श्रेया बॉस का। दोनों के फोन स्विच ऑफ हैं। पूरे ऑफिस में हड़कंप मच जाता है। बातें होने लगती हैं। कहीं सानिध्य ने बॉस के साथ कुछ उल्टा-सीधा तो नहीं कर दिया? केबिन में बिखरे सामान और ताजा माहौल को सुव्यवस्थित करने और सबके बयान लेने में पुलिस को दो घंटे लग जाते हैं। तभी दरवाजे की ओर से बॉस श्रीधर अंदर आते दिखते हैं। उनकी अजीब सी हालत देखकर सब उनकी ओर दौड़ पड़ते हैं। वो सबको दिलासा देते हैं कि अब मैं पूरी तरफ ठीक हूँ और मेरे कारण जिस आदमी को चोट आई वो भी अब खतरे से बाहर है। ऑफिस में खड़े सभी लोग आवक होकर पूछते हैं “क्या!”

हाँ, वो अपनी ऑफिस का यंग बॉय सानिध्य है न, आज उसने एक नहीं दो जिंदगियाँ बचाईं। हुआ यूं कि मैं घर से ऑफिस के लिए निकला तो गोल गुंबद वाले चौराहे पर मेरी गाड़ी से एक बुजुर्ग पुरुष को झटका लगा, वो गिर पड़े, शायद जल्दी में थे। मैं कुछ समझ पाता तभी सानिध्य वहाँ आ गया। उसने उनके सर से बहते खून को रोकने के लिए कपड़ा बांधा और मेरी गाड़ी में उन्हें बैठा ही रहा था कि मेरे भी सीने में अचानक दर्द शुरू हो गया। दर्द ऐसा था कि मैं गाड़ी चलाने की हालत में नहीं था। उसने मुझे और उन वृद्ध महाशय दोनों को किसी तरह गाड़ी में डाला। मुझे लगा पैसों की ज्यादा जरूरत होगी इसलिए आनन-फानन में मैंने उसे चाबी देकर हॉस्पिटल जाने से पहले लॉकर से पैसे लाने को भेजा। फिर पैसे लेकर हम हॉस्पिटल गए और अब  उसकी वजह से हम दोनों सुरक्षित हैं। इतने में सानिध्य एक नायक की भांति ऑफिस में दाखिल होता है। श्रेया हतप्रभ रह जाती है।

सभी तालियाँ बजाते हैं और श्रेया को कुछ समझ नहीं आता कि वो अब क्या करे?

तभी श्रीधर ऑफिस कर्मचारियों के बीच पुलिस को देखकर चौंक पड़ते हैं। वो कहते आप लोग यहाँ? तो पुलिस ने कहा कुछ नहीं सर इन मैम को कुछ गलतफहमी हो गयी थी जिसके चलते इन्होने हमें बुला लिया था, अब हम चलते हैं। इतना कहकर वो चले गए। ले

किन श्रीधर के ऑफिस में घटे इस घटनाक्रम में दोस्तों आप जानना नहीं चाहेंगे कि श्रेया ने जो भूमिका निभाई उसके पीछे क्या था? तो इसका सीधा सा उत्तर है दोस्तों ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमारे इर्द-गिर्द जो भी घटनाक्रम घटित होते हैं उनके हमेशा दो पहलू होते हैं और हमारे साथ अक्सर ऐसा हो जाता है कि सच्चाई को जाने बगैर हम सामने दिख रहे मात्र एक पहलू को ही देखकर कोई धारणा बना लेते हैं जिससे हानि होने की संभावना काफी ज्यादा होती है और कभी-कभी तो ऐसा भी देखा गया है कि हम दूर से सुनी-सुनाई बातों को ही लेकर अपनी खुद की एक अवधारणा विकसित कर लेते हैं। हमारा दिमाग जैसा सोचता है उसे ही सच मान लेते हैं। वो भी बिना किसी छान-बीन में उलझे। लेकिन वास्तविकता ये है कि सच्चाई ठीक इसके उलट हो सकती है।

अभी हाल ही में चीन से एक वाकया आया कि एक एक बच्चे ने सिर्फ होमवर्क करने के डर से बोर्ड पर हेल्प लिखकर खिड़की से बाहर टांग दिया। पड़ोसियों के साथ पुलिस के भी हाथ-पैर फूल गए कि ऐसा क्या हुआ? लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो बात बहुत साधारण सी निकली। आज की तेजी से बदलती इस दुनिया में हम अक्सर ये गलती कर जाते हैं कि कानों सुनी पर यकीन न होने पर आँखों देखी पर भरोसा कर बैठते हैं और जीवन में ऐसे-ऐसे फैसले ले लेते हैं जिनको बाद में बदलना हमारे खुद के लिए मुश्किल हो जाता है। इसलिए किसी भी शंका या संदेह को हमारे मस्तिष्क पर हावी होने देने से पहले, घटनाक्रम की सच्चाई ठीक उसी प्रकार जांच लेने चाहिए जिस प्रकार हम किसी सिक्के को दोनों तरफ से देखकर ही ये तय कर पाते हैं कि सिक्का खरा है या खोटा।

