Hindi Writing Blog: सितंबर 2019

रविवार, 29 सितंबर 2019

नवरात्रि (Navratri) की शुभकामनाएँ

नवरात्रि


उद्घोष है, आरंभ है,
नवरात्रि का प्रारम्भ है|
जगमगाई सी दिशाओं में,
जयकारों की ही गूंज है|
चल पड़ा फिर सिलसिला,
शक्ति की भक्ति का|
ना कहीं भी द्वेष हो,
ना कहीं क्लेश हो|
मातृ-छाँव में सभी,
सुखों का प्रवेश हो|
सुखों का प्रवेश हो...
     स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)

इन शब्दों के साथ माँ दुर्गा के आगमन पर्व नवरात्रि की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएँ...

शनिवार, 28 सितंबर 2019

भारतीय लोकतन्त्र (Indian Democracy) पर प्रहार क्यों?


Indian Democracy

लोकतन्त्र अर्थात जनता द्वारा स्वयं चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन का चलाया जाना, जो किसी भी लोकतन्त्र को समझने के लिए पर्याप्त है और ऐसी ही कुछ व्यवस्था प्राप्त राष्ट्रों की श्रेणी में शुमार है हमारा देश भारत, जहां जनता का शासन, जनता से जनता के लिए चलाया जाता है, लेकिन भारत को मिली ये लोकतान्त्रिक व्यवस्था उसे सौगात में नहीं मिली, बल्कि वर्तमान में आबादी के हिसाब से दूसरे स्थान व क्षेत्रफल के हिसाब से सातवें स्थान पर कायम भारत के लोगों के असीम बलिदान और त्याग के लंबे सिलसिले का परिणाम है ये भारतीय लोकतन्त्र (Indian Democracy) जिसनें सन् 1947 में मिली पूर्ण आजादी के बाद न केवल इस परंपरा को निभाया है अपितु आज भी इसके 73वें स्वतंत्रता दिवस तक इसके निर्वहन की गति अबाध रूप से जारी है जिसके चलते भारतीय लोकतन्त्र भारत के लोगों के अन्तर्मन में आज भी विशिष्ट स्थान पर काबिज है और शायद इसीलिए हमारा राष्ट्र भारत आज पूरी दुनियाँ के लिए अनुकरणीय लोकतंत्र का दर्जा हांसिल करता है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से इसी लोकतन्त्र पर बार-बार प्रहार किए जा रहे हैं जिसका ताजातरीन उदाहरण है दुनियाँ के प्रख्यात पत्रकार ब्रायन क्लास (Brian Klass) का जिन्होने इंडिया टुडे कानक्लेव (India Today Conclave) 2019 के कार्यक्रम मंच को साझा करते हुए कहा “भारत में लोकतन्त्र खत्म होने वाला है, वर्तमान प्रधानमंत्री की नीतियाँ इसे खत्म कर देंगी” इतना ही नहीं इससे आगे बढ़कर उन्होने कहा कि “चुनाव महज लोकतन्त्र की शुरुआत है, निष्कर्ष नहीं|उनके द्वारा कहे गए इन शब्दों का आधार क्या था, ये तो मुझे नहीं पता लेकिन इतना जरूर कहूँगी कि आखिर क्यों इतने बड़े मुल्क में कोई भी तर्क लोकतन्त्र को समाप्त करने के दु:स्वप्न तक लाकर छोड़ दिया जाता है| क्या किसी भी राजनीतिज्ञ का दलहित से ऊपर उठकर देशहित में सोचना लोकतन्त्र के खात्मे का अवसर हो सकता है? माना आज भारत की अर्थव्यवस्था अनेकों संकटों से जूझ रही है, जैसा की आंकड़े दर्शाते हैं, GDP 5% है, Manufacturing Growth घटकर 0.6% पर आ गयी है और बेरोजगारी दर (Unemployment Rate) 45 साल के उच्च स्तर पर है, लेकिन क्या सरकार द्वारा प्रयास नहीं किए जा रहे हैं, कुछ एक नीतियों से सरकार के कार्यों का हम समग्र मूल्यांकन कर उसे लोकतन्त्र की अस्मिता से जोड़ दें तो ये कहाँ तक सही है, ये भी तो हो सकता है चंद लोगों की वो सोच हो, आम जन इससे परे हों| इतना बड़ा देश है, इतने लोग हैं और लोगों की अलग-अलग सोच है, पर इन सब के बावजूद भारत के विकास की गति अनेकों मोर्चों पर लगातार जारी है| लोगों के जीवन स्तर में अनुकूल प्रभाव दर्ज हो रहे हैं, जिसकी गवाही के लिए हमें ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं वो हमें आस-पास मौजूद लोगों से महसूस हो रही है| आज भारत में हर किसी को अभिव्यक्ति की आजादी है, क्या ये सारी चीजें काफी नहीं लोकतन्त्र को प्रस्तुत करने के लिए? आखिर क्यों एक बार नहीं, बार-बार भारतीय लोकतन्त्र की अस्मिता पर प्रहार होता है? क्यों कोई दल चुनाव हार जाता है तो लोकतन्त्र खतरे में आ जाता है? ये है क्या? ये सबकुछ भारत की उस सोच का अपमान है जिसमें भारत और भारतीयों ने वसुधैव कुटुंबकम” की परंपरा दुनियाँ को दी, जो राष्ट्र पूरी वसुधा को परिवार बनाने की कल्पना को लेकर चलता हो उसके नागरिक क्या अपने देशहित की बात आने पर पीछे हट जाएंगे? इतिहास गवाह है, न ऐसा कभी हुआ है, न कभी होगा| इस उम्मीद के साथ कि भारत और भारत का लोकतन्त्र सदैव जनता और इसके सेवकों द्वारा सिंचित होता रहे  जय हिन्द, जय भारत...


