Hindi Writing Blog: 2022

शनिवार, 31 दिसंबर 2022

आजादी के बाद का भारत और आज का डिजिटल भारत: बदलती तस्वीर पर एक परिचर्चा

 

Digital India






















दोस्तों, 2023 की इस पूर्वसंध्या पर जहां एक ओर हम 2022 को विदा कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर हम नूतन वर्ष के आगमन की प्रतीक्षा में प्रतीक्षारत हैं। ऐसे में आने वाला नवीन वर्ष हम सभी के जीवन में खुशहाली और तरक्की के नित नए आयाम रचे, ईश्वर से मेरी यही कामना है। अब अगर बात नए वर्ष के आगमन की हो तो हम सब के जेहन में खुद की समृद्धि के साथ एक और इच्छा जो बलवती होती है, वो है हम सबके प्यारे देश के नूतन वर्ष में संपूर्ण जगत में नई बुलंदियों तक पहुँचने की और ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि जब-जब दुनिया के मानचित्र पर हमारा देश आगे बढ़ता है तो हम हिंदुस्तानियों का माथा गर्व से ऊंचा हो जाता है।

दोस्तों, आज जब देश की विजयगाथाओं पर परिचर्चा शुरू ही हो गई है तो आइये एक नजर डालें बदलते भारत की उस तस्वीर पर जिसको साथ मिला भारत सरकार के 1 जुलाई, 2015 को शुरू किए गए डिजिटलाइजेशन अभियान का। दोस्तों आज के अपने इस अंक में हम जो चर्चा कर रहे हैं उसमें भारत की प्रगति के पन्नों को अतीत से जोड़कर विश्लेषित करना शामिल है यानि हम कहाँ थे और कहाँ आ गए...कैसी थी ये यात्रा जो 15 अगस्त 1947 से शुरू होकर अब यहाँ पहुंची है, एक लंबा सफर जहां से आगे अगर भारत साल दर साल यूं ही बढ़ता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब दुनिया के लिए “सपेरों का देश” कहा जाने वाला भारत अपनी बीन की धुन पर पूरी दुनिया को नचाएगा।

सन् 1947 में मिली आजादी से पूर्व जब भारत में ब्रिटिश शासन नहीं था तो भी हमारे प्यारे देश ने संपन्नता और समृद्धि के ऐसे दौर देखे हैं जिसका लोहा पूरी दुनिया मानती थी। सिंधु घाटी सभ्यता से शुरू हुई भारत की उन्नति ने सत्रहवीं सदी के आते-आते खुद को मध्ययुगीन विश्व की सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं में सम्मिलित करवा लिया था परंतु उसके बाद आए सत्ता परिवर्तन ने एक लंबे समय तक भारत को विकास के पहिये से नीचे उतारकर ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने के लिए मजबूर कर दिया, वजह साफ थी भारत की बचत का यहाँ से बाहर जाना और देश में होने वाले निवेश में भारी कमी का आना। इन सबके बावजूद 1947 में मिली आजादी के बाद हर मोर्चे पर मुंह की खाए भारत और भारतीयों के लिए आगे का रास्ता काफी चुनौतीपूर्ण था, लेकिन हम सभी के विश्वास को तब और बल मिला जब बार-बार विदेशी आक्रांताओं का शिकार बन चुके भारत ने उम्मीदों का साथ कभी नहीं छोड़ा और खुद को एक बार फिर खड़ा करना शुरू किया। 30 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था (जो उसे 1950 में मिली थी), 2022 आते-आते 3 हजार अरब डॉलर तक पहुँच गई बावजूद इसके की क्रमश: 1962, 1965, 1971 और 1999 में इस देश ने कई बार युद्धों का दंश भी झेला तथा इसके साथ ही दुनियाभर में हो रहे उतार-चढ़ाव का भी सामना किया।

