Hindi Writing Blog: 2023

रविवार, 12 नवंबर 2023

Happy Deepawali

 


 राम नाम की ऐसी माया

काम, क्रोध, लोभ, मोह द्वेष,

घृणा, पक्षपात, अहंकार, व्यभिचार

और धोखे के दस सिर लिए

दशानन भी, जिसको समझ न पाया

राम नाम की ऐसी माया...

जब-जब तमस बढ़ा धरती पर

राम नाम ने सदा बचाया

त्रेता हो या कलयुग

राम नाम ने मानव को

हर पल ये सिखाया

धर्म सदा विजयी होगा

अधर्म गिरेगा औंधे मुंह

राम नाम की ऐसी माया...

चौदह वर्ष बिताए वन में

सिया संग वियोग सहा

पर छोड़ी नहीं दया,करुणा

सत्य-सदाचार संग भी

मर्यादा का साथ निभाया

राम नाम की ऐसी माया...

त्रेता युग से शुरू हुई

जो कलयुग तक भी जारी है

अनंतकाल तक गतिमान रहेगी

ऐसी गूढ़ता को कोई समझ न पाया

झूमी थी तब भी अयोध्या

झूम रही है आज भी

राम नाम की ऐसी माया...

 जब-जब दीपों

की अवलि में

रोशन होगी राम की माया

धरती ये नि:शब्द रहेगी

अंधकार का करके नाश

राम नाम की ऐसी माया...

                    स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

बुधवार, 4 अक्तूबर 2023

सिक्के के दो पहलू

 

Life's two parts

रिश्तों की डोर को,

चाहे जितना सुलझा रे मना!

गलतफहमियों की अगर,

गाँठे लगा दी है ऐ जिंदगी तूने,

तो अबूझ पहेली से बन,

घूमा करेंगे जग में,

न चैन मिलेगा न सुकून की छांव होगी,

बस छोटी सी बात पर शुरू हुई,

तल्खियों के साथ ही,

जिंदगी फ़ना होगी!!!

                                                 स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

 

सुबह के 8:50 हो रहे हैं, श्रेया ने अभी-अभी ऑफिस में कदम रखा है। तभी अचानक सानिध्य बॉस के केबिन से निकलकर तेजी से बाहर जाते वक्त श्रेया से टकरा जाता है, फिर बिना रुके उसे सॉरी बोलते हुए वो निकल जाता है। श्रेया बॉस के केबिन का दरवाजा खुला देख अंदर जाती है, तो वो देखती है कि बॉस का लॉकर खुला हुआ है, सारा सामान इधर-उधर फैला है। उसे ये सब देखकर लगता है कि सानिध्य ने बॉस के लॉकर को तोड़कर पैसे निकाल लिए और भाग गया। वो उसपर चोरी का इल्जाम लगाते हुए बाहर आती है। सामने से आ रहे ऑफिस बॉय को पुलिस बुलाने को कॉल करती है। तब तक पूरा स्टाफ जुट चुका है। थोड़ी देर में पुलिस भी आ पहुँचती है। पुलिस सानिध्य का फोन ट्राई करती है तो श्रेया बॉस का। दोनों के फोन स्विच ऑफ हैं। पूरे ऑफिस में हड़कंप मच जाता है। बातें होने लगती हैं। कहीं सानिध्य ने बॉस के साथ कुछ उल्टा-सीधा तो नहीं कर दिया? केबिन में बिखरे सामान और ताजा माहौल को सुव्यवस्थित करने और सबके बयान लेने में पुलिस को दो घंटे लग जाते हैं। तभी दरवाजे की ओर से बॉस श्रीधर अंदर आते दिखते हैं। उनकी अजीब सी हालत देखकर सब उनकी ओर दौड़ पड़ते हैं। वो सबको दिलासा देते हैं कि अब मैं पूरी तरफ ठीक हूँ और मेरे कारण जिस आदमी को चोट आई वो भी अब खतरे से बाहर है। ऑफिस में खड़े सभी लोग आवक होकर पूछते हैं “क्या!”