रविवार, 22 सितंबर 2019

Daughter's Day की आपको ढेरों शुभकामनाएँ !!

Daughter's Day

बेटियों,

सृष्टि का आधार तुम,
तुमसे धरा, तुमसे गगन,
सूने जीवन का संचार तुम,
विधाता का दिया उपहार तुम,
शक्ति का वरदान तुम,
तुम हो तो, हम हैं,
वरन् अभिशप्त सा है ये चमन,
     अभिशप्त सा है ये चमन...||
       स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)

Daughter’s Day की इस अनुपम बेला में बेटियों को बधाई देने के साथ आइये आज हम सब संकल्प लें कि संसार की इस बगिया में खिले इन बेटी रूपी पुष्पों की चमक कभी फीकी नहीं पड़ने देंगे और “क्या हमारी और क्या आपकी”, बेटी तो बेटी होती है की भावना को लेकर आगे बढ़ें और समग्र समाज को ही बेटियों का सुरक्षित आँगन बनाएँ जहां वो पढ़ें, लिखें, खेलें और अपने जीवन को बिना किसी बंधन के आजादी से जी सकें|

शनिवार, 14 सितंबर 2019

“हिन्दी दिवस” की ढेरों शुभकामनाएँ!!!

हिन्दी दिवस

मित्रों!

आधुनिक हिन्दी के पितामह कहे जाने वाले महान हिन्दी साहित्यकार “भारतेन्दु हरिश्चंद्र” ने कहा था____

“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति के मूल |
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल....|

उनके द्वारा कहे ये शब्द आज भारत राष्ट्र को अंग्रेजों से आजादी प्राप्त किए गए इतने वर्षों बाद भी अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गयी भाषा की गिरफ्त से आजादी न मिल पाने के दर्द को बयां करते हैं और न जाने कितनों को स्वयं के अभिव्यक्ति को मात्र भाषा के आधार पर दूसरों तक न पहुंचा पाने की वेदना को भी समेटकर बस हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपनी राजभाषा हिन्दी को न केवल अपने शब्दों में शामिल करें अपितु अपनी सोच को भी हिन्दीमय कर लें क्योंकि ये पीड़ा आज इतनी बढ़ चुकी है कि अब हिन्दी के कुछ शब्दों की तुलना में अँग्रेजी के शब्द हम सभी को आसान लगने लगें हैं|

मन, वचन व कर्म में हिन्दी को शामिल किए जाने की कामना के साथ हिन्दी दिवस” की ढेरों शुभकामनाएँ!!!