दोस्तों, इस बात का हमें गर्व है कि जो देश 75 वर्ष पूर्व सिर्फ आयात पर निर्भर हो चला था वो अपने देश की विधिवेत्ताओं, विशेषज्ञों और नागरिकों के दृढ़ इच्छा शक्ति एवं कर्तव्यनिष्ठा के पथ पर चलते हुए आज दुनियाभर की जरूरतें पूरी करने में सक्षम बना है, भले ही तब कि 36 करोड़ की आबादी में सीधे-सीधे 1 अरब 4 करोड़ का इजाफा दर्ज हुआ हो। आबादी बढ़ी लेकिन तरक्की बाधित नहीं हुई इसकी गवाही प्रति व्यक्ति आय दर के ये आंकड़े भी देते हैं जिसके अनुसार 1950-51 की प्रति व्यक्ति आय 265 रुपये के लंबा-चौड़ा बदलाव लेकर वैश्विक महामारी कोविड-19 के संकट के बावजूद लगभग 91,481 रुपये तक पहुँच गई। आज का भारत निश्चित ही विकास के नित नए आयाम रच रहा है पर एक चीज जो पूरी तरह स्पष्ट है वो है भारत के साथ कंप्यूटर, इंटरनेट और डिजिटलाइजेशन का समागम, जिसने भारत की छवि को दुनिया के सामने न केवल एक अभूतपूर्व अंदाज में प्रस्तुत किया बल्कि बढ़ते डिजिटलाइजेशन ने देश के सुदूर इलाकों को शहरों से जोड़कर आम लोगों की जिंदगी को सहज बनाने का भी उम्दा कार्य किया है। भारत की प्रगति में शामिल ई-शिक्षा, ई-स्वास्थ्य, ई-गवर्नेंस, ई-साइन जैसी सेवाओं ने नागरिकों की रोज़मर्रा की जरूरतों को थोड़ा आसान बना दिया। यहाँ थोड़े शब्द का इस्तेमाल मैंने इसलिए किया क्योंकि डिजिटलाइजेशन का जितना फायदा विकसित देश उठा रहे हैं उतना फायदा भारत को उठाने में बस थोड़ा ही वक्त लगेगा, पर यह होगा अवश्य और ये जब होगा तब भारत दुनिया के साथ बराबर कदम से कदम मिलाकर चलता नजर आएगा।

दोस्तों, किसने सोचा था कि जब 1940 के दशक में दुनिया ने अपना पहला कंप्यूटर पाया तो भारत तक पहुँचने में इसे 16 साल का लंबा इंतज़ार करना पड़ा यानि 1956 का वो वर्ष जब भारत ने पहली बार HEC-2M को दस लाख की कीमत पर खरीदा और यह आगे बढ़ते इस सिलसिले ने 1966 में भारत की दो संस्थाओं: भारत सांख्यिकी संस्थान तथा जादवपुर यूनिवर्सिटी द्वारा मिलकर बनाए गए पहले कंप्यूटर ISIJU-1 ने भारत को इन्फॉर्मेशन टेक्नालॉंजी के दुनिया में कदम रखवाया तो किसी ने नहीं सोचा था कि आगे चलकर ये कंप्यूटर देश की तस्वीर दुनिया के सामने बदलकर रख देगा। देश बदल रहा है, दुनिया भी भारत की क्षमताओं को देखकर दंग है। उतार-चढ़ाव कहाँ नहीं होते, हमारा देश भी ऐसा ही है और अगर बात सक्षमता की करें तो वो इसमें इतनी है जिसके जरिए अतुलनीय नवनिर्माण को संभव बनाया जा सके। भारत के सँवरते भविष्य की आकांक्षा लिए हुए अगले अंक में फिर मिलेंगे, तब तक के लिए जय हिन्द, जय भारत... 


मंगलवार, 25 अक्तूबर 2022

दीपावली विशेषांक - कलयुग की आधुनिकता पर भारी त्रेतायुग की प्राचीनता

 

दीपावली  की शुभकामनाएँ


दोस्तों, सबसे पहले आप सभी को प्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!