हाँ, वो अपनी ऑफिस का यंग बॉय सानिध्य है न, आज उसने एक नहीं दो जिंदगियाँ बचाईं। हुआ यूं कि मैं घर से ऑफिस के लिए निकला तो गोल गुंबद वाले चौराहे पर मेरी गाड़ी से एक बुजुर्ग पुरुष को झटका लगा, वो गिर पड़े, शायद जल्दी में थे। मैं कुछ समझ पाता तभी सानिध्य वहाँ आ गया। उसने उनके सर से बहते खून को रोकने के लिए कपड़ा बांधा और मेरी गाड़ी में उन्हें बैठा ही रहा था कि मेरे भी सीने में अचानक दर्द शुरू हो गया। दर्द ऐसा था कि मैं गाड़ी चलाने की हालत में नहीं था। उसने मुझे और उन वृद्ध महाशय दोनों को किसी तरह गाड़ी में डाला। मुझे लगा पैसों की ज्यादा जरूरत होगी इसलिए आनन-फानन में मैंने उसे चाबी देकर हॉस्पिटल जाने से पहले लॉकर से पैसे लाने को भेजा। फिर पैसे लेकर हम हॉस्पिटल गए और अब  उसकी वजह से हम दोनों सुरक्षित हैं। इतने में सानिध्य एक नायक की भांति ऑफिस में दाखिल होता है। श्रेया हतप्रभ रह जाती है।

सभी तालियाँ बजाते हैं और श्रेया को कुछ समझ नहीं आता कि वो अब क्या करे?

तभी श्रीधर ऑफिस कर्मचारियों के बीच पुलिस को देखकर चौंक पड़ते हैं। वो कहते आप लोग यहाँ? तो पुलिस ने कहा कुछ नहीं सर इन मैम को कुछ गलतफहमी हो गयी थी जिसके चलते इन्होने हमें बुला लिया था, अब हम चलते हैं। इतना कहकर वो चले गए। ले

किन श्रीधर के ऑफिस में घटे इस घटनाक्रम में दोस्तों आप जानना नहीं चाहेंगे कि श्रेया ने जो भूमिका निभाई उसके पीछे क्या था? तो इसका सीधा सा उत्तर है दोस्तों ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमारे इर्द-गिर्द जो भी घटनाक्रम घटित होते हैं उनके हमेशा दो पहलू होते हैं और हमारे साथ अक्सर ऐसा हो जाता है कि सच्चाई को जाने बगैर हम सामने दिख रहे मात्र एक पहलू को ही देखकर कोई धारणा बना लेते हैं जिससे हानि होने की संभावना काफी ज्यादा होती है और कभी-कभी तो ऐसा भी देखा गया है कि हम दूर से सुनी-सुनाई बातों को ही लेकर अपनी खुद की एक अवधारणा विकसित कर लेते हैं। हमारा दिमाग जैसा सोचता है उसे ही सच मान लेते हैं। वो भी बिना किसी छान-बीन में उलझे। लेकिन वास्तविकता ये है कि सच्चाई ठीक इसके उलट हो सकती है।

अभी हाल ही में चीन से एक वाकया आया कि एक एक बच्चे ने सिर्फ होमवर्क करने के डर से बोर्ड पर हेल्प लिखकर खिड़की से बाहर टांग दिया। पड़ोसियों के साथ पुलिस के भी हाथ-पैर फूल गए कि ऐसा क्या हुआ? लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो बात बहुत साधारण सी निकली। आज की तेजी से बदलती इस दुनिया में हम अक्सर ये गलती कर जाते हैं कि कानों सुनी पर यकीन न होने पर आँखों देखी पर भरोसा कर बैठते हैं और जीवन में ऐसे-ऐसे फैसले ले लेते हैं जिनको बाद में बदलना हमारे खुद के लिए मुश्किल हो जाता है। इसलिए किसी भी शंका या संदेह को हमारे मस्तिष्क पर हावी होने देने से पहले, घटनाक्रम की सच्चाई ठीक उसी प्रकार जांच लेने चाहिए जिस प्रकार हम किसी सिक्के को दोनों तरफ से देखकर ही ये तय कर पाते हैं कि सिक्का खरा है या खोटा।

माँ ने देखा बच्चे आज देर रात तक जग रहे हैं, सोचा पक्का इनका रातभर जागकर टीवी पर आ रही मूवी को देखने का प्लान होगा। पर हकीकत इससे कोसों दूर थी। बच्चे माँ के सोने का इंतजार इसलिए कर रहे थे ताकि उनके और पापा की मैरिज एनिवर्सरी पर वो सरप्राइज़ पार्टी दे सकें।

