Hindi Writing Blog: युद्ध विभीषिकाओं(War Catastrophe) के परिणाम इतने भयावह फिर भी….

रविवार, 1 सितंबर 2019

युद्ध विभीषिकाओं(War Catastrophe) के परिणाम इतने भयावह फिर भी….

War Catastrophe

जम्मू कश्मीर से धारा 370 (Article 370) हटाये जाने के बाद से भारत को पड़ोसी मुल्क द्वारा लगातार दी जा रही युद्ध की धमकियाँ आज पूरे विश्व में बहस का मुद्दा बन गयी हैं| हालाँकि इस राज्य के हित में लिया गया भारत सरकार का ये फैसला राष्ट्र का आंतरिक मुद्दा है, फिर भी पड़ोसी देश की ये प्रतिक्रिया ऐसी क्यों है, ये अनुत्तरित (unanswerable) प्रश्न है? लेकिन इससे एक कदम और आगे बढ़कर वैश्विक स्तर पर देखें तो वहां भी हालात कुछ सामान्य नजर नहीं आते|  अभी कुछ दिन पहले तक उत्तर कोरिया द्वारा आये दिन जापान, दक्षिण कोरिया व अमेरिका को दी जा रही युद्द की धमकियाँ भी इन्हीं सिलसिलों का एक हिस्सा भर हैं| इससे आगे तो न जाने कितना कुछ प्रतिदिन घटता है, जो युद्ध की शक्ल में ऐसी अघोषित लड़ाइयाँ हैं, जिनपर आये दिन दुनियाँ के किसी न किसी कोने में इंसानियत शर्मसार हो रही है| आज विश्व के कई ऐसे देश हैं जो पूर्व में या वर्तमान में चल रही लड़ाइयों का विध्वंझेल रहे हैं, चाहे वो अफगानिस्तान हो, कुवैत, इराक, सीरिया, लेबनान, इजराइल या फिर फिलिस्तीन, सभी युद्ध रूपी इस हिंसा की भेंट में इंसानी वजूद को या तो झोंक चुके हैं या फिर झोंक रहे हैं|

आखिर इन लड़ाइयों से हांसिल क्या होता है, ये मुझे आजतक समझ नहीं आया| वैसे अगर वैश्विक स्तर पर युद्ध विभीषिकाओं की बात करें तो ज्यादा दूर जाने की जरुरत हमें नहीं पड़ेगी, क्योंकि इन युद्धों को बीते अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है| सन् 1914 से 1918 तक प्रथम विश्व युद्ध (World War I) लड़ा  गया और 1939 से 1945 तक चला द्वितीय विश्व युद्द (World War II) जिसकी गवाही देने वाले भी कुछ लोग इस धरती पर आज भी मौजूद हैं और इनके परिणाम वो तो पूरी दुनियाँ आजतक देख रही है कि कैसे इन युद्धों ने पूरी धरती को आकाश व पाताल सहित झकझोर कर रख दिया| इनके प्रभाव व परिणाम की बात यदि राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व अन्य पहलूओं से परे हटकर मात्र मानवता के विध्वंसात्मक पहलूओं को देखें तो आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं|

दोस्तों अभी कुछ दिन पूर्व मैंने सीरिया की refugee family पर बनी एक documentary देखी, जिसमें एक 9 साल की छोटी बच्ची अपने दादा-दादी, नाना-नानी और cousins को छोड़ अपने माँ-बाप व छोटी बहन के साथ एक refugee camp में रहती है| उसने बताया कि वो कैसे उन छोटी-छोटी खुशियों के लिए परेशान हो जाती है, जो उसे उसके वतन में मिलती थे, उसे नहीं पता की आगे क्या होगा? फिर भी उसकी उम्मीदें सबकुछ ठीक हो जाने की हैं| मुझे तो ये समझ ही नहीं आता की कैसे ये सबकुछ बदलेगा, कैसे बंद होगी ये अघोषित लड़ाई, जो न जाने कितनी मासूम जिंदगियों को झुलसाए जा रही है, और भी मुद्दे हैं यहाँ अशिक्षा, निर्धनता, बीमारी, भुखमरी, प्राकृतिक आपदाएँ जिनपर हमें ध्यान देने की जरूरत है, अगर हमें युद्ध छेड़ना है तो इनके खिलाफ छेड़ना चाहिए| मात्र अपनी एक सोच के लिए कुदरत द्वारा बनाई गयी इस दुनियाँ को आग की लपटों में ढकेलना कहाँ तक उचित है?


2 टिप्‍पणियां:

  1. युद्ध के माध्यम से नियति संतुलन बनाती है माल्थस के अनुसार.. भीड़ की छंटनी.. प्राकृतिक आपदा या युद्ध करते हैं ..जीवन अस्थिर है.. सदा युद्ध जारी रहता है

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  2. कुदरत ने धरती को जीवन देने के लिए चुना है और जहाँ तक संतुलन की बात है तो उसके लिए प्राकृतिक आपदाएं काफी हैं| मेरे मत से मनुष्य जब किसी को जीवन दे नहीं सकता तो उसे छीनने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए, खैर! अपनी बात हम तक पहुँचाने के लिए आपका शुक्रिया, परन्तु मतों पर समानता व विभिन्नता दोनों ही सृष्टि संतुलन के लिए अनिवार्य है|

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