जैसा कि इस आर्टिकल के विषय से ही आपको यह पता चल गया होगा कि आज के मेरे इस दीपावली विशेषांक की यात्रा काफी कुछ आपको आध्यात्म की ओर ले जा रही है बावजूद इसके अगर हम इस विषय से मिली सीख पर थोड़ा सा भी ध्यान दें तो यह शायद बेहद जरूरी है कि आज के इस भौतिकतावादी और लिप्सा से भरे जिस दौर को हम जी रहे हैं उसमें अगर कलयुग हमें आधुनिकता की ओर धकेल रहा है तो कहीं न कहीं त्रेतायुग की प्राचीनता से मिलती सकारात्मक ऊर्जा आज भी हमारे कल को सँवारने का माद्दा रखती नजर आ रही है। जी हाँ दोस्तों, एक तरफ आधुनिकता के लबादे को ओढ़े हम मोबाइल फोन पर अपनी उँगलियों को फेरते हुए अक्सर ये दावा करते हैं कि हम खुद को पूरी दुनिया से जोड़ रहे हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि अपने घर की चारदीवारी में ही अपने आस-पास रह रहे रिश्तों को ही हम अच्छी तरफ संभाल पाने में असफल साबित हो रहे हैं। इसे बताने या इसपर चर्चा करने की भी जरूरत अब शायद शेष नहीं बची है फिर भी इन सबके बीच जब हम अपनी प्राचीन संस्कृति से उपलब्ध कराए गए कुछ उत्सवों/ त्योहारों को मनाते हैं तो एक बार फिर हम मिलजुल कर रहने और साथ-साथ त्योहारों को एक आँगन, एक मोहल्ले, एक गली, एक शहर और एक देश के साथ मनाने का जज्बा हासिल कर लेते हैं, जो कहीं न कहीं हमारी उस प्राचीन सभ्यता और संस्कृति से हमें जोड़ता है जो केवल कुछ वर्षों से नहीं बल्कि सदियों से हमारे इस समाज का अमूल्य हिस्सा रही है।

दोस्तों, बात जब हमारी प्राचीन सीख और आचार संहिताओं की हो तो त्रेतायुग में जन्में प्रभु राम और उनके इर्द-गिर्द घूमते वो सभी पात्र जो सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना सिखलाते हैं, आज के इस कलयुग में भी हम सभी के लिए अनुकरणीय बन जाते हैं। जिस प्रकार प्रभु राम ने रावण वध के उपरांत चौदह वर्षों का वनवास पूरा कर कार्तिक अमावस्या (दीपावली) के शुभ दिन अयोध्या नगरी में अपनी वापसी की तो अयोध्या वासियों को हर्ष और उल्लास के आनंदमयी वातावरण में लाखों नकारात्मक परिस्थितियों के बावजूद जीवन को कैसे जीया जाए इसकी अनमोल सीख मिल गई जिसकी आवश्यकता आज के इस आधुनिक परिवेश में हम सभी को कहीं न कहीं हर पल महसूस होती है। हम माने या न माने त्रेतायुग से मिली इन बातों तक आज भी हमारी पहुँच हमारे घरों में रह रहे बूढ़े बुजुर्गों के माध्यम से रोज़मर्रा की जिंदगी में हो ही जाती है।

कहते हैं दोस्तों कि जब प्रभु राम 86 दिनों का युद्ध समाप्त कर लंका से पुष्पक विमान द्वारा अयोध्या जाने के लिए निकले तो वे सबसे पहले अयोध्या नहीं गए अपितु वो एक-एक कर उन सभी के पास गए जिन महर्षियों, योगियों (सर्वप्रथम वो भारत भूमि पर कुंभज ऋषि कहे जाने वाले ऋषि अगस्त्य के सुंदर दण्डकवन में स्थित आश्रम में उतरे) पशु-पक्षियों,नदियों (सुंदर दण्डक वन के बाद वो चित्रकूट पहुँचें वहाँ से उन्होने माँ यमुना और माँ गंगा के दर्शन हेतु तीर्थराज प्रयाग का रुख किया जहां वे बंदरों और ब्राह्मणों को दान देने के लिए रुके साथ ही वे ऋषि भारद्वाज के आश्रम भी गए) के पास गए जो उनकी इस विजयगाथा में कहीं न कहीं से शामिल थे और जिन्होने उनकी कठिन परिस्थितियों में किसी भी प्रकार सहायता की थी। प्रभु राम का ये चरित्र आज के इस कलयुग में उनकी कृतघ्नता  की उस भावना का संकेत देता है जिसे हम सभी अपनी दैनिक दिनचर्या में अगर शामिल कर लें तो एक दूसरे को दिए जाने वाले सम्मान से ही हमारी काफी मुश्किलें कम हो जाएंगी।