पति-पत्नी के बारे में ऑफिस में बैठे-बैठे सोचता है। आज मैं अपना पर्स घर पर भूल गया। निश्चित सुमेधा ने पैसे लेकर अपने लिए नई साड़ी खरीदी होगी। पति जब शाम को घर आता है तो देखता है टेबल पर शर्ट रखी है। हाथ में चाय का कप पति को पकड़ाते हुए सुमेधा कुर्सी पर बैठते हुए कहती है – आपको चार लोगों के बीच जाना होता है न, आप तो अपने लिए कुछ खरीदेंगे नहीं, मैंने सोचा मैं ही खरीद लूँ। आप अपना पर्स आज घर भूल गए थे और बड़े दिनों से मेरी इच्छा थी। आप से पैसे मांगती तो सैकड़ों काम बताकर आप अपने ऊपर पैसे खर्च करने के पैसे न देते।

दोस्तों हमारी जिंदगी है ही ऐसी मानवीय संवेदनाएँ हमें चीजों का नकारात्मक पहलू पहले दिखाती हैं, इसलिए हम सभी कहीं न कहीं अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में हर दिन कुछ नया सीखने के बावजूद इनके ताने-बाने में उलझ जाते हैं।

राघव अपने घर-परिवार से दूर गाँव में अपने बूढ़े माँ-बाप को छोड़कर एक कमरे के घर में बड़े शहर में रह रहा है। बाबूजी को लगता है बेटा जानबूझकर हमें अपने साथ नहीं ले जाता, लेकिन उधर राघव के साथ सच्चाई कुछ और है। शहर के गगनचुम्बी इमारतों में उसे अपने परिवार के रैन बसेरे के लिए मात्र एक कमरे का छोटा सा घर मिला जिसमें बा मुश्किल मुन्नी और पिंकू को उनकी माँ के साथ राघव रख पाता है वो भी इस आस में की शहर के स्कूल में पढ़-लिखकर शायद पिंकू और मुन्नी भविष्य में कुछ बन जाएँ। तो पीढ़ियों से चली आ रही परिवार की गरीबी दूर हो जाए। वो भी ज्यादा न पढ़ पाया इसलिए नौकरी अच्छी न मिली। इसलिए मजबूरी में अपने माँ-बाप से दूर यहाँ इस शहर में घुटन भरे एक कमरे में जिंदगी के दिन निकालने पड़ रहे हैं। बाबूजी और माँ को अगर यहाँ लाया तो गाँव की शुद्ध हवा जो उन्हें लंबा जीवन दे रही है वो भी यहाँ नसीब न होगी और ऊपर से अम्मा का पूरे गाँव में घूम-घूमकर अपने शरीर को मजबूत रखना भी तो बेहद जरूरी है। भगवान करे दोनों सौ साल जिएँ ताकि बच्चों को बड़ाकर मैं उन दोनों के साथ अपना जीवन फिर जी सकूँ। लेकिन दोस्तों राघव की इस गहरी सोच को सिक्के के पीछे छिपे हिस्से में मौजूद होने के कारण बाबूजी को दिखाई दे रहा था तो सिक्के के सामने का वो पहलू जिसे तेजी से भागती ये दुनिया यथार्थ का सच मानती है। सच्चाई तो ये है कि आज का हर इंसान कल को बेहतर बनाने की आस में अपने आज से कहीं न कहीं समझौता कर रहा है। लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि हम अपने दिमाग की गढ़ी बातों को अपने दिल से मनवाने पर मजबूर कर दें और उसे वही दिखाएँ जो रिश्तों को ऐसा बंजर बना दे जिसपर भावनाओं की फसल दोबारा कभी न उगे।

 दो सिक्कों के छोर वाले हमारे जिंदगी के इन उलझे रिश्तों को सुलझाने की मेरी ये छोटी सी कोशिश है। उम्मीद करती हूँ कि कहानियों पर आधारित ये लेख आपको रोचक और प्रासांगिक लगा होगा। आज के लिए इतना ही अगले अंक में फिर मिलेंगे तब तक के लिए जय हिन्द जय भारत।


रविवार, 24 सितंबर 2023

Happy Daughter's Day

 

