Hindi Writing Blog: "राजनैतिक पार्टियों द्वारा उदघोषित भारत बन्द में पिसता आम जनमानस"

शनिवार, 10 नवंबर 2018

"राजनैतिक पार्टियों द्वारा उदघोषित भारत बन्द में पिसता आम जनमानस"


पिछले कुछ दशकों से लोकतंत्र में मिले अभिव्यक्ति के अधिकार का जिस तरह से दुरूपयोग भारतीय परिवेश में हो रहा है उसे अवलोकित करने के बाद हम आम जन की चेतन मन: स्तिथि जिस प्रकार से छिन्न-भिन्न हो रही है उससे इस तथ्य का अंदाजा लगा पाना मुश्किल हो गया है कि भारत का आम नागरिक स्वयं को संगृहीत और संगठित बनाये रखने के लिए आवश्यक मन बल जुटाए या फिर समृद्धवान और शक्तिशाली बनाने के लिए शारीरिक बल|

                          लोकतंत्र के नाम पर जिस तरह से घनघोर हिंसा का प्रदर्शन राजनीतिक दल अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए कर रहे हैं उसे देख कर तो यही लगता है कि भारत सिर्फ और सिर्फ इन राजनीति के पहरेदारों की कठपुतली बनकर नाचने वाले एक देश के रूप में स्वयं को वैश्विक पटल पर प्रस्तुत कर पा रहा है क्योंकि राजनैतिक दलों द्वारा बुलाया गया बंद हमारे राष्ट्र की एक भयावह तस्वीर ही दुनिया के सामने प्रस्तुत कर पा रहा हैं जो कभी "विश्व गुरु" रहे भारत के लिए काफी शर्मनाक है| यही नहीं इनके जनता के बुलाये जा रहे अचानक भारत बंद से आम जनमानस किन तकलीफों से स्वयं को दो-चार कराता है इसका भी इन्हे ज्ञान नहीं, ऐसा बंद भी किस काम का जो पूरे राष्ट्र की गति को ही रोकने की एक नाकाम कोशिश भर हो इसके अलावा कुछ नहीं| क्या यही है भारतीय गणराज्य के संविंधान द्वारा जनता को, जनता के लिए, जनता के द्वारा समर्पित किये गए अधिकार, क्या ये राष्ट्र और इसके राजनेता इन तथ्यों को क्यूँ नहीं सोचते की सभी एक साथ मिलकर ऐसी सामान विचारधारा बनाये जिसमे धर्म, मजहब, जाति, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब सबके फैसले ख़त्म हो जाएँ और एक नए भारत का नवनिर्माण हो|

                           क्यूँ और कब तक भारत और भारतीय जनमानस को मुठ्ठी भर राजनेताओं का एक कुनबा अपने इशारों पर नाचता रहेगा| अहिंसक रहने की सलाह देने वाले नेता आखिर क्यूँ देश की गति को रोककर अपनी बात मनवाने में विश्वास रखते हैं, ऐसे तो नहीं है की इनके लिए भारत बन्द एक ऐसा जुमला बन गया है जिसके जरिये ये अपने राजनितिक दलों का प्रचार करते हैं क्योंकि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया भारत बन्द की कवरेज बड़े पैमाने पर टेलीकास्ट करता है और लोकतंत्र के चक्रव्यूह में पिसते आम जन तक इनकी बात आसानी से पहुँच जाती है जो वोट के अधिकार को गुमराह करने का काम करती हैं|

भारत बंद से दफ्तर बन्द, स्कूल बन्द, काम-काज बन्द, रेलवे बन्द, दुकान बन्द, अस्पताल बन्द, इलाज बंद, व्यापर बंद, सबकुछ बन्द - ये कैसा बन्द? जिसमे नारा तो होता है जनता की भलाई लेकिन पिसती जनता ही है और न जाने कितने मासूमों की बलि लेने के बाद भलाई की ये दुकान बन्द होती है और भारत चालू होता है|

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