त्रेता युग में प्रभु राम के चरित्र में ऐसी ही अनगिनत विशेषताएँ थीं जो कलयुग भी में भी मर्यादा पुरुषोत्तम बने रहने की उन प्राचीनताओं की ओर हमें आकर्षित करती हैं जिनमें शांतचित्तता, विनम्रता, वचन निभाने की क्षमता, आज्ञाकारिता, त्याग और बलिदान की भावना तथा स्वार्थ से कोषों दूर रहने की उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति उन्हें रामायण कालीन पात्रों में न केवल सर्वोत्तम स्थान प्रदान करती है अपितु आज के इन मौजूदा हालात में स्वयं साक्षात पूर्ण ब्रह्म होते हुए भी सुख-दुख को बराबर से सहन करते हुए मानव जीवन को किस प्रकार संयमित होकर जिया जाए इसकी भी शिक्षा दे जाती है। त्रेता युग में प्रभु राम के किरदार से अलग होकर अगर हम माता सीता और बंधु लक्ष्मण के चरित्र की प्रासांगिकता आज के इस युग में विश्लेषित करें तो हमें हर रोज बहुत कुछ नया ग्रहण करने को मिलेगा। फिर चाहे सीता और लक्ष्मण के साथ उर्मिला का बलिदान हो या भातृ प्रेम पर न्योछावर भरत का जीवन। ये सभी भले ही आज के आधुनिक कहे जाने वाले समाज में सही न बैठें पर अगर हमने इन्हें मन और वचन से अंगीकार कर लें तो इतना सुनिश्चित है कि आज के इस कलयुग में न केवल हमारा खुद का चरित्र सुदृढ़ और बलवान होगा बल्कि उनके विचारों और आदर्शों को लेकर हम अपने आने वाले कल की नयी तस्वीर चित्रित कर सकेंगे।

दोस्तों, इन दिनों दुनिया के मानचित्र पर काफी उतार-चढ़ाव चारों तरफ दिख रहा है – कहीं युद्ध की विभीषिका है (रूस-यूक्रेन युद्ध), तो कहीं सूखा और अकाल (पश्चिमी देश और समस्त यूरोप), तो कहीं मंदी की आहट है। परंतु, इन सबके बीच संभावनाओं के कमियों के बावजूद हालात बेहतर बनाने की ओर अगर इस विश्व का रुख आने वाले समय के साथ सकारात्मक होता जाए और प्राचीनता से निकली सीख को अपनाकर यह समस्त संसार मानव हित के बारे में सोचना प्रारम्भ करें तो इससे बेहतर शायद ही कुछ होगा।

देश और दुनिया में सकारात्मक ऊर्जाओं का संचार निर्बाध गति से चलता रहे, ऐसी कामना कहीं न कहीं हम सबके अन्तर्मन में समाई रहती है हम सभी की यह आकांक्षा इस नववर्ष में दीपपर्व दीपावली के साथ पूरी हो इसी आशा के साथ इस विशेषांक में आज के लिए बस इतना ही। अगले अंक में फिर मिलेंगे तब तक के लिए जय हिन्द, जय भारत!!!   


बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

Happy Dussehra

 

दशहरा


राम-रावण युद्ध की,

रणभेरियाँ ललकारती।

दसों दिशाएँ प्रभु राम के,

तेज को निहारती।

धर्म का स्वरूप ही,

अद्भुत, अलौकिक, अदम्य है।

सृष्टि का संदेश ये,

वो हर दिशा में भेजती।

अधर्म के माया तले,

रावण का ज्ञान धूमिल हुआ।

युगों-युगों से ये गाथा,

सभी के अन्तर्मन को है भेदती।

फिर भी तम से भरी,

अधर्म की यह राह,

हर नित हमें,

धर्म के मुख से है मोड़ती।

ईर्ष्या, लोभ, मोह, मद जैसी बुराइयाँ,

कलयुग में भी सतयुग के रावण,

की याद से हर किसी को है झिंझोरती।

आइये इस दशहरा एक बार फिर,

मिलकर करें प्रभु राम का उद्घोष हम।

हमारी अंतरकाया में पल रही बुराइयों को,

दे दें अब विराम हम।

आज और अभी से,

अधर्म विरुद्ध छिड़े,

इस युद्ध को अंजाम दें।

फिर बजेंगी रणभेरियाँ,

राम रूपी धर्म की,

होगी पुनर्स्थापना।

राम-रावण युद्ध की रणभेरियाँ ललकारती...

                      स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

 

दोस्तों, धर्म के पथ पर चलने के लिए साहस और धैर्य की हर पल आवश्यकता हमें अपनी रोज की दिनचर्या में महसूस होती जिसके लिए प्रभु राम का चरित्र और आचरण हम सभी को हर पल दिशा दिखलातें हैं। ऐसे प्रभु राम द्वारा दिये गए इस शुभावसर की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ


बुधवार, 14 सितंबर 2022

हिन्दी दिवस

 

हिन्दी दिवस

दोस्तों, आज हिन्दी दिवस की इस शुभ बेला को प्रतिवर्ष दोहराए जाने का अर्थ बस इतना है कि हिन्दी भाषा की गरिमामयी यात्रा स्वयं में समृद्ध साहित्य की ऐसी परंपरागत शुभकामनाओं का अध्याय जोड़ती जाए जिससे आदिकाल से चली आ रही अभिव्यक्तियों को जब कभी भी शब्दों में बांधने का प्रयास हो तो कोई कोना छूटा ना रह जाए। हिन्दी की ये प्रगति हमेशा यूं ही अनवरत चलती रहे, इसी आकांक्षा के साथ... “हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ”

 गागर में सागर सम्हाले,

अनवरत प्रगति प्रशस्त किए ।

साहित्य सम्पदा अनंत सँजोये,

बढ़ते समय को साथ लिए ।

जोड़े जन-जन को भाषा का,

अद्भुत रूप लिए ।

गागर में सागर सम्हाले...

हम सबकी हिन्दी बस बढ़ती चले,

अलंकृत साहित्य स्वरूप लिए ।  

विशिष्ट बनकर विशिष्टतम का भान कराए,

जब जब व्याकरण संग मिले ।

सहज हो चले जब करनी हो बात हमें,

ऐसी मीठी भाषा के अभिमान की बिंदी ।

भारत माता के भाल सजे,

अनंत काल की गति लिए ।

साहित्य संपदा और सादगी का,

ये अप्रतिम मेल बस यूं ही चला चले ।

गागर में सागर सम्हाले... (स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”)

  


सोमवार, 15 अगस्त 2022

भारत का अमृत महोत्सव

 

75th Independance Day

वतन पर मर मिटने की सदाएँ जब भी आएंगी

चमक जाएगा हर चेहरा दिशाएँ गीत गाएँगी

वतन पर मर मिटने की सदाएँ जब भी आएंगी...

आग से खेल जाएगा हर कोई, हटा कर भेद सब सारे  

खनकती चूड़ियों वाले हाथों में भी खड्ग होगी

वतन पर मर मिटने की सदाएँ जब भी आएंगी...

लहरा उठेगा तिरंगा, मिटा जाएंगी दूरियाँ सारी  

राखी बंधे हाथों में भी तब खंजर होगा

वतन पर मर मिटने की सदाएँ जब भी आएंगी...