Happy Daughter's Day

चलो बेटियों की दुनिया सजाएँ

काम से थककर आए पिता के लिए

पानी का ग्लास लेकर दौड़ने वाली बेटियाँ

जीवन से जीवन को जोड़ती

वो अनमोल डोर हैं

जिन्हें न महलों की शानों-शौकत चाहिए

न सोने चाँदी का पालना

उन्हें तो बस चाहिए

माँ-बाबा के हाथों से बना

झूले का ऐसा हार

जिसमें झूलकर वो गगन की

ऊंचाइयों तक कुल, परिवार, समाज सहित

सभी दुनियाई बंधनों को तोड़कर परिंदों सी उड़ती फिरें

ताकि उनकी इस उड़ान से

ये जमीं ऐसी जगमगाए

जिसमें संस्कारों की उपजती फसल

के रसास्वादन से

ये समस्त सृष्टि अभिभूत हो जाए

शौर्य, पराक्रम, साहस, असमानता और बुद्धिमत्ता

से मिली चुनौतियाँ फिर कभी बेटियों के पैरों की बेड़ियाँ न बनाने पाएँ

तो आइये इस बेटी दिवस हम सब खुद से कहा एक संकल्प दोहराएँ “बेटियों को मायके और सासरे की दहलीज़ से निकालकर चलिये एक बार फिर उन्हें मन के आँगन के बगिया में सजाएँ”         Happy Daughter’s Day!!!


रविवार, 16 जुलाई 2023

सावन की बूंदें

 



सावन की मनोहारी बूंदें

गाएँ बरखा राग,

कहीं रौद्र तो कहीं शांत हो

देती हैं संदेश ।

प्रकृति विनाश तो प्रकृति सृजन भी

दोनों पहलू एक,

ज्ञान अधूरा कहलाएगा

जो चुना नाश का साथ ।

सृजन संग ले चल कारवां

काहें करे विनाश,

मन अधीर मानव का तन

पर देना होगा साथ ।

किंकर्तव्यविमूढ़ बना अगर तू

वक्त कभी न देगा साथ,

सम्हाल सृष्टि अब समय शेष जो

वरना जीवन की यह भौतिक माया

छीन लेगी प्रकृति की छाया ।

न सृष्टि रहेगी न ये जीवन,

बस चहुं हो ओर दिखलाई देगा

बरखा का ये जल ही जल ।

कहीं रौद्र तो कहीं शांत हो

बच जाएंगे दोनों अब भी

जो हमने प्रकृति हित में कदम उठाया,

अपनी धरती चलो बचाएं

प्रकृति माँ का साथ निभाएँ ।

सावन की मनोहारी बूंदें देती हैं संदेश...

                 स्वरचित “कैलाश कीर्ति” रश्मि श्रीवास्तव



रविवार, 14 मई 2023

Mothers Day

 

मदर्स डे

माँ के आंचल में छुपा बेशुमार प्यार

बस यूं ही नजर आ जाता है हमें,

लेकिन माँ के दिल में छिपे दर्द को

क्या देखा है किसे ने?

बच्चों की करती है जब

दुनिया की बुरी नजरों से हिफाजत वही माँ,

तो उसके इस आंचल को दीवार बनते

तो देखा है हम सब ने,

लेकिन क्या कभी माँ की आँखों में

सूख चुके आंसुओं को देखा है किसी ने?

माँ की मूरत ऐसी है कि

ढूँढने बैठो गम तो भी

खुशियाँ ही मिलती हैं हजार दोस्तों,

लेकिन माँ की खुशियों को

क्या सोचा है किसी ने?

खुले आसमान से फैले माँ के आंचल में

सूरज का उजाला है तो चंदा की चाँदनी भी,

तभी तो जब लोरियां बरसाए माँ प्यारी

गर्म एहसास संग सुकून भरी ठंडक को

महसूस किया है हम सभी ने,

लेकिन क्या तपती धूप और कड़कड़ाती ठंड में भी

थाली में परोसे गए खाने को

गर्मागर्म खा लेने की नसीहत देती,

माँ की आँखों में पलते सपनों को भी

देखा है किसी ने?

कहती नहीं है माँ कुछ भी

बस जीवन की हर बाधाएँ

आसान बना देती है,

पर उसकी राहों में आई मुश्किलों

को क्या देखा है किसी ने?

माँ के आंचल में छुपा बेशुमार प्यार...

                        स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव "कैलाश कीर्ति"

 

मंगलवार, 2 मई 2023

ये करके क्या मिलेगा?