सोमवार, 9 सितंबर 2019

भारतीयों की दिलों की धड़कन बना Bollywood संगीत

Bollywood Music


भारत एक ऐसा देश जिसे दुनियाँ के सबसे colorful देश की संज्ञा से नवाजा जाये तो ये अतिश्योक्ति न होगी, क्योंकि ये देश है ही ऐसा| यहाँ के लोगों की ज़िंदादिली, आशावादिता, भाग्य के भरोसे न रहने की दृढ़ता एवं संसाधनों की कमी के बावजूद हौसलों की ऊंची उड़ान देख दुनियाँ दंग है| आखिर! हम भारतीय कैसे कर पाते हैं इतना सबकुछ? तो जी हाँ, हमारी इस सोच के पीछे छिपी होती है कुछ प्रेरक सौगातें, जिनका संबंध विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हमें ऐसा आधार प्रदान कर ही जाता है कि हम सबकुछ कर लेते हैं और जहां तक यथार्थता की बात है तो 130 करोड़ की आबादी वाले दुनियाँ के विशालतम देशों में शुमार भारत एक ऐसा देश है जहां का एक बड़ा तबका माध्यम वर्ग से जुड़ा है और इन परिवारों में आने वाली पीढ़ियों को ज़्यादातर इन्हीं बातों की शिक्षा दी जाती है कि वो जीवन में कैसे सफल व सशक्त बनें और ऐसा करने के लिए ये मध्यमवर्गीय परिवार जिन चीजों का सहारा लेते हैं उनमें से एक होती है “सशक्त किरदार व प्रेरक संगीतों से सुसज्जित Bollywood की हिन्दी फिल्में”, जिन्हें इसके आरंभ से लेकर आजतक के इतिहास ने “समाज का आईना” उपाधि से विभूषित किया है और यही वजह है कि भारतीय सिनेमा आज हम भारतीयों के दिलों में बसता है| इनमें सजे संगीत अब हम सभी के सुख-दुख के साथी बन चुके हैं| आज जब चंद्रयान 2 (Chandrayan 2) की निराशा ने हमें पल भर के लिए झिंझोड़ा तो हमें एक ही बात देश के महान वैज्ञानिकों से कहने का मन हुआ ______

“रुक जाना नहीं तू कहीं हार के....(विनोद खन्ना अभिनीत फिल्म इम्तिहान)”   ये है हमारी और हम सबकी आवाज जो Bollywood फिल्मों में फिल्माए गए गानों के साथ ऐसे घुल जाती है कि विविधता से भरे इस राष्ट्र को एका के सूत्र में पिरो देती है|

आज जब कभी भारतीय खिलाड़ी किसी विश्वस्तरीय मंच पर प्रदर्शन कर रहे होते हैं तो शाहरुख खान अभिनीत “चक दे इंडिया” का वो गाना पूरे देश की पहचान बन जाता है और देशवासियों से मिले हौंसले हमारे खिलाड़ियों के मनोबल को ऐसा बढ़ाते हैं कि कामयाबी उनके कदमों को चूम ही लेती है और ये सिलसिले बदस्तूर जारी है|

अभी कुछ दिन पहले Facebook के जरिये Bollywood संगीत की दुनियाँ में कदम रखने वाली गायिका रानू मण्डल (Ranu Mandal) की कहानी भी हम भारतीयों के हिन्दी सिनेमा संगीत के प्रति हमारे लगाव को दर्शाती है कि कैसे विपरीत परिस्थितियाँ होने के बावजूद उनके जेहन में फिल्मों के ये गीत गूँजते रहे और न केवल गूँजते रहे बल्कि उन्हें एक नयी पहचान भी दे गए|

भारतीय हिन्दी सिने जगत ने ऐसे अनगिनत गीत-संगीत हमारे देश को दिये हैं जिनको हम चाहे जिन अवसरों पर हमारे जीवन में शामिल करें ये हमारे जीवन को एक नयी दिशा दे ही जाते हैं| ऐसे में मेरी बस यही कमाना है कि भारत के सिने जगत से निकलने वाली ये मधुरिम स्वर गंगाएँ भारत राष्ट्र की जमीं को सदैव सिंचित करती रहें| इसी आशा के साथ...
  जय हिन्द... जय भारत!!!

सोमवार, 2 सितंबर 2019

गणपति बप्पा मोरया - Happy Ganesh Chaturthi


Ganesh Chaturthi


एकदन्तं महाकायं लंबोदरगजाननमं |
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम् ||

चारों दिशाएँ बप्पा के आगमन के जयकारों से गुंजायमान होकर हम सभी को आनेवाले दिनों में भक्ति के रस में अनवरत सिंचित कर उनके आशीर्वाद की कृपा हम सब पर बरसाती रहें| इसी कामना के साथ आप सभी को बप्पा के माँ गौरी के साथ हरतालिका तीज पर द्वि-आगमन की हार्दिक शुभकामनाएँ ||

हुआ है जयकारा, आए हैं बप्पा यारा,
मिटा के धुंध सारा, छाएगा उजियारा |
बरसेंगी अब खुशियाँ, सँवरेगा जग सारा,
जीवंत कर दिशाएँ, चलो बप्पा के रंग, रंग जाएँ |
अब दिन हो या रैना, बप्पा के ही गुन गाएँ,
भक्ति की अलग जगाएँ, अहम् की ज्योति बुझाएँ |
चलो एक बार फिर से, बप्पा की जय मनाएँ
                      स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)

रविवार, 1 सितंबर 2019

युद्ध विभीषिकाओं(War Catastrophe) के परिणाम इतने भयावह फिर भी….