बड़े-छोटे, तेरे-मेरे, अपने-पराए के हर दर्द को पीछे छोड़ जाएंगी

वतन पर मर मिटने की सदाएँ जब भी आएंगी...

                            स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

 

जोश जुनून और हर्षोल्लास के मनोभावों को एकता और एकजुटता के बंधन में बांधते भारत राष्ट्र के 75वें स्वतन्त्रता दिवस की आप सभी को बहुत-बहुत बधाई

शनिवार, 2 जुलाई 2022

खुद का वजूद तलाशती नारी

 

Women-Existence

ज़िद थी हमें आसमां को छूके आने की,

पर पलकों पर ख्वाबों को सजाने से भी डरते हैं,

कहीं पर कतर न दे कोई उड़ते परिंदे का,

यही दर्द जमाने से छिपाये फिरते हैं,

रोशनी बिखरकर आएगी एक दिन राहों में हमारी,

बस इसी एक उम्मीद पर,

खुद का वजूद खुद में गुमाए फिरते हैं।

ज़िद थी हमें आसमां को छूके आने की

                        (स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाशकीर्ति)

राधा ओ राधा!, जरा मुझे एक कप चाय दे दो – मुझे आज ऑफिस जल्दी निकलना है। अभी सुबह के पाँच ही तो बजे हैं, साढ़े चार बजे की अलार्म क्लॉक पर उठी राधा की दिनचर्या हर रोज कुछ ऐसे ही शुरू होती है। पतिदेव की मॉर्निंग टी की फरमाइश, तो ससुर जी के लिए पेपर और चश्मा ढूंढकर देने की, सासू माँ के नहाने का गरम पानी क्योंकि उन्हें सुबह सवेरे नहाँ धोकर राधा-कृष्ण की पूजा जो करनी है साथ ही रिंकू-पिंकी का स्कूल बैग-लांच बॉक्स – सबकुछ किसी सुपर वूमेन  की तरह निपटाती राधा को ठीक नौ बजे स्कूल पहुंचना है, आज स्कूल में प्रिंसिपल मैम के साथ उसकी मीटिंग है जिसमें क्लास टीचर होने के नाते क्लास के तमाम बच्चों की monthly प्रोग्रेस उनसे शेयर करनी है। एक अकेली राधा और उसके समर्पण, प्रेम, त्याग और निस्वार्थ भावनाओं की रसलहरियों से सिंचित होता घर का आँगन और उस घर के आँगन से बाहर निकलकर आशाओं, कुछ कर गुजरने की उसकी कोशिशों तथा खुद के वजूद को इस बदलते समाज के साथ फिट बैठाने की उसकी जिद ने उसे घर की चार-दीवारी से बाहर निकालकर समाज के उस वृहद दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है जहां कामकाजी चुनौतियों के साथ संतुलन बनाकर उसे हर पल, हर क्षण एक स्त्री होने के एहसास को जिंदा बनाए रखने के लिए मजबूर कर दिया जाता है।

वर्तमान परिस्थितियों में technology से भरी इस 21वीं सदी में भी इस दुनिया ने स्त्रियों के अस्तित्व और उनकी सकारात्मक ऊर्जा को स्वीकारने में कहीं न कहीं एक लचर रवैया अपना रखा है। जब कभी भी पुरुष संग स्त्री समानता की बात आती है तो ये सब बातें सिर्फ कुछ खाली उँगलियों से निकले शब्दों तक आकर सिमट जाती हैं, जो किताबी बातों के अलावा ज्यादा कुछ नहीं। वरना रोज़मर्रा की जिंदगी में तो आज भी घर के अंदर और बाहर का सामंजस्य बनाए रखने की ज़िम्मेदारी स्त्रियों पर ही है। बने-बनाए करियर को छोड़कर अगर पारिवारिक जिम्मेदारियों को संभालने की बात हो तो वहाँ भी ये समाज दृढ़ होकर स्त्री मंशा से ही हाँ की उम्मीद लगाता है। न जाने क्यों ऐसा है? अच्छे पदों पर कार्य कर रही महिलाओं को भी घर के फैसलों में निर्णायक बने रहने की भूमिका बामुश्किल ही मिल पाती है।