 

Truth of Life


ये करके क्या मिलेगा? यूं तो ये सुनने, पढ़ने और बोलने में बिल्कुल सीधा सा वाक्य है, जिसे अक्सर हमारे द्वारा या हमारे इर्द-गिर्द लोगों द्वारा प्रायः बोला या सुना जाता है, लेकिन क्या कभी हम सब ने इस छोटे परंतु गहराई से भरे वाक्य का अर्थ समझने की कोशिश की है? नहीं ना! क्योंकि ये है ही इतना साधारण। परंतु असाधारण बात तो तब होती है जब इसमें छुपी नकारात्मकता हमारे सामने असफलता का प्रारूप लिए आ खड़ी होती है।

हम जब बाल्यावस्था में होते हैं तो हमारे माता-पिता जब हमसे कहने को कहते हैं तब हम हमेशा यही कहते हैं – आप ये करने को मुझसे कह तो रहे हैं, पर मुझे ये करके क्या मिलेगा?” ऐसा कहते वक्त तो कभी-कभी तो हम कुछ सोचते भी नहीं, बस कह जाते हैं क्योंकि हम उसे करना नहीं चाहते या फिर उसे करने में हमें हमारा कोई फायदा दिखलाई नहीं देता। शायद, यही कारण है कि कार्य को करने के बाद मिलने वाले सकारात्मक परिणाम को सोचे बिना ही हम पहले से ही हार मान लेते हैं कि अगर मैंने ये कर भी लिया तो मुझे क्या हासिल होगा?

दोस्तों, आज कि उपर्युक्त विषय पर चर्चा मेरे लेखन के अल्पविराम के बाद आप तक पहुँच रही है। कुछ दिनों पूर्व आप मित्रों की मेरे ब्लॉग में अनुपस्थिति और सकारात्मक टिप्पणियाँ प्राप्त न हो पाने के घटनाक्रम ने मेरे भी मन मस्तिष्क में इस भावना को आकार दे दिया कि अरे छोड़ो! ये करके क्या मिलेगा?” लिहाजा मैंने छोड़ दिया। लेकिन तत्कालीन वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर के महत्वपूर्ण विषयों को छोड़कर आज के इस विषय को चुनना और आपके साथ इससे जुड़े विचारों को साझा करने के पीछे शायद मेरा अभिप्राय अपने अनुभव से आप तक उन बातों को पहुंचाना है जो इस छोटे से वाक्य के पीछे है और सच्चाई जितना ही कड़वा है क्योंकि जिस प्रकार सच सुनने/बोलने की क्षमता हर किसी में नहीं होती उसी प्रकार कुछ कर गुजरने का माद्दा भी ईश्वर सिर्फ इंसानों को ही देता है। ऐसे में लक्ष्य स्पष्ट हो तो पीछे हटना कायरता के सिवा कुछ भी नहीं। कुछ करके हमें क्या मिलेगा, वो तो कार्य की परिणति के बाद का परिणाम तय करता है। परंतु, बिना किए ही उससे हार मान लेना अपनी कमजोरियों को छिपाने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। श्रेष्ठ और श्रेष्ठतम के बीच बस फासला चंद शब्दों का नहीं है बल्कि एक पूरी शृंखला ही इससे जुड़ी है। कार्य को करना, उसे सफलता की ओर लेकर जाना, ये कर्म करने की एक ऐसी कसौटी है जिसकी चेतना सृष्टि में मौजूद सभी जीवंत रचनाओं को प्राप्त है।

जब एक चिड़िया तिनका-तिनका जोड़कर अपना घोसला बनाती है तो ये नहीं सोचती कि ये करके क्या मिलेगा? जब तलहटी में लगे पानी को ऊपर लाने के लिए कौआ किसी पात्र (बर्तन) में कंकड़ के अनगिनत टुकड़े डालता है तो वो ये नहीं सोचता की उसे ये करके क्या मिलेगा, उसके सामने तो बस एक ही लक्ष्य होता है कि पानी बाहर आए और उसे पी कर वो अपनी प्यास बुझाए।

दोस्तों, कर्म और कर्महीनता दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अगर हम कर्म को स्वीकार करते हैं तो ये संसार हमें कर्मठ कहकर हमारी प्रशंसा करता है और अगर हम कर्महीनता को स्वीकारते हैं तो आलसी कहकर हमें धिक्कारा जाता है। चुनाव हम पर ही है, क्योंकि सृष्टि ने हमें विवेकशीलता का एक मूर्धन्य आवरण का चोला हमारे मस्तिष्क पर डालकर हम इन्सानों को ही इस संसार को चलायमान रखने का भार सौंपा है। ऐसे में घर के छोटे कामों से लेकर जिंदगी के बड़े फैसलों के लेने तक अगर ये वाक्य कि “ये करके क्या मिलेगा?” जिंदगी में शामिल हुआ तो समझ लीजिये इसने हमारी चेतना और हमारे वजूद को चुनौती दे डाली है क्योंकि ये वही सोच है जो हमारे कर्म का रास्ता रोकने को तैयार बैठी है।