War Catastrophe

जम्मू कश्मीर से धारा 370 (Article 370) हटाये जाने के बाद से भारत को पड़ोसी मुल्क द्वारा लगातार दी जा रही युद्ध की धमकियाँ आज पूरे विश्व में बहस का मुद्दा बन गयी हैं| हालाँकि इस राज्य के हित में लिया गया भारत सरकार का ये फैसला राष्ट्र का आंतरिक मुद्दा है, फिर भी पड़ोसी देश की ये प्रतिक्रिया ऐसी क्यों है, ये अनुत्तरित (unanswerable) प्रश्न है? लेकिन इससे एक कदम और आगे बढ़कर वैश्विक स्तर पर देखें तो वहां भी हालात कुछ सामान्य नजर नहीं आते|  अभी कुछ दिन पहले तक उत्तर कोरिया द्वारा आये दिन जापान, दक्षिण कोरिया व अमेरिका को दी जा रही युद्द की धमकियाँ भी इन्हीं सिलसिलों का एक हिस्सा भर हैं| इससे आगे तो न जाने कितना कुछ प्रतिदिन घटता है, जो युद्ध की शक्ल में ऐसी अघोषित लड़ाइयाँ हैं, जिनपर आये दिन दुनियाँ के किसी न किसी कोने में इंसानियत शर्मसार हो रही है| आज विश्व के कई ऐसे देश हैं जो पूर्व में या वर्तमान में चल रही लड़ाइयों का विध्वंझेल रहे हैं, चाहे वो अफगानिस्तान हो, कुवैत, इराक, सीरिया, लेबनान, इजराइल या फिर फिलिस्तीन, सभी युद्ध रूपी इस हिंसा की भेंट में इंसानी वजूद को या तो झोंक चुके हैं या फिर झोंक रहे हैं|

आखिर इन लड़ाइयों से हांसिल क्या होता है, ये मुझे आजतक समझ नहीं आया| वैसे अगर वैश्विक स्तर पर युद्ध विभीषिकाओं की बात करें तो ज्यादा दूर जाने की जरुरत हमें नहीं पड़ेगी, क्योंकि इन युद्धों को बीते अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है| सन् 1914 से 1918 तक प्रथम विश्व युद्ध (World War I) लड़ा  गया और 1939 से 1945 तक चला द्वितीय विश्व युद्द (World War II) जिसकी गवाही देने वाले भी कुछ लोग इस धरती पर आज भी मौजूद हैं और इनके परिणाम वो तो पूरी दुनियाँ आजतक देख रही है कि कैसे इन युद्धों ने पूरी धरती को आकाश व पाताल सहित झकझोर कर रख दिया| इनके प्रभाव व परिणाम की बात यदि राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व अन्य पहलूओं से परे हटकर मात्र मानवता के विध्वंसात्मक पहलूओं को देखें तो आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं|

दोस्तों अभी कुछ दिन पूर्व मैंने सीरिया की refugee family पर बनी एक documentary देखी, जिसमें एक 9 साल की छोटी बच्ची अपने दादा-दादी, नाना-नानी और cousins को छोड़ अपने माँ-बाप व छोटी बहन के साथ एक refugee camp में रहती है| उसने बताया कि वो कैसे उन छोटी-छोटी खुशियों के लिए परेशान हो जाती है, जो उसे उसके वतन में मिलती थे, उसे नहीं पता की आगे क्या होगा? फिर भी उसकी उम्मीदें सबकुछ ठीक हो जाने की हैं| मुझे तो ये समझ ही नहीं आता की कैसे ये सबकुछ बदलेगा, कैसे बंद होगी ये अघोषित लड़ाई, जो न जाने कितनी मासूम जिंदगियों को झुलसाए जा रही है, और भी मुद्दे हैं यहाँ अशिक्षा, निर्धनता, बीमारी, भुखमरी, प्राकृतिक आपदाएँ जिनपर हमें ध्यान देने की जरूरत है, अगर हमें युद्ध छेड़ना है तो इनके खिलाफ छेड़ना चाहिए| मात्र अपनी एक सोच के लिए कुदरत द्वारा बनाई गयी इस दुनियाँ को आग की लपटों में ढकेलना कहाँ तक उचित है?