माँ ने देखा बच्चे आज देर रात तक जग रहे हैं, सोचा पक्का इनका रातभर जागकर टीवी पर आ रही मूवी को देखने का प्लान होगा। पर हकीकत इससे कोसों दूर थी। बच्चे माँ के सोने का इंतजार इसलिए कर रहे थे ताकि उनके और पापा की मैरिज एनिवर्सरी पर वो सरप्राइज़ पार्टी दे सकें।

पति-पत्नी के बारे में ऑफिस में बैठे-बैठे सोचता है। आज मैं अपना पर्स घर पर भूल गया। निश्चित सुमेधा ने पैसे लेकर अपने लिए नई साड़ी खरीदी होगी। पति जब शाम को घर आता है तो देखता है टेबल पर शर्ट रखी है। हाथ में चाय का कप पति को पकड़ाते हुए सुमेधा कुर्सी पर बैठते हुए कहती है – आपको चार लोगों के बीच जाना होता है न, आप तो अपने लिए कुछ खरीदेंगे नहीं, मैंने सोचा मैं ही खरीद लूँ। आप अपना पर्स आज घर भूल गए थे और बड़े दिनों से मेरी इच्छा थी। आप से पैसे मांगती तो सैकड़ों काम बताकर आप अपने ऊपर पैसे खर्च करने के पैसे न देते।

दोस्तों हमारी जिंदगी है ही ऐसी मानवीय संवेदनाएँ हमें चीजों का नकारात्मक पहलू पहले दिखाती हैं, इसलिए हम सभी कहीं न कहीं अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में हर दिन कुछ नया सीखने के बावजूद इनके ताने-बाने में उलझ जाते हैं।

राघव अपने घर-परिवार से दूर गाँव में अपने बूढ़े माँ-बाप को छोड़कर एक कमरे के घर में बड़े शहर में रह रहा है। बाबूजी को लगता है बेटा जानबूझकर हमें अपने साथ नहीं ले जाता, लेकिन उधर राघव के साथ सच्चाई कुछ और है। शहर के गगनचुम्बी इमारतों में उसे अपने परिवार के रैन बसेरे के लिए मात्र एक कमरे का छोटा सा घर मिला जिसमें बा मुश्किल मुन्नी और पिंकू को उनकी माँ के साथ राघव रख पाता है वो भी इस आस में की शहर के स्कूल में पढ़-लिखकर शायद पिंकू और मुन्नी भविष्य में कुछ बन जाएँ। तो पीढ़ियों से चली आ रही परिवार की गरीबी दूर हो जाए। वो भी ज्यादा न पढ़ पाया इसलिए नौकरी अच्छी न मिली। इसलिए मजबूरी में अपने माँ-बाप से दूर यहाँ इस शहर में घुटन भरे एक कमरे में जिंदगी के दिन निकालने पड़ रहे हैं। बाबूजी और माँ को अगर यहाँ लाया तो गाँव की शुद्ध हवा जो उन्हें लंबा जीवन दे रही है वो भी यहाँ नसीब न होगी और ऊपर से अम्मा का पूरे गाँव में घूम-घूमकर अपने शरीर को मजबूत रखना भी तो बेहद जरूरी है। भगवान करे दोनों सौ साल जिएँ ताकि बच्चों को बड़ाकर मैं उन दोनों के साथ अपना जीवन फिर जी सकूँ। लेकिन दोस्तों राघव की इस गहरी सोच को सिक्के के पीछे छिपे हिस्से में मौजूद होने के कारण बाबूजी को दिखाई दे रहा था तो सिक्के के सामने का वो पहलू जिसे तेजी से भागती ये दुनिया यथार्थ का सच मानती है। सच्चाई तो ये है कि आज का हर इंसान कल को बेहतर बनाने की आस में अपने आज से कहीं न कहीं समझौता कर रहा है। लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि हम अपने दिमाग की गढ़ी बातों को अपने दिल से मनवाने पर मजबूर कर दें और उसे वही दिखाएँ जो रिश्तों को ऐसा बंजर बना दे जिसपर भावनाओं की फसल दोबारा कभी न उगे।

 दो सिक्कों के छोर वाले हमारे जिंदगी के इन उलझे रिश्तों को सुलझाने की मेरी ये छोटी सी कोशिश है। उम्मीद करती हूँ कि कहानियों पर आधारित ये लेख आपको रोचक और प्रासांगिक लगा होगा। आज के लिए इतना ही अगले अंक में फिर मिलेंगे तब तक के लिए जय हिन्द जय भारत।