इसीलिए, गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कर्म को परिभाषित करते हुए कहा –

        कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

           मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोsस्तवकर्मणि॥2.47॥

 

गीता के संदेश को जब-जब हम अपने मस्तिष्क से जोड़ेंगे तब-तब हम ये पाएंगे

करके ही सब मिलेगा वरना कुछ न मिलेगा”  

दोस्तों, आपसे अपने विचार साझा करके मुझे हार्दिक प्रसन्नता होती है। आपकी सकारात्मक टिप्पणी मेरी प्रेरर्णा है, इन्हें बनाए रखिए। आज के अंक में बस इतना है। अगले अंक में फिर मिलेंगे तब तक के लिए जय हिन्द, जय भारत!!!



बुधवार, 8 मार्च 2023

पैरों के वो निशां जो इतिहास रच गए - महिला दिवस विशेषांक

 

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस


दोस्तों, सन् 2023 की होली, पूरे देश में लगातार 2 दिनों, 7 और 8 मार्च को मनाई जा रही है पर इस खास उत्सव के भीड़-भाड़ के बीच एक और स्पेशल डे हम सब का इंतज़ार कर रहा है। हम इस खास दिन को उन्हें स्पेशल फ़ील कराएं या ना कराएं पर इस दिन हम सभी अपने आप से एक वादा जरूर करते हैं कि सिर्फ ये एक दिन ही क्यों? हमें उनके पूरे साल के हर एक दिन को स्पेशल फ़ील कराना चाहिए, पर कितना हम कर पाते हैं ये तो हमारा दिल ही जानता है, इसलिए अगला-पिछला सब भूलकर आइए इस महिला दिवस दूसरों के वजूद को बनाने वाली उस नारी को सलाम करें जो रोज़मर्रा की अपनी जिंदगी में खुद कहीं न कहीं अपना ही वजूद तलाश करती आपको नजर आ जाएगी।

जी हाँ, आज का दिन उस नारी का है जिसे माना तो दुनिया की आधी आबादी जाता है लेकिन क्या बतौर बेटी, बतौर पत्नी, बतौर माँ या बतौर सहकर्मी उनको दी जा रही खुशियों और अधिकारों में वो न्याय होता दिखाई दे रहा है जिसकी उन्हें दरकार है? दोस्तों, ये वो सवाल है जिसे दुनिया के किसी भी हिस्से में पूछा जाए, उसका जवाब हाँ और ना दोनों में होगा क्योंकि कहीं अगर नारी ने पुरानी जड़ता से मुक्ति पा कर खुले आसमान की उड़ान भरी है तो कहीं वो आज भी डूबती सिसकियों के बीच घुटती अपनी आवाज के बीच बेहतर भविष्य के लिए दुनिया के कुछ एक हिस्सों में बाहें फैलाए खड़ी है।

दोस्तों, आज भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इस अवसर पर स्त्री-पुरुष की समानता ही इस संसार का एक मात्र मार्ग है जो एक घर से एक मोहल्ले, एक मोहल्ले से एक शहर, एक शहर से एक राज्य और एक राज्य से एक राष्ट्र को सशक्त बनाने का माद्दा रखता है ताकि हमारा आज और कल दोनों बेहतर हो सके। इतिहास गवाह है कि नारी की असीमित शक्ति किसी राष्ट्र को दिशा देने में सदैव अतुलनीय भूमिका निभाती आई है, इसलिए इस खास दिन आइए भारत की उन नारी शक्तियों का एक बार पुनः अभिवादन करें जिनके हौसले आज की आधुनिक नारी के लिए अनुकरणीय हैं। इनकी कहानियाँ संघर्ष की बिसात पर लड़ी वो लड़ाइयाँ हैं जो किसी भी स्त्री के मनोबल को पाताल के गर्त से निकालकर आसमान के पटल पर स्वर्णिम अक्षरों में अंकित करा जाएँ। समाज के लिए मिसाल बन चुकी इनकी कहानियों की इस कड़ी में पहली कहानी जो मैं साझा करूंगी वो है –