कभी तो नारी मन को एक पल ही लगता है उसने जीवन में सबकुछ हासिल कर लिया, वहीं दूसरे पल उसे इस बात का एहसास भी होता है कि उसका अपना तो कुछ है ही नहीं। कितनी अजीब है न इन सामाजिक रिश्तों की कशमकश? आज के इस आधुनिक समाज ने इतना तो साबित कर दिया है कि स्त्रियों को विधाता ने सृष्टि संतुलन की ऐसी कला दी है जो सफलतापूर्वक वो जीवन के हर मोर्चों पर निभाती है – कभी एक बेटी बनकर तो कभी पत्नी, बहू, और माँ बनकर लेकिन इन सबके बावजूद एक प्रश्न जो आज भी स्त्री समाज के लिए लाख टके का है कि इन सभी सफल मोर्चों पर लड़ते-लड़ते क्या उनका स्वीकरण इस समाज द्वारा उसी प्रकार हो पाया है जैसा पुरुषों का? आखिर क्यों जब त्याग और बलिदान की बात आती है तो सारा समाज मिलकर स्त्री जाति की ओर ही उंगली करता है, पुरुषों की ओर क्यों नहीं? और ताज्जुब तो इस बात का है कि इन उँगलियों में पुरुषों के साथ कुछ उँगलियाँ स्त्रियों की भी हैं? ऐसा क्या है जो नारी आज भी अपना सर्वस्व देने के बाद भी अपने ही वजूद को अपने में ही तलाशने के लिए मजबूर है।

 आशा बस इस बात की है कि नारी और पुरुष के संतुलन का संदेश देती प्रकृति की बातें हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी में लागू हों और स्त्रियों को वो मिले जिसकी वो हकदार हैं।

            दोस्तों, ये थी मेरी एक ऐसी रचना जो मेरे परिवेश के इर्द-गिर्द हर दिन घटती है। मैं कुछ कर तो नहीं सकती पर अपनी लेखनी के माध्यम से एक बात जरूर आप से साझा कर सकती हूँ कि आगे बढ़कर स्त्रियों को सम्मान देने की शुरुआत करें ताकि संसार के लिए सकारात्मक उर्जाओं का एक नया दौर आरंभ हो सके। फिर देखिये नारी की उस उड़ान को जिसे वो अपने दर्द के पीछे छिपाकर रखती आई है।

          आज के लिए बस इतना ही अगले अंक में फिर मिलेंगे तब तक के लिए जय हिन्द, जय भारत!!!


रविवार, 8 मई 2022

Happy Mother's Day

 

Mother's Day Image

धरती में है माँ की खुशबू,

अंबर शीश झुकाए है ।

कल्पित छल की ओढ़ चुनरिया,

नदिया जल बरसाए है ।।  

अठखेली करती वसुधा से ममता,

सीख हमें दे जाए है ।

तरु पल्लव की पुष्प मल्लिका,

हर्ष गान जब गाए है॥

प्रकृति सहेजे माँ स्वरूप को,

जब पुष्पों की कोमल पंखुड़ियाँ,

मंद बयार सहलाए है ।

माँ की महिमा इस जग में,

सूरज चाँद भी गाएँ हैं ॥

सूरज की स्वर्णिम आभाएँ,  

जब माँ-आशीष में मिल जाए है।  

चन्द्र-चाँदनी की शीतलता

माँ लोरी संग गाए है ॥

प्रकृति मिलन का यही आईना,

हम सब मातृ रूप में पाएँ हैं

धरती में है माँ की खुशबू...