भारत की प्रथम महिला डॉक्टर आनंदीबाई जोशी की जिनका जन्म ब्रिटिश भारत के ठाणे राज्य में मार्च 1865 को हुआ था। घर में आई लक्ष्मी के लिए भी तत्कालीन समाज में व्यापात कुप्रथाओं ने आने वाले भविष्य के लिए कुछ खास नहीं रख छोड़ा था। लिहाजा 9 वर्ष की आयु में उनका विवाह, उम्र में बीस साल बड़े गोपालराव जोशी से कर दिया गया। चौदह वर्ष की आयु में वो माँ बनी पर मात्र 10 दिनों में ही अपनी संतान के प्राण गँवा देने वाली आनंदीबाई ने ऐसी असमय मौतों को रोकने के लिए डॉक्टर बनने का फैसला लिया। अमेरिका के वुमन्स कॉलेज ऑफ पेंसिल्वेनिया से उन्होने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की। दोस्तों भारतीय महिलाओं के भविष्य को रास्ता दिखाने वाली इस अद्वितीय नारी शक्ति ने यूं तो अल्पायु (इक्कीस वर्ष की अवस्था) में ही अपने प्राण त्याग दिए पर डॉक्टर बनने का उनका वो फैसला तब से लेकर आज तक इस समाज को न जाने कितनी महिला डॉक्टरों से रूबरू करा रहा है।

महिलाओं की ये कहानी कुछ और नामों के बिना अधूरी रह जाएगी, अगर मैं वकालत के पेशे को महिलाओं के लिए खुलवाए जाने की लड़ाई लड़ने वाली भारतीय वीरांगना कोर्नेलिया सोराबजी की बात न करूँ, जिन्हें भारत की प्रथम महिला वकील कहलाए जाने का भी सम्मान प्राप्त है। कोर्नेलिया ने उस समय के समाज में व्याप्त पर्दा प्रथा जैसी भारी भरकम कुरीति का सामना करते हुए आज की भारतीय नारी के लिए तरक्की के द्वार खोले। उनके दिखाए रास्ते पर चलकर नारी शक्ति आज न्याय क्षेत्र में भी अपभूतपूर्व प्रदर्शन कर रही है।

भारतीय नारियों के शौर्य, साहस और पराक्रम का नजारा देख रही इस दुनिया को वर्षों पहले भारत की प्रथम महिला IAS अन्ना राजम मल्होत्रा, प्रथम महिला इंजीनियर अय्योला सोमायाजुला ललिता (ए.ललिता), प्रथम महिला IPS किरण बेदी, प्रथम महिला हाई कोर्ट जज अन्ना चांडी, प्रथम महिला चुनाव प्रतिभागी कमला चटोपाध्याय जैसी और न जाने कितनी अनगिनत महिला शक्तियों की अविस्मरणीय कर्म गाथा देखने को मिली है। इनके कर्मक्षेत्र के कार्यों के बदौलत केवल हमारा समाज ही नहीं बल्कि हमारा राष्ट्र भी दुनिया की आधी आबादी के प्रति अपने कर्तव्यों को लेकर खुद की नई पहचान बनाता नजर आया है और सदैव बनाता रहेगा।

भारत की नारी की ये यात्रा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यूं ही अनवरत चलती रहे, बस इसी कामना के साथ दुनिया के प्रत्येक नारी को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकानाएँ। 


Happy Holi

 

Holi Masti

मतवारी फागुन की बयरिया

छेड़े है तान मनोहर, होली रंग बरसाने को,

मन का पपीहा बन मयूर

नाचे फागुन के रंग में रंग जाने को,

मेरी प्यारी सखियों

अब तुम सब मोहे इतना बता दो,

नीला, पीला, लाल लगाऊँ

या खेलूँ हरियाली होली,

कान्हा संग मोहे कौन जंचेगी

ब्रज की होली या मथुरा, वृन्दावन, बरसाने की,

मतवारी फागुन की बयरिया...

राधा संग सब करें ठिठोली

कान्हा रंग लगाने को,

अबकी होली रंग जा राधा

प्रीत रंग में कान्हा के,

प्रीत रंग से बढ़कर दूजा

रंग नहीं मन भाने को,

मतवारी फागुन की बयरिया...     

               स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”