          स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

 

प्रस्तुत पंक्तियों में “कल्पित जल की ओढ़ चुनरिया, नदिया जल बरसाए है अर्थात नदी जब पानी के लहरों को लेकर कर पहाड़ों से चलती है तो धरती माँ की गोद में कही उठती है तो कहीं गिरती है, कहीं छुपती है तो कहीं सामने आ जाती है। कल्पनाओं का ये बादल लिए जब वो आगे बढ़ती है तो धरती माँ उस पर अपना सारा स्नेह लुटा देती हैं। प्रकृति का दिया ये संदेश उन सभी संतानों के लिए है जिनकी माँ सारे बंधन से परे होकर अपनी ममता आजीवन अपने बच्चों पर लुटाती हैं फिर चाहे उसमें समर्पण, त्याग, बलिदान, आलोचना और निंदा जैसी अनगिनत मनोभावनाओं का उतार-चढ़ाव भी शामिल क्यूँ न हो...Happy Mother’s Day!!!

 

 

 


रविवार, 10 अप्रैल 2022

रामनवमी की हार्दिक बधाई

Happy Ramnavmi



              नौमी तिथि मधु मास पुनिता...

               भए प्रकट कृपला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।

               हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥

               लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।

                भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥

पृथ्वी वासियों का प्रभु राम से मिलन कराती रामनवमी, प्रभु के आचार – व्यवहार को मानवजाति के निज जीवन में सम्मिलित किए जाने का संदेश देती है साथ ही हमें इस बात के लिए तैयार करती है कि जीवन में कठिनाई चाहे जितनी आए हम सभी को धर्म के पथ पर अडिग होकर चलना है क्योंकि...

एक तरफ मानव खुद एकल चलेगा

अगर चुना अधर्म का साथ।

वही दूजी ओर मिलेगी धर्म पथ पर

प्रभु राम साथ की सौगात...

तो बोलो प्रभु राम की जय

प्रभु राम का साथ सदैव हम सभी के साथ यूं ही बना रहे इसी कामना संग आप सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...   




 

शुक्रवार, 18 मार्च 2022

होली की हार्दिक शुभकामनाएँ

 

Happy Holi


प्रकृति के दिए रंगों से सजी

इस रंग-रंगीली दुनिया में

असली होली तो तब होगी

जब बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय

की सहस्त्रों धाराएँ एक बार फिर

जगत मध्य कदम ताल करेंगी।

जीवन का स्पंदन तब

भय के घेरे से मुक्त बहेगा

जब रंगों की बौछार में

मानव जाति का समावेशन भी

खुलकर प्रकृति संग जीवन को

जी लेने की हुंकार भरेगा

असली होली तो तब होगी...

   स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”

 

आइये इस होली अपने देश संग समग्र संसार में शांति स्थापना और निर्विघ्न जीवन के रंगों की छटा इस धरा पर सदा सर्वदा बिखरते रहने की कामना करते हुए इस रंग महोत्सव को सबके संग मिलकर मनाएँ, आप सभी को सामाजिक सद्भाव और एकता का संदेश देती होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!


मंगलवार, 8 मार्च 2022

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

 

Happy Woman's Day



नारी की महत्ता का गुणगान करती इन पंक्तियों के साथ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की आप सभी को शुभकामनाएँ

 सृष्टि के संयोग से

जब नर संग नारी बनी

चलने लगा ब्रह्मांड तब ये

वसुधा भी पूरित हुई

आकाशगंगा से निकलती

जीवन ज्योति तब कहीं आगे बढ़ी

स्नेह और वात्सल्य का

जब ले समागम

नर संग नारी चली

महक उठा संसार तब ये

हर घर की दहलीज

भी पूरित हुई, सृष्टि के संयोग से... (1)

अश्रुओं के सैलाब को जब

नयनों में रोक रखने

की शक्ति और अधरों पर मुस्कान ले  

जब नारी आगे बढ़ी

संयम और धैर्य का रुख देख

तब राधा और सीता भी

प्रभु कृष्ण और प्रभु राम के

आगे जुड़ी

पूर्ण हुआ दुनिया का स्वप्न

तब ये प्रकृति भी

पूरित हुई, सृष्टि के संयोग से... (2)